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चाय पर चर्चा By राज कुमार कांदु

नुक्कड़ व चौराहों पर चल रही राजनीतिक चर्चाओं को शब्द रूप देने का प्रयास करती 2017 में लिखी हुई एक धारावाहिक रचना !*********एक देहाती बाजार में नुक्कड़ पर एक चाय की दूकान पर रामू, क...

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बसंती की बसंत पंचमी By Prabodh Kumar Govil

ये दुख बरसों पुराना था। ये न मेरा था और न तेरा। ये सबका था। हर दिन का था। हर गांव का था। हर शहर का था।
नहीं- नहीं, ग़लती हो गई। शायद गांव का नहीं था, केवल शहर का था। जितना बड़ा शह...

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कजरी. By Ratna Pandey

कजरी झोपड़पट्टी में रहने वाली बहुत ही मासूम, सुंदर-सी कमसिन एक बंजारन थी। बचपन से अब वह नाता तोड़ कर जवानी से रिश्ता जोड़ रही थी। पन्द्रहवाँ साल पूरा होने ही वाला था। उसके बाद नारी...

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बागी स्त्रियाँ By Ranjana Jaiswal

समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ ढांचे बना रखे हैं उनमें फिट न होने वाली स्त्रियों को बागी स्त्रियाँ कह दिया जाता है।ऐसी स्त्रियों को पारंपरिक समाज एक खतरे की तरह देखता है और उन्हें तो...

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना By Priya Maurya

कहते है की सच्ची मोहब्बत किसी के रंग -रूप, वर्ग-धर्म, देखकर नही होती है। सच्ची मोहब्बत तो सीरत से होती है। इश्क़ इबादत होता है अगर एकबार हो जाये तो भूलना ना मुमकिन सा हो जाता है। च...

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मानो या न मानो By Koushik B

ये बात २००५ की तब हम लखनऊ इसी आलमबाग रेलवे क्वार्टर में रहते थे। हमारा परिवार तीसरे माले में रहता था। एक रात सोटे हुए अचानक मेरी आंख खुल गई। में बाथरूम की तरफ से बड़ा तो मुझे किसी...

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पश्चाताप. By Ruchi Dixit

"पश्चाताप " यह रचना मैने प्रतिलिपि पर वेवसीरीज के तौर पर लिखी थी जिसे अब बिना परिवर्तित करे मै उपन्यास की रूप मातृभारती पर देने जा रही हूँ | प्रतिलिपि पर मैने इसे दस भागो मे प्रस...

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अजब गांव की गजब कहानी By shama parveen

यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है इसका किसी भी गांव या व्यक्ति से कोई संबंध नही है।

एक गांव था जिसका नाम सुंदर नगर था। ये गांव भी और गांव की तरह ही था। मगर यहां के नियम थोड़े अजी...

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बेटे की चाहत By shama parveen

वैसे तो आज हम इक्कीस वी सदी में जी रहे है और खुद को सभ्य और मॉर्डन बता रहे है। हम पिछली उन सब बुराइयों से दूर है जिन्हे पहले लोग अपनी शानो शौकत मानते थे। जैसे जाति में भेद भाव ऊंच...

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माही By Naziya Ansari

क्या कहा तुमने ? प्यार ? वो भी किसी अलग मजहब वाले लड़के से ! .... नहीं ऐसा नहीं हो सकता मैं आज ही तुम्हारे अब्बू से कह कर तुम्हारा रिश्ता पक्का करवाती हूं।
गुस्से में माही की अम्म...

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कजरी. By Ratna Pandey

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बागी स्त्रियाँ By Ranjana Jaiswal

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना By Priya Maurya

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ये बात २००५ की तब हम लखनऊ इसी आलमबाग रेलवे क्वार्टर में रहते थे। हमारा परिवार तीसरे माले में रहता था। एक रात सोटे हुए अचानक मेरी आंख खुल गई। में बाथरूम की तरफ से बड़ा तो मुझे किसी...

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वैसे तो आज हम इक्कीस वी सदी में जी रहे है और खुद को सभ्य और मॉर्डन बता रहे है। हम पिछली उन सब बुराइयों से दूर है जिन्हे पहले लोग अपनी शानो शौकत मानते थे। जैसे जाति में भेद भाव ऊंच...

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माही By Naziya Ansari

क्या कहा तुमने ? प्यार ? वो भी किसी अलग मजहब वाले लड़के से ! .... नहीं ऐसा नहीं हो सकता मैं आज ही तुम्हारे अब्बू से कह कर तुम्हारा रिश्ता पक्का करवाती हूं।
गुस्से में माही की अम्म...

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