सामाजिक कहानियां कहानियाँ पढ़े और PDF में डाउनलोड करे

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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विश्वास का चीरहरण By Sudha Adesh

विश्वास का चीरहरण पिछले कुछ दिनों से रमाकांत की तबियत ठीक नहीं चल रही थी । वे सो रहे थे । नमिता ने उन्हें जगाना उचित नहीं समझा...उसने स्वयं के लिये चाय बनाई तथा बाहर बरामदे में अखब...

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आपकी आराधना - 5 By Pushpendra Kumar Patel

अतीत के कुछ अनसुलझे रहस्य जो बदल देंगे आराधना की जिन्दगी....

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जूते. By Mukesh Verma

जूते कितना वक्त गुजरा होगा ! अंदाज से लगभग पचास साल के ऊपर। लेकिन सड़क पर खुलते छज्जे पर तरतीब से रखे गमलों के हरे—पीले रंग और उनमें छोटे—छोटे पौधों में खुलते और खिलते खुशबुओं के फू...

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आवारा अदाकार - 3 By Vikram Singh

आवारा अदाकार विक्रम सिंह (3) उसने कहा, ’’अब तुम दोनों निकल जाओ।’’ वह चुप रहा। बबनी ने ही कहा,’’बस दीदी! थोड़ी देर में चले जायेंगे।’’ यह सुन बबीता अपना क्लास करने चली गई। दोनो फिर दु...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 10 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (10) आज सायं कई दिनों के पश्चात् छोटी का फोन आया। उससे बातंे कर के मन में नवस्फूर्ति को संचार होने लगता है। मुझसे बातंे करते समय वह सदा प्रफुल्लित रहती है। मेर...

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प्राणांत By Deepak sharma

प्राणांत “डेथ हैज़ अ थाउज़ंड डोरज़ टू लेट आउट लाइफ/आए शैल फाइंड वन.....” --एमिली डिकिन्सन “तुम आ गईं, जीजी?” नर्सिंग होम के उस कमरे में बाबूजी के बिस्तर की बगल में बैठा भाई मुझे देखते...

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आखा तीज का ब्याह - 15 - अंतिम भाग By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (15) आज हॉस्पिटल का शुभारम्भ था| तिलक सुबह से तैयारियों में जुटा था, नीयत समय पर समारोह शुरू हो गया था| एक बड़े से शामियाने के तले मंच पर विशिष्ट अतिथियों के बैठने...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 22 By Jayanti Ranganathan

30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 22 by Sana Sameer सना समीर किस गली बिकती है वफाएं? कृष की आवाज़ सुनकर बेला के मन में एक तूफ़ान सा उमड़ आया। अचानक कुछ यादें ताज़ा...

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राम रचि राखा - 6 - 10 - अंतिम भाग By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (10) मुन्नर को खिलाने के बाद रात का खाना खाकर भोला घर चला गया था। बिजली शाम को ही कट गयी थी। आजकल दिन की पारी चल रही है। मुन्नर ने लालटेन जलायी और ओसार में आ गए। उनके...

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लहराता चाँद - 4 By Lata Tejeswar renuka

लहराता चाँद लता तेजेश्वर 'रेणुका' 4 संजय ने आँख पोंछी। उसकी नज़र काँच के दरवाज़े से बाहर बग़ीचा की ओर थी। उस छोटी-सी बगिया में 8-10 साल की एक बच्ची उड़ती हुई एक तितली को पकड़ने...

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क्या नाम दूँ ..! - 3 By Ajay Shree

क्या नाम दूँ ..! अजयश्री तृतीय अध्याय एक्सरे रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने किरन से पैर धीरे-धीरे हिलाने को कहा | किरन कराहते हुए दोनों पैर की उँगलियाँ हिलाने की कोशिश करने लगी, पर...

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उलझन - 7 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे सात अभिनव को बहुत दुःख हुआ। वह सौमित्र का हाथ पकड़कर कहने लगा- ‘सोमू ् अगर बादल ने मेरे सिर पर बैट मार कर गलती की थी तो मैंने भी उसके साथ कौन सा अच्छा व्यवहार कि...

