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नादान दिल By Divya Sharma

"वक्त किसी के लिए नहीं रुकता स्वप्निल।"हाँ निशा!सच में वक्त से बड़ा बेवफा कोई नहीं।"निराशा से स्वप्निल ने आह् भरी।एक खामोशी पसर गई दोनों के बीच।श्वेत धवल चाँदनी में निशा...

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सिर्फ जिस्म नहीं मैं By Divya Sharma

मैं सिर्फ एक जिस्म नहीं..शॉवर के नीचे खड़ी हो अपने शरीर को तेज हाथों से रगड़ने लगी।हाथों का दबाव लगातार बढता जा रहा था और आँखों से निकलता सैलाब बंध तोड़कर बह रहा था।शरीर के हर हिस्से...

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घरोंदा और अन्य कहानिया By Prashant Vyawhare

! भाड़ा ! मुंबई शहर सबसे बड़ी समस्या घर की है ! इतना बड़ा शहर है और इस वजह कुछ लोग उसमे भी रास्ते निकल लेते है ! आज कल बंद पडी और बन रही ईमारत के ढांचे भी कुछ लोगो के लिए घर बन गए है...

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अच्छाईयाँ By Dr Vishnu Prajapati

लेखांक – १ मुंबई से रात को निकली बस की ये सवारी सुबह की पहली किरन के साथ अपने आखरी मुकाम तक पहुच चुकी थी शहर की भीड़ में बसने अपनी रफ़्तार कम कर ली थी सुबह की धुप के साथ ये शहर...

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मनचाहा By V Dhruva

जब से होश संभाला पापा को संघर्ष करते हुए देखा है मैंने। फिर भी मम्मी बिना किसी शिकायत के जिंदगी में साथ दें रहीं हैं। हम नोर्थ दिल्ली में रहते हैं। मेरे दो बड़े भाई है रवि और कवि औ...

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ग़रीबी के आचरण By Manjeet Singh Gauhar

इस संसार में सभी तरह के प्राणी रहते हैं। इन सभी प्राणियों में से एक प्राणी इन्सान भी है। जो भगवान द्वारा बनाई गयी सभी चीज़ों में बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत है। इंसान से जुड़ी कु...

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दहलीज़ के पार By Dr kavita Tyagi

उस दिन गरिमा अपने विद्यालय से लौटकर घर पहुँची, तो उसकी माँ एक पड़ोसिन महिला के साथ दरवाजे पर खड़ी हुई बाते कर रही थी। गरिमा जानती थी कि वह महिला, जो उसकी माँ के साथ बाते कर रही थी, क...

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जिंदगी कुछ हसीं कुछ ग़मगीन By Nilakshi Vashishth

हेलो रीडर्स, ये मेरी पहली कहानी हैं .या यु कहु की मेरी अपनी कहानी इस कहानी को लिखने का मेरा मकसद किसी को अपनी तरफ आकर्षित करना नहीं बल्कि जो मेरे दिल में सैलाब अक्सर उमड़ता हैं उसक...

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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) By Yashvant Kothari

खट। खट।।
’’कौन ? ‘‘
’’जी। पोस्टमैन। बाबू जी आपकी रजिस्टी है। आकर ले लें। ‘‘अभिमन्यु घर से बाहर आया। दस्तखत किये। लिफाफा लिया। खोला। पढ़ा। और खुशी से चिल्ला पड़ा।
‘‘मॉ। मॉं मुझे नौ...

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हवाओं से आगे By Rajani Morwal

“जाना है... जाने दो हमें... छोरो, न... चल परे हट लरके ! ए दरोगा बाबू सुनत रहे हो !”
“क्या चूँ-चपड़ लगा रखी है तुम लोगों ने ?” दारोगा ज़रा नाराज़ लहज़े में बोला या ये भी हो सकता है कि...

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