सामाजिक कहानियां कहानियाँ पढ़े और PDF में डाउनलोड करे

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 5 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (5) ’’ एक नीम का वृक्ष था। उस पर एक कौआ रहता था। एक दिन उसे प्यास लगी.......’’ काॅलेज की कैंटीन के सामने से गुज़रते हुए मैंने देखा कि कैंटीन की दीवार से सट कर ब...

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आखा तीज का ब्याह - 8 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (8) इस बार जब वासंती गाँव गयी तो श्वेता भी उसके साथ ही थी| श्वेता के पापा के किसी रिश्तेदार का निधन हो गया था और वे उसकी मम्मा को लेकर वहां चले गए थे और भाई भी ट्र...

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गोधूलि - 4 - अंतिम भाग By Priyamvad

गोधूलि (4) पिता ने इशारा किया। आका बाबा ने उनके हाथ से गिलास ले कर बोतल से थोड़ी कोन्याक डाली, कुछ बूँद गर्म पानी, फिर गिलास पिता को दे दिया। कुछ क्षण गिलास को नाक के आगे लहराते हुए...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 15 By Jayanti Ranganathan

30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 15 by Dhyanendra Tripathi ध्यानेंद्र त्रिपाठी घाटों के गलियारों से पक्के महाल की सीलन भरी जादुई गलियों के कुछ कोनों ने ताउम्र...

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यारबाज़ - 15 By Vikram Singh

यारबाज़ विक्रम सिंह (15) मगर इन सब से हट गए मेरा एक मित्र विनय भी था जो कई सालों से नौकरी के लिए चप्पले घीस रहा था। वो भी किसी सोर्स की तलाश थी उसने एक दिन आकर मुझसे कहा दोमन पासवा...

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जय हिन्द की सेना - 11 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म ग्यारह नीले आकाश के नीचे अपने हवेलीनुमा घर की सबसे ऊँची छत पर श्वेत साड़ी में दरी के ऊपर बैठी शृंगार रहित होने पर भी गौर वर्ण उमा साक्षात्‌ परी लग रह...

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राम रचि राखा - 6 - 3 By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (3) "मैंने तो तुम्हें दोपहर में ही बुलाया था। समय से आ गए होते तो अब तक गेहूँ कट भी गया होता। यह नौबत ही नहीं आती...।" हीरा ने अपने ऊपर आने वाली किसी भी किस्म के लांछन...

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बात बस इतनी सी थी - 10 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 10 अंत में न चाहते हुए भी मैंने मंजरी की कॉल रिसीव कर ली । कॉल रिसीव होते ही वह मेरी और मेरे परिवार की कुशलक्षेम जानने की औपचारिकता पूरी किये बिना ही बोली - "चंदन...

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आखिरी खत By Raja Singh

आखिरी खत राजा सिंह शशि ! तुम्हारी शादी का कार्ड मेरे सामने है। और मैं कार्ड में उभरते तुम्हारे उषाकाल की तरह सुन्दर अक्श को निहार रहा हूॅ जो कि हर पल डूबता एवं उतरता सा लग रहा है।...

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टेबल नम्बर सत्रह... By Dr Vinita Rahurikar

टेबल नम्बर सत्रह... अपने दोस्तों के साथ जब संदीप ने भरी दोपहरी में तालाब के किनारे बने खूबसूरत रेस्तराँ विंड एंड वेव्स के एक हॉल में प्रवेश किया तो कुछ देर तक आँखें अंधेरे में झपक...

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गूगल बॉय - 4 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 4 बाहर से आकर गूगल ने जैसे ही बैठक में अपने औज़ारों का थैला रखा तो पापा-माँ को आहट हो गयी । माँ उठकर उसके लिये पानी लेने च...

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नश्तर खामोशियों के - 3 By Shailendra Sharma

नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 3. "डॉ साहब!" चपरासी सामने खड़ा था. "हाँ" मैंने नजरें उठाईं. "साहब, हम बिसरा गए, डॉ.साहब कहे थे कि आपसे कह दें कि तनख्वाह आ गयी है, उसे ले लें आप."...

