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    सच्चा न्यायएक बार एक राजा शिकार खेलने गया। उसका तीर लगने से जंगलवासियों में से क...

  • सात फेरे हम तेरे - सेकेंड सीजन - भाग - २६

    नैना को इस युनिवर्सिटी में आएं हुए एक महीने बीत गए और फिर आज का दिन नैना के लिए...

  • नादान इश्क़ - 3

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  • एसीपी रुद्र - 2

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  • आई कैन सी यू - 33

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  • दिल से दिल तक- 6

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  • बारिश की बूंदें और वो - भाग 5

    अनसुलझी भावनाएँ एक दिन, स्नेहा ने आदित्य से पूछा, "क्या आप अपने जीवन में खुश हैं...

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  • The Devils Journalist Wife - 6

    जया रूम में आ जाति है ,उसे राजीव पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था ।राजीव भी रूम मे...

  • बैरी पिया.... - 46

    नरेन दुबे जी के सामने से गुजरते हुए उनकी ओर देख कर कहता है " क्यों उलझते हैं दुब...

मंटो की विवादित कहानियां By Saadat Hasan Manto

“मेरी तो आप ने ज़िंदगी हराम कर रखी है…. ख़ुदा करे मैं मर जाऊं।” “अपने मरने की दुआएं क्यों मांगती हो। मैं मर जाऊं तो सारा क़िस्सा पाक हो जाएगा...... कहो तो मैं अभी ख़ुदकुशी करने के लि...

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HELMET By Vismay

अहमदाबाद हाइवे, फोर लेन, speed के दीवानोकी भाषामें बोले तो इकदम मखखन रोड. और उसी ऱोड पर इक जगह बहुत भयानक turn आता हैं.accident होने का खतरा :इक धंटे में एक तो होता ही है. मानो अैस...

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हिटलर की प्रेमकथा By Kusum Bhatt

बचपन के दिन थे- चिंता से मुक्त और कौतूहल से भरे पाँवों के नीचे आसमान बिछ जाता। पंख उग आए..., पंखों को फैलाए हम नाना के आसमान में जाने को बेताब..., हम यानि मैं, माँ और छोटी, वैसे हम...

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सुरजू छोरा By Kusum Bhatt

..... तो एक ठहरी जिद के तहत सुरजू ने निर्णय लिया और गांव में मुनादी पिटा दी....
भूकंप आ गया गांव में.....! गोया सुरजू ने पृथ्वी तल पर घुस कर धीरे से खिसका दी हो प्लेट...., गांव के...

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वर्दी वाली बीवी By Arpan Kumar

तेलंगाना एक्सप्रेस लेट हो गई है। पौने दस बजे की जगह अब पौने बारह में चलेगी। मैं वेटिंग रूम में बैठा हुआ था। सहसा, एक चिर-परिचित चेहरे पर मेरी नज़र गई। क्षणांश में मैं जान पाया कि ये...

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तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था By Arpan Kumar

यह कहानी अनुरंजन की कैशोर्य कल्पनाशीलता की है। उसकी अनगढ़ता और दुःसाहस की है। एक ग्रामीण किशोर की अदम्य जिजीविषा भी है यहाँ। जाने क्या है इस कहानी में और जाने क्या नहीं है! कुछ भी ह...

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नदी बहती रही.. By Kusum Bhatt

‘‘सलोनी!’’
किवाड़ तो बन्द थे..., अन्दर कैसे घुस गई...! मैंने ही किये थे इन्हीं हथेलियों से .... तुम रोई थी... छटपटाई थी.... तड़फ कर कितना कुछ कह रही थी... आकुल तुम्हारी हिरनी आँखों...

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नदी की उँगलियों के निशान By Kusum Bhatt

नदी की उंगलियों के निशान हमारी पीठ पर थे। हमारे पीछे दौड़ रहा मगरमच्छ जबड़ा खोले निगलने को आतुर! बेतहाशा दौड़ रही पृथ्वी के ओर-छोर हम दो छोटी लड़कियाँ...! मौत के कितने चेहरे होते हैं अ...

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काँटों से खींच कर ये आँचल By Rita Gupta

क्षितीज पर सिन्दूरी सांझ उतर रही थी और अंतस में जमा हुआ बहुत कुछ जैसे पिघलता जा रहा था. मन में जाग रही नयी-नयी ऊष्मा से दिलों दिमाग पर जमी बर्फ अब पिघल रही थी. एक ठंडापन जो पसरा हु...

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एक अदद फ्लैट By Arpan Kumar

नंदलाल यादव दिल्ली में नौकरी करते हैं और साहिबाबाद में किराए के एक फ्लैट में रहते हैं। लोकल ट्रेन से आना-जाना करते हैं। आई.टी.ओ. पर उतर कर बस से आर.के.पुरम जाते हैं।सुबह शाम सप्ताह...

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