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 4 - अंतिम भाग By Nidhi agrawal

सड़क पार की खिड़कियाँ डॉ. निधि अग्रवाल (4) 'नहीं, आऊँगा। पर सज़ा गुनाह पर ही मिलनी चाहिए न। कोई गुनाह किया है क्या?' प्रेम सबसे बड़ा गुनाह है। भीतर तक तोड़ देता है। मैं कहना चाह...

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गूगल बॉय - 11 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 11 मशीन आने के कारण अब दुकान का काम बढ़ गया और जल्दी भी होने लगा है। माँ का अधिक समय दुकान पर ही व्यतीत होने लगा है। दुकान...

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जिंदगी मेरे घर आना - 14 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग- १४ नेहा में वही पुरानी चपलता लौट आई थी बस बीच-बीच में रोष की लालिमा की जगह सिंदूरी आभा छिटक आती, चेहरे पर। सहेलियों के बहुत कुरेदने पर भी सच्चाई नहीं आ सकी...

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इक समंदर मेरे अंदर - 16 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (16) अब उसे अच्‍छी नौकरी की बहुत जरूरत थी। वह समाचारपत्रों में नौकरियों के विज्ञापन देखती रहती थी। उसका कॉलेज ग्रांट रोड के प्राइम इलाके में था। पास ह...

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गवाक्ष - 34 By Pranava Bharti

गवाक्ष 34== सत्याक्षरा को पीड़ा में छोड़कर कॉस्मॉस न जाने किस दिशा की ओर चलने लगा । उसके मन में अक्षरा की पीड़ा से अवसाद घिरने लगा था, एक गर्भवती स्त्री को कितना सताकर आया था...

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आद्यक्रांतिवीर और हमारी जिम्मेदारी By Subhash Mandale

आद्यक्रांतिवीर और हमारी जिम्मेदारी भारत के इतिहास में कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं, जिनमें से कुछ दर्ज की गई हैं, जिनमें से कुछ पर किसी का ध्यान नहीं गया। सन 1857 के विद्रोह से पहले...

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BOYS school WASHROOM - 5 By Akash Saxena "Ansh"

हर्षित, विशाल और राहुल प्रिंसिपल रूम से रोते हुए ही बाहर जाते हैँ तो उनकी रोनी शक्लो को देखकर पेओन उन पर तंज कस्ता है.. 'लगता है भईया हो गया काण्ड'... ये सुन कर हर्षित आग ब...

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डर By HARIYASH RAI

डर बहुत परेशान से लग रहे थे धनंजय नागर यहाँ आकर। जब-जब वे जामनगर आते तब-तब बहुत उत्साहित और प्रफुल्लित रहते। वे उन गलियों में जाते जहाँ वे अपने बचपन में गुल्ली-डंडा खेला करते थे। उ...

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छोटी मछली By padma sharma

छोटी मछली होटल से निकल कर मनेन्द्र ने दूर तक जाती सड़क का जायजा लिया । सड़क के एक ओर दुकानों की लंबी कतार थी। दुकानों के ऊपर ऊँचाइयों तक चमकते - दमकते होटल बने हुए थे। सड़क के दूसरी...

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लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 3 By Jitendra Shivhare

लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा जितेन्द्र शिवहरे (3) दरवाजे की डोर बैल बज रही थी। टीना ने मैजिक आई से झांक कर देखा। बाहर किराना सामान लेकर एक युवक खड़ा था। टीना ने दरवाजा खोल दिया।...

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दास्तानगो - 6 - अंतिम भाग By Priyamvad

दास्तानगो प्रियंवद ६ एटिक में अब अंधेरा था। बुढ़िया ने चरखे पर काता हुआ सूत समेटना शुरू कर दिया था। अंधेरे में ही वामगुल स्टूल पर बैठ गया। पुल अभी बची हुयी चांदनी में था। दूरबीन से...

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जय हिन्द की सेना - 15 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म पन्द्रह प्रातः आठ बजे के समाचारों में भारतीय सैनिक पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले सैनिकों की सूची प्रसारित हो रही थी जिसे आँगन में धूप व नाश्ते का...