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एनीमल फॉर्म - 6 By Suraj Prakash

एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (6) पूरे बरस पशुओं ने गुलामों की तरह काम किया। लेकिन वे अपने काम में खुश थे। वे किसी मेहनत या त्याग से भुनभुनाए नहीं। उन्हें अच्छी तरह...

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निगोड़ी By Deepak sharma

निगोड़ी रूपकान्ति से मेरी भेंट सन् १९७० में हुई थी| उसके पचासवें साल में| उन दिनों मैं मानवीय मनोविकृतियों पर अपने शोध-ग्रन्थ की सामग्री तैयार कर रही थी और रूपकान्ति का मुझसे परिचय...

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जिंदगी मेरे घर आना - 7 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ७ अब लगता है, यह घर का यही माहौल वह भी तो चाहती थी, लेकिन किसी से सहयोग मिले, तब तो। डैडी के लिए तो घर का मतलब था, पेपर, ब्रेकफास्ट, डिनर (लंच वे आॅफिस में...

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इक समंदर मेरे अंदर - 9 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (9) आज वह डॉक्‍टर है और उसका अपना बड़ा अस्‍पताल है। उसने मराठी लड़की से शादी की है। सगाई बहुत पहले हो गई थी। प्‍यारी सी लड़की थी। एक बार मन हुआ तो काम...

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 22 By Pragati Gupta

पूर्ण-विराम से पहले....!!! 22. शिखा यथार्थ को कुछ-कुछ महसूस कर रही थी....तभी खुद को भविष्य के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रही थी| बहुत अपेक्षाएं करना समीर और शिखा की आदतों में नहीं...

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गवाक्ष - 27 By Pranava Bharti

गवाक्ष 27== यह निरीह कॉस्मॉस जहाँ भी जाता, वहीं से अपने भीतर एक नई संवेदना भरकर ले आता । भयभीत भी था किन्तु बेबस भी। उसकी बुद्धि में कुछ भी नहीं आ रहा था, वह क्या करे? मंत्...

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गूंगा गाँव - 10 By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

गूंगा गाँव 10 समाज में दो वर्ग स्पष्ट दिख रहे हैं। एक शोषक वर्ग दूसरा शोषित वर्ग। आज समाज में ऐसे जनों की आवश्यकता है जो पीड़ित जन-जीवन में जूझने के प्राण भर सकें। यह काम कर सकत...

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मृत्‍यु किस्‍तों में By Ramnarayan Sungariya

कहानी-- Mrreduy thatirits में आर। एन। सुनगरया '' कितना ही सोचूँ ..... पर कह नहीं पाती ..... ''...

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कमल पत्ते-सा हरा-भरा गाँव  By कल्पना मनोरमा

अभी दीवाली के दिन आये नहीं हैं और हवा में ठंडक आ गयी है | ये बदलाव प्रकृति के समृद्ध होने का सूचक ही कहा जाएगा क्योंकि अभी तो ये आते हुए सितम्बर की शाम है और बहती हवा में सर्द खुनक...

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आउटडेटिड By Anju Sharma

आउटडेटिड दोपहर बीत चुकी थी! ये उनके एक नींद लेकर जागने का समय था जो अब आती ही कहाँ है! उम्र का तकाजा ही है, कमबख्त ये भी गच्चा दे देती है! किस्से सुनने के लिए उन्हें घेरकर बैठे बच...

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बकरा By Aatish Alok

'दादाजी एक कहानी सुनाओ न...प्लीज़,बहुत दिन हो गए आपसे कहानी सुने हुए।' कीर्ति बोली। 'बाद में बेटा ,अभी नहीं!' रामावतार व्यस्त था सो बोला। 'अच्छा दादाजी ,आपका एक पैर का क्या हुआ?भेड़ि...

