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"अब हमें भी शहर छोड़ देना चाहिएकुलदीप लौटकर आया तो पत्नी से बोला था।"क्यो?"पति की...
कहानी में अब तक हम ने पढ़ा की लूसी ने एक बेचैनी की शिद्दत वाली रात गुजारी फिर वह...
गर्मियों की एक शाम थी। सूरज ढल रहा था और पूरे गांव में हल्की-सी ठंडक का एहसास हो...
60 सोच निहाल ने अपन पिता से बहुत पूछा तो उनको बताना पड़ा, “उन्होंने बड़े ही आराम...
गाँव के पालीवालों की वास में एक साथ उगे नीम और पीपल के पेड़ के चारों ओर एक बड़ा चौ...
सातफिर आऊँगा इतवार, बाईस जनवरी २००६ ठंड अभी कुछ कम नहीं...
भय का गह्वर (एक अंतहीन अंधकार)राहुल और उसके साथियों की गुमशुदगी के बाद, गांव में...
एक advertisement company के एक डिपार्टमेंट में 6 एम्प्लॉय के बीच बतें हो रही थी ...
खण्ड काब्य-जीवन सरिता नौंन (लवणा सरिता) ‘परोपकाराय बहन्ति नद्याः’ अर्पण...
रूही ने सारी फाइल्स समेटी और अपने केबिन में चली गई रूही भगवान जी आप मेरी मदद करन...
मंगला जैसे ही सुबह स्कूल पहुंची उसे स्टाफ रूम में एक महिला बैठी हुई दिखाई दी। ध्यान से देखने पर वह उसे पहचानते हुए बोली “तुम तो मंजू हो ना!” उसने भी हैरानी से मंगला की ओर देखते हु...
नोएडा की एक पचास मंजिला सोसायटी, जहाँ हर तरफ़ बस इमारतें ही इमारतें, एक-दूसरे का मुँह ताकती हुई इमारतें ! नीचे बने हुए चिल्ड्रन्स पार्क में खेलते हुए बच्चे और इसी पार्क के ठीक सामने...
आज सुबह सुबह उठकर मैं तयार हो रहीं थीं, कॉलेज जो जाना था। कॉलेज चले जाने के बाद मुझे पता चला को इलेक्शन के वजहसे कॉलेज को 3 दिनों की छुट्टियाँ दी गईं हैं, मैं भर से होस्टल आ गईं।फ़...
यह कहानी बहुत छोटी है, परंतु इससे सीख बहुत बड़ी मिलती है । आत्मविश्वास एवं कर्मठता की सीख मिलती है, निडरता की सीख मिलती है और साथ में यह भी सीख मिलती है कि असंभव कुछ भी न...
शीर्षक: नियति ...can’t change by anybody लेखक: प्रतीक पाठक कहानी के किरदार :1) डॉ.अमित नायक – प्रोफेसर 2) मालिनी - डॉ.अमित नायक की सहायक 3) रंगनाथ उर्फ रंगा - डॉ.अमित नायककी कॉ...
मैंने जब तक ताजमहल नही देखा था तो मुझे लगता था की दुनिया कुछ भी कहे ताजमहल इतना भी खूबसूरत नही है, क्योंकि ताज की तस्वीर मेरे कमरे की दीवार से लगी थी और मैं यही हक़ीक़त मानता था कि...
मैं जब भी आपके बारे में सोचती हूँ तो महात्मा गाँधी की शक्ल सामने आ जाती है। बुढ़ापे में आप लगभग उन्हीं की तरह लगते थे। खल्वाट सिर, लम्बी नासिका, छोटी आँखें, पतले होंठ और लम्बा दुबला...
वह केवल एक राज़ था जिसे मैं जानना चाहती थी मेरे अंदर जो छिपा था । मैं खुद अपने अंदर के बदलाव से दंग थी ना जाने कैसी असमंजस थी वो जिससे निकालना मेरे लिए मुश्किल सा होता जा रहा था ।श...
कभी सोचा न था१.अकेला हूँअकेला हूँशव में,श्मशान मेंशिव मेंतीर्थ में,तीर्थाटन मेंतथागत की भाँति,आँधी में,अँधियारे मेंधूप में,धूल मेंराह में,राह से आगे।अकेलाधुँध की भाँतिकोहरे की तरह,...
यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित हैं, इस कहानी का मुख्य पात्र (ज़फ़र) यह एक काल्पनिक नाम हैं, उसकी दूर की नज़र हल्की भर कमजोर थी ,____कभी डर,कभी दर्द,कभी आहट, कितना कुुछ सिमट जाता इ...
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