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    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न दृष्टिगोचर हो रहा था...

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  • बैरी पिया.... - 53

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  • साथिया - 124

    तु मेरे पास है मेरे साथ है और इससे खूबसूरत कोई एहसास नही। आज  सुकून मिला है इस ब...

ख़्वाबगाह By Suraj Prakash

एक बार फिर विनय का फोन। अब तो मैं मोबाइल की तरफ देखे बिना ही बता सकती हूं कि विनय का ही फोन होगा। वह दिन में तीस चालीस बार फोन करता है। कभी यहां संख्या पचास पार कर जाती है। और इतनी...

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शेनेल लौट आएगी By Pradeep Shrivastava

ऐमिलियो डोरा को मैं आज भी अपनी पत्नी ही मानता हूं। वह आज भी मेरे हृदय के इतने करीब है, मुझमें इतना समायी हुई है कि मैं उसकी महक को महसूस करता हूं। मुझे अब भी ऐसा लगता है कि जैसे वह...

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नियति By Seema Jain

शिखा की सबसे प्रिय सखी दीपा उसे बार-बार अपनी बहन रिया की शादी के लिए इंदौर चलने का आग्रह कर रही थी । शिखा जानती थी अगर विवाह समारोह भोपाल में होता तो उसकी मां कभी इनकार नहीं करती ल...

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आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची By Rashmi Ravija

ओफ्फ़! कल शाम ही तो वह यहाँ आया है. पर ऐसा लग रहा है मानो हफ़्तों से नज़रबंद है यहाँ. कैसे रह पाते हैं लोग, भला इन छोटे कस्बों में? ठीक है पहले यहाँ एक आदिम बस्ती थी. पर अब तो काफी...

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शकबू की गुस्ताखियां By Pradeep Shrivastava

सुबह पढ़ने के लिए पेपर उठाया तो नज़र शहर में एक नए फाइव स्टार होटल के खुलने के विज्ञापन पर ठहर गई। पेपर के पहले पूरे पेज़ पर एक बेहद खूबसूरत युवती की नमस्ते की मुद्रा में बहुत ही प्रभ...

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हनुवा की पत्नी By Pradeep Shrivastava

हनुवा धारूहेड़ा, हरियाणा से कई बसों में सफर करने, और काफी पैदल चलने के बाद जब नोएडा सेक्टर पंद्रह घर पहुंची तो करीब ग्यारह बजने वाले थे। मौसम में अच्छी खासी खुनकी का अहसास हो रहा था...

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अपनी अपनी मरीचिका By Bhagwan Atlani

शायद ही कोई ऐसा धंधा करने वाला दुकानदार होगा जिसे लोग कई नामों से पुकारते हों। उसे हेय दृष्टि से देखते हों। नाम सुनकर मुँह बिचका देते हों। लेकिन मेरे धंधे पर ये सब बातें लागू होती...

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ठग लाइफ By Pritpal Kaur

सविता ने तली हुयी मछली का एक बड़ा सा टुकड़ा मुंह में डाला था. मछली बेह्द स्वाद बनी हुयी थी. वह जल्दी जल्दी खा रही थी. सविता खाना हमेशा बहुत जल्दी में खाती है. जैसे कहीं भागना हो. इसी...

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छूटी गलियाँ By Kavita Verma

शाम होते ही मुझे घर में अकेलापन खाने को दौड़ता है इसलिए कॉलोनी के पार्क की ओर चल देता हूँ। आज भी शाम से ही पार्क में आ गया दो तीन चक्कर लगाये थक गया तो एक बेंच पर बैठ गया। काफी देर...

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा By Pradeep Shrivastava

चार घंटे देरी से जब ट्रेन लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रुकी तो ग्यारह बज चुके थे। जून की गर्मी अपना रंग दिखा रही थी। ग्यारह बजे ही चिल-चिलाती धूप से आंखें चुंधियां रही थीं। ट्रेन की एसी बो...

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