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कहने को शातिर दिमाग़ वाला स्पिन निशाने बाज़ था।प्लान था...
एक बार एक आचार्य जी कक्षा में पढ़ा रहे थे | कक्षा के सभी छात्र रुचिपूर्वक उन्हें...
अब आगे,अपनी बात कहते हुए अराध्या अपने मुलायम हाथों से अर्जुन के सीने पर वार कर र...
माया ने कहा देखा भाई तीन महीने कैसे बीत गए और छोटू भी तीन महीने का हो गया।विक्की...
हम खुद लगते हैं रेलवे ट्रैक और वक्त के साथ भागती हुई हमारी जिंदगी रेलगाड़ी।चलती...
1. शेर और चूहाएक जंगल था। जंगल का राजा शेर था। वह पेड़ की छाया में सो रहा था। वह...
इस कहानी में, आदित्य और स्नेहा की अनपेक्षित मुलाकात ने उन्हें एक नए सफर पर ले...
भारत की रचना / धारावाहिकतेरहवां भाग उसे देखकर तो रचना के तो तन-बदन में एक सिहरन-...
वो एक दुकान के सामने जा कर खड़ी हो जाति है .. वो पूरी दुकान कपड़ो से घेरी हुई थी...
बेस्ट फ्रेंड सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा (1) 1. चमक अभी निकलेगी क्या ? पूछ क्यों रही है, ये तो रोज का ही रूटीन है। आज रहने दे न यार ! तुझे नहीं जाना क्या ? आज मन नहीं है...
मैं वर्तमान को खुलकर जीने और कल्पना को सच मानने में विश्वास करता हूँ. जब भी किसी यात्रा में जाता हूँ उस वर्तमान की ढेरों कल्पना करता हूँ, जिसे एक समय बाद मुझे जीना है. उस कल्पना मे...
ये कहानी कॉलेजिएट स्कूल के लड़के की है। वे लड़का बोहात ही सुंदर और स्मार्ट और टैलेंटेड वी होता था ।उस लड़के का स्कूल में पहला दिन था।और उस लड़के को फ्रेंडस बनाना बिल्कुल अशा नही...
एक लड़की अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाती है सारी परेशानियों को कैसे सहती है
माँ, माँ होती है आज राकेश जल्दी तैयार होकर वृद्धाश्रम पहुँचा। आज उसकी माँ का 80वाँ जन्मदिन है। उसने माँ के चरर्णस्पर्श किये, उनका मुँह मीठा करवाया। आशीर्वाद लिया। पूछा - ‘माँ, कोई...
DISCLAIMERप्रस्तुत कथा संपूर्ण: काल्पनिक है। इसका किसी भी घटना, व्यक्ति, स्थान, समय, जाति, लिंग, धर्म से कोई संबंध नहीं है। ये कथा का उद्देश्य किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुँचाना नह...
डॉ. सतीश राज पुष्करणा ड्राइंग-रूम उमेश बाबू के ड्राइंग-रूम में प्रवेश करते हुए दीनानाथ ने कहा, “उमेश बाबू! ड्राइंग-रूम है तो बस आपका ! इतना सुन्दर, सुसज्जित तथा रख-रखाव वाला | एक-ए...
रुको राजन ,क्या तुम अक्षरवंशिका के सम्राट अभय हो ?" "कौन हो तुम , ओर हमारे पथ में आकर हमें नाम से बुलाने का दंड जानते हो ?" "तुम्हारा क्रोध ही तुम्हारे निर्दोष...
ऋचा पैंसठ की हो चुकी, बच्चों के शादी-ब्याह --सब संपन्न ! तीसरी पीढ़ी भी बड़ी होने लगी पूरे -पूरे दिन लगी रहती सबकी फ़रमाइशें पूरी करने में बहुत आनंद मिलता उसे फिर बहुत सी बातें...
बहुत दिनो से सोच रहा था कि आज कल के रिश्तों में वो बात क्यूँ नहीं हैं जिस रिश्तों की कहानी मैं अपने पापा माँ या फिर दादादादी से सुनता था ...क्यों अब लोगों की रिश्ते निभाने की चाह स...
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