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अंतिम पूँजी By Pavitra Agarwal

अंतिम पूँजी पवित्रा अग्रवाल अनूप बहुत गुस्से में था, वह आँगन से ही बोलता हुआ आया -- 'माँ सुना आपने अभी वह क्या कहा रहा था ?' बिना पूछे ही मैं समझ गई कि वह किसके विषय में कह...

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बना रहे यह अहसास - 10 - अंतिम भाग By Sushma Munindra

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 10 पंचानन अस्पताल न जाकर होटेल आया। अपने कमरे में गया। एहतियात से रखे अम्मा के हस्ताक्षरयुक्त विदड्रावल फार्म को थरथराती ऊॅंगलियों से थाम लिया। फार...

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उत्तरकथा अर्थात तुम कहीं नहीं हो .... शेखर !! By Prabhat Milind

उत्तरकथा अर्थात तुम कहीं नहीं हो .... शेखर !! “पहला प्यार जैसे महकी बयार.... पहला प्यार लाए जीवन मे बहार....पहला प्यार....”. जब कभी टेलीविजन खोलती हूँ तो किसी साबुन के विज्ञापन में...

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम By Asha Saraswat

छोटे-छोटे बल्बों की झालरों से घर और दरवाज़े झिलमिला रहे थे ।जैसे हर नन्हा बल्ब दुल्हन की ख़ुशी का इज़हार कर रहा हो।मैं उन्हें निहारकर उनमें अपनी मॉं के हंसते मुस्कुराते चेहरे को मह...

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खनार (खण्डहर) By डा.कुसुम जोशी

खनार (खण्डहर) रमा कान्त उर्फ रमदा के बिल्कुल सड़क से सटे घर के आंगन में कार को पार्क कर उनकी छोटी सी परचून की दुकान में उनसे मुलाकात करने के लिये आगे बढ़ गया, बचपन में एक ही स्कूल...

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CORONA@2020 By Kalyan Singh

आज हम सभी देशवासिओं को इस मुश्किल के दौर में एक दूसरे का सहारा बनने की जरूरत है। हम लड़ेंगे ... और तब तक लड़ेंगे जब तक इस महामारी पर जीत हासिल नहीं कर लेते।इसीलिए सरकार ने इसे रो...

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बीता हुआ कल By Gopal Mathur

बीता हुआ कल गोपाल माथुर रात शाम की दहलीज पर आते आते ठिठक गई थी. शाम ने उसे रोक रखा था. पर केवल रात ही नहीं, बहुत कुछ ठिठका हुआ था. लग रहा था कि ठिठके हुए इस समय से अलग भी कोई अन्य...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 5 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (5) ’’ एक नीम का वृक्ष था। उस पर एक कौआ रहता था। एक दिन उसे प्यास लगी.......’’ काॅलेज की कैंटीन के सामने से गुज़रते हुए मैंने देखा कि कैंटीन की दीवार से सट कर ब...

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आखा तीज का ब्याह - 8 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (8) इस बार जब वासंती गाँव गयी तो श्वेता भी उसके साथ ही थी| श्वेता के पापा के किसी रिश्तेदार का निधन हो गया था और वे उसकी मम्मा को लेकर वहां चले गए थे और भाई भी ट्र...

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राम रचि राखा - 6 - 3 By Pratap Narayan Singh

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आखिरी खत By Raja Singh

आखिरी खत राजा सिंह शशि ! तुम्हारी शादी का कार्ड मेरे सामने है। और मैं कार्ड में उभरते तुम्हारे उषाकाल की तरह सुन्दर अक्श को निहार रहा हूॅ जो कि हर पल डूबता एवं उतरता सा लग रहा है।...

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नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 3. "डॉ साहब!" चपरासी सामने खड़ा था. "हाँ" मैंने नजरें उठाईं. "साहब, हम बिसरा गए, डॉ.साहब कहे थे कि आपसे कह दें कि तनख्वाह आ गयी है, उसे ले लें आप."...

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