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बात बस इतनी सी थी - 16 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 16. अगले दिन मेरी माता जी गाँव में चली गई । गाँव में हमारा पैतृक घर था, जिसमें मेरे एक ताऊ जी रहते थे । माता जी को स्टेशन पर छोड़ने के बाद मैं घर वापिस लौटा, तो उन...

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चार चतुर की बेकार कथा By Mukesh Verma

चार चतुर की बेकार कथा वे चार थे। चारों बेकार थे। पहिले वे ऐसे नहीं थे। बचपन से ही सबके अपने कारोबार थे, जहाँ कहीं कभी कोई ना तो फिक्र थी और ना ही चिन्ता। एक साथ रहते थे। शुरूआती दि...

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मन्नतों का घर By Dr Vinita Rahurikar

मन्नतों का घर मंदिर तक ऊपर अब तो गाड़ी आज आने लगी है। एकदम मंदिर के सामने तो नहीं लेकिन नीचे के मोड़ तक। पहले तो बड़ी सड़क के पास मैदान में ही गाड़ी खड़ी करके मंदिर तक पैदल आना पड़...

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टोहा टोही By Deepak sharma

टोहा टोही ड्राइवर नया था और रास्ता भूल रहा था| मैंने कोई आपत्ति न की| एक अज़नबी गोल, ऊँची इमारत के पोर्च में पहुँचकर उसने अपनी एंबेसेडर कार खड़ी कर दी और मेरे सम्मान में अपनी सीट छोड़...

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सुरतिया - 4 By vandana A dubey

सरोज और सुधीर, दोनों का ही महीने के पहले हफ़्ते में मूड अच्छा रहता है, तब तक, जब तक बाउजी ने पैसा नहीं दिया . उसके बाद फिर रोज़ के ढर्रे पर ही उनका मूड भी चलने लगता है. लेकिन ये बुरा...

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आपत्ति क्यों आख़िर ?? By Pranava Bharti

आपत्ति क्यों आख़िर ??--------------------------- भ्रमित होने की कोई बात तो नहीं थी ,मन ही तो है ---हो जाता है भ्रमित ! होता ही रहता है ---दुःख -सुख के ऊंचे-नीचे टोलों के बीच फँ...

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फिर महकेगा जीवन By padma sharma

उपहार सतीश ने बिस्तर पर लेटे - लेटे दीवार घड़ी पर नजर डाली सात बज गये थे । आज बिरजू नहीं आया वर्ना बर्तनों की आवाज आने लगती । सतीश अलसाये हुए बिस्तर पर ही लेटे रहे। चाय पीने की ललक...

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पहला कदम By Pavitra Agarwal

पहला कदम पवित्रा अग्रवाल आज बुआ फिर आई थीं. बुझा बुझा सा मन, शिथिल सा तन, भावहीन चेहरा देख कर मैं दुखी हो जाती हूँ. जब फूफाजी जीवित थे, एक स्निग्ध सी मुस्कराहट बुआ के व्यक्तित्व का...

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विश्वास का चीरहरण By Sudha Adesh

विश्वास का चीरहरण पिछले कुछ दिनों से रमाकांत की तबियत ठीक नहीं चल रही थी । वे सो रहे थे । नमिता ने उन्हें जगाना उचित नहीं समझा...उसने स्वयं के लिये चाय बनाई तथा बाहर बरामदे में अखब...

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आवारा अदाकार - 3 By Vikram Singh

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 10 By Neerja Hemendra

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प्राणांत By Deepak sharma

प्राणांत “डेथ हैज़ अ थाउज़ंड डोरज़ टू लेट आउट लाइफ/आए शैल फाइंड वन.....” --एमिली डिकिन्सन “तुम आ गईं, जीजी?” नर्सिंग होम के उस कमरे में बाबूजी के बिस्तर की बगल में बैठा भाई मुझे देखते...

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आखा तीज का ब्याह - 15 - अंतिम भाग By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (15) आज हॉस्पिटल का शुभारम्भ था| तिलक सुबह से तैयारियों में जुटा था, नीयत समय पर समारोह शुरू हो गया था| एक बड़े से शामियाने के तले मंच पर विशिष्ट अतिथियों के बैठने...

