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इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य पढ़ें ...................
तभी दरवाजा खुलने की आवाज आती है! रतन छुप जाता है| नयन अंदर बड़बड़ाते...
प्रकरण - २३जिस समय फातिमा और मैं विद्यार्थियों को अभ्यास करा रहे थे उस समय फातिम...
एक पाठकीय प्रतिक्रिया एक तानाशाह की प्रेम कथा :कुर्सी,कव्वे ,घोडा और बाजे वाला य...
भाग -5 मगर इस डिसीज़न ने मेरे कॅरियर पर बहुत बुरा प्रभाव डाला। मदर से एक लंबे गैप...
'मम्मी जी, आज इतनी सारी गाजरें क्यों मंगवाई हैं?''अरे बहु, निशा और न...
सुबह सुबह रसोई से पराठों की खुशबू आ रही है और दीवाकर जी मंदिर में गायत्री मंत्र...
डॉक्टर ने रिज्यूम करने के लिए बोल दिया है"क्या?मैं उसकी बात सुनकर चोंका था"डॉक्ट...
अब आगे,अर्जुन अपनी बात कहकर आराध्या के करीब बढ़ने लगता है वही आराध्या, अर्जुन को...
साल 2070 था। मानवता ने विज्ञान और तकनीक में इतनी उन्नति कर ली थी कि अब आर्टिफिशि...
《नमस्ते दोस्तो तो आज एक दिल टुटे हुए आशिक़ की कहानी बताने जा रहा हू गौर से सुनियेगा और जानियेगा》एक बार विजय अपने दोस्तो से मिलने गया था कॉलेज वहा पे आज उसका पेहला दिन भी था सारे क...
शेयरबाजार व फिल्मनिर्माण के व्यवसाय में तूफानी उतार चढाव की लोमहर्षक दास्तान जुऐं की लत से परिवार के बर्बाद व फिर से आबाद होने की रोंगटे खड़े करने वाली कहानी लेखक : ब्रजमोहन श...
वीरपुर गाँव ऐसी धरती पर बसा था, जिसे कई बार इंद्र देवता शायद भूल ही जाते थे कि वहाँ भी धरती प्यासी होगी। पानी के लिए तड़पती धरती में दरारें पड़ गई होंगी और वह दरारें चीख-चीख कर चिल...
एक था ठुनठुनिया। बड़ा ही नटखट, बड़ा ही हँसोड़। हर वक्त हँसता-खिलखिलाता रहता। इस कारण माँ का तो वह लाड़ला था ही, गाँव गुलजारपुर में भी सभी उसे प्यार करते थे। गाँव में सभी आकर ठुन...
माघ का महीना है। दिन ढल चुका है। केंटाकी प्रदेश के किसी नगर के एक मकान में भोजन के उपरांत दो भलेमानस पास-पास बैठे हुए किसी वाद-विवाद में लीन हो रहे थे। कहने को दोनों ही भलेमानस...
शुक्र गुजार था वह सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा का जिसने उसे ऐसी सूरत बख्सी थी।लम्बा कद,गोरा रंग, आकर्षक नैन नक्स और व्यक्तित्व।कुल मिलाकर ऐसी सीरत पायी थी कि उसके आगे हीरो भी फीके लग...
"भैया ! कितनी देर करोगे चलने मैं "आया अदिति !"भैया ! आपको अजीब नही लगता नाम सुनने में ..पैहरगढ़"लगता तो है पर क्या करे मां ने बुलाया है जाना तो पड़ेगा न चल अब "...
चरित्रहीन........(भाग-1)मैं वसुधा पाठक दिल्ली में ही पैदा हुई, यही पढी लिखी, नौकरी और फिर शादी भी यहीं....। दिल्ली के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ मैं....पर मैं खुद को खुद से मिलाना ही...
ज़िंदगी जब बदरंग और बेमेल होती है तो अपना साया तक साथ छोड़ देता है। क्या हुआ जब धनाढ्य जमींदार राजवीर सिंह की बेटियों ने अपने छोटे भाई मनोहर की मंदबुद्धि का फायदा उठाकर उसकी सारी सम्...
वैसे नाम तो मेरा पप्पू है पर अब पप्पू कम लोग कहते हैं मुझे, क्योंकि मैं बड़ा हो गया हूं और इतने बड़े लड़के को पप्पू कहना शायद लोगों को अजीब सा लगता हो, इसलिए पिछले कुछ सालों से लोग...
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