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30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 22 by Sana Sameer सना समीर किस गली बिकती है वफाएं? कृष की आवाज़ सुनकर बेला के मन में एक तूफ़ान सा उमड़ आया। अचानक कुछ यादें ताज़ा...

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राम रचि राखा - 6 - 10 - अंतिम भाग By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (10) मुन्नर को खिलाने के बाद रात का खाना खाकर भोला घर चला गया था। बिजली शाम को ही कट गयी थी। आजकल दिन की पारी चल रही है। मुन्नर ने लालटेन जलायी और ओसार में आ गए। उनके...

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लहराता चाँद - 4 By Lata Tejeswar renuka

लहराता चाँद लता तेजेश्वर 'रेणुका' 4 संजय ने आँख पोंछी। उसकी नज़र काँच के दरवाज़े से बाहर बग़ीचा की ओर थी। उस छोटी-सी बगिया में 8-10 साल की एक बच्ची उड़ती हुई एक तितली को पकड़ने...

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क्या नाम दूँ ..! - 3 By Ajay Shree

क्या नाम दूँ ..! अजयश्री तृतीय अध्याय एक्सरे रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने किरन से पैर धीरे-धीरे हिलाने को कहा | किरन कराहते हुए दोनों पैर की उँगलियाँ हिलाने की कोशिश करने लगी, पर...

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उलझन - 7 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे सात अभिनव को बहुत दुःख हुआ। वह सौमित्र का हाथ पकड़कर कहने लगा- ‘सोमू ् अगर बादल ने मेरे सिर पर बैट मार कर गलती की थी तो मैंने भी उसके साथ कौन सा अच्छा व्यवहार कि...

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 4 - अंतिम भाग By Nidhi agrawal

सड़क पार की खिड़कियाँ डॉ. निधि अग्रवाल (4) 'नहीं, आऊँगा। पर सज़ा गुनाह पर ही मिलनी चाहिए न। कोई गुनाह किया है क्या?' प्रेम सबसे बड़ा गुनाह है। भीतर तक तोड़ देता है। मैं कहना चाह...

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गूगल बॉय - 11 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 11 मशीन आने के कारण अब दुकान का काम बढ़ गया और जल्दी भी होने लगा है। माँ का अधिक समय दुकान पर ही व्यतीत होने लगा है। दुकान...

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जिंदगी मेरे घर आना - 14 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग- १४ नेहा में वही पुरानी चपलता लौट आई थी बस बीच-बीच में रोष की लालिमा की जगह सिंदूरी आभा छिटक आती, चेहरे पर। सहेलियों के बहुत कुरेदने पर भी सच्चाई नहीं आ सकी...

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इक समंदर मेरे अंदर - 16 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (16) अब उसे अच्‍छी नौकरी की बहुत जरूरत थी। वह समाचारपत्रों में नौकरियों के विज्ञापन देखती रहती थी। उसका कॉलेज ग्रांट रोड के प्राइम इलाके में था। पास ह...

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गवाक्ष - 34 By Pranava Bharti

गवाक्ष 34== सत्याक्षरा को पीड़ा में छोड़कर कॉस्मॉस न जाने किस दिशा की ओर चलने लगा । उसके मन में अक्षरा की पीड़ा से अवसाद घिरने लगा था, एक गर्भवती स्त्री को कितना सताकर आया था...

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आद्यक्रांतिवीर और हमारी जिम्मेदारी By Subhash Mandale

आद्यक्रांतिवीर और हमारी जिम्मेदारी भारत के इतिहास में कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं, जिनमें से कुछ दर्ज की गई हैं, जिनमें से कुछ पर किसी का ध्यान नहीं गया। सन 1857 के विद्रोह से पहले...

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BOYS school WASHROOM - 5 By Akash Saxena "Ansh"

हर्षित, विशाल और राहुल प्रिंसिपल रूम से रोते हुए ही बाहर जाते हैँ तो उनकी रोनी शक्लो को देखकर पेओन उन पर तंज कस्ता है.. 'लगता है भईया हो गया काण्ड'... ये सुन कर हर्षित आग ब...

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डर By HARIYASH RAI

डर बहुत परेशान से लग रहे थे धनंजय नागर यहाँ आकर। जब-जब वे जामनगर आते तब-तब बहुत उत्साहित और प्रफुल्लित रहते। वे उन गलियों में जाते जहाँ वे अपने बचपन में गुल्ली-डंडा खेला करते थे। उ...

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छोटी मछली By padma sharma

छोटी मछली होटल से निकल कर मनेन्द्र ने दूर तक जाती सड़क का जायजा लिया । सड़क के एक ओर दुकानों की लंबी कतार थी। दुकानों के ऊपर ऊँचाइयों तक चमकते - दमकते होटल बने हुए थे। सड़क के दूसरी...

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लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा जितेन्द्र शिवहरे (3) दरवाजे की डोर बैल बज रही थी। टीना ने मैजिक आई से झांक कर देखा। बाहर किराना सामान लेकर एक युवक खड़ा था। टीना ने दरवाजा खोल दिया।...

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दास्तानगो - 6 - अंतिम भाग By Priyamvad

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जय हिन्द की सेना - 15 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म पन्द्रह प्रातः आठ बजे के समाचारों में भारतीय सैनिक पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले सैनिकों की सूची प्रसारित हो रही थी जिसे आँगन में धूप व नाश्ते का...

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बात बस इतनी सी थी - 16 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 16. अगले दिन मेरी माता जी गाँव में चली गई । गाँव में हमारा पैतृक घर था, जिसमें मेरे एक ताऊ जी रहते थे । माता जी को स्टेशन पर छोड़ने के बाद मैं घर वापिस लौटा, तो उन...

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चार चतुर की बेकार कथा By Mukesh Verma

चार चतुर की बेकार कथा वे चार थे। चारों बेकार थे। पहिले वे ऐसे नहीं थे। बचपन से ही सबके अपने कारोबार थे, जहाँ कहीं कभी कोई ना तो फिक्र थी और ना ही चिन्ता। एक साथ रहते थे। शुरूआती दि...

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मन्नतों का घर By Dr Vinita Rahurikar

मन्नतों का घर मंदिर तक ऊपर अब तो गाड़ी आज आने लगी है। एकदम मंदिर के सामने तो नहीं लेकिन नीचे के मोड़ तक। पहले तो बड़ी सड़क के पास मैदान में ही गाड़ी खड़ी करके मंदिर तक पैदल आना पड़...

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टोहा टोही By Deepak sharma

टोहा टोही ड्राइवर नया था और रास्ता भूल रहा था| मैंने कोई आपत्ति न की| एक अज़नबी गोल, ऊँची इमारत के पोर्च में पहुँचकर उसने अपनी एंबेसेडर कार खड़ी कर दी और मेरे सम्मान में अपनी सीट छोड़...

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सुरतिया - 4 By vandana A dubey

सरोज और सुधीर, दोनों का ही महीने के पहले हफ़्ते में मूड अच्छा रहता है, तब तक, जब तक बाउजी ने पैसा नहीं दिया . उसके बाद फिर रोज़ के ढर्रे पर ही उनका मूड भी चलने लगता है. लेकिन ये बुरा...

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आपत्ति क्यों आख़िर ?? By Pranava Bharti

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फिर महकेगा जीवन By padma sharma

उपहार सतीश ने बिस्तर पर लेटे - लेटे दीवार घड़ी पर नजर डाली सात बज गये थे । आज बिरजू नहीं आया वर्ना बर्तनों की आवाज आने लगती । सतीश अलसाये हुए बिस्तर पर ही लेटे रहे। चाय पीने की ललक...

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पहला कदम By Pavitra Agarwal

पहला कदम पवित्रा अग्रवाल आज बुआ फिर आई थीं. बुझा बुझा सा मन, शिथिल सा तन, भावहीन चेहरा देख कर मैं दुखी हो जाती हूँ. जब फूफाजी जीवित थे, एक स्निग्ध सी मुस्कराहट बुआ के व्यक्तित्व का...

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