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    ग्यारह ज़मीनी सचाई                        गुरुवार, छब्बीस, जनवरी 2006      आज गण...

फागुन के मौसम By शिखा श्रीवास्तव

राघव और तारा, बचपन के पक्के दोस्त जिनकी दोस्ती का आधार बनी गेम पार्लर में खेली जाने वाली वीडियो गेम्स जिसके वो दोनों ही दीवाने थे। बचपन बीता और खेल की जगह ली कैरियर के प्रति उनकी च...

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शोहरत का घमंड By shama parveen

आलिया का आज कॉलेज में आखिरी दिन है। इसलिए आज वो कॉलेज में पार्टी कर रही है सभी के साथ क्योंकि अब वो कॉलेज नही आयेगी। अब वो एग्जाम देगी और उसके बाद कॉलेज से छुट्टी।

पार्टी खत्म ह...

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पागल By Kamini Trivedi

पागल,, हां सही नाम से पुकारा करता था वो मुझे। (हंसते हुए) पागल ही तो हूं मैं उसके लिए , उसके पीछे , उसके प्यार में।"

रात के 1 बज चुके थे । आंखों से नींद कोसों दूर । आज उसे प...

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तलाक By aruhi

आरफाज ऐसा मत करो प्लीज ,,,,  मैं मर जाऊंगी,, ,,,,तुम्हें यकीन क्यों नहीं हो रहा,,,,,खुदा का वास्ता आरफास,,,,,,ऐसा मत करो ,,,,,,,हमारे रिश्ते पर भरोसा करो,,,,,मैं तुमसे मोहब्बत की ,...

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कामवासना से प्रेम तक By सीमा कपूर

एक सभ्य समाज में पुरुष और महिला के बीच सुंदरता से भरे संबंधों के बारे में यदि कहां जाए तो ----उसे कामसूत्र कहते हैं (क्या है ,कामवासना )और (क्या है, प्रेम), कामसूत्र से संबंधित कई...

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सुखा पत्ता️ By Alone Soul

ये कहानी है बस दो जोड़ी जूतों जैसी जिसमे सिर्फ प्यार भी मिलता ही हैं और जब खत्म भी होता है तो सिर्फ घिस घिस के , ये वो जूते है जो साथ में एक रिश्ते की नीव रखते है , जो कदम ताल को...

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दर्द दिलों के By Anki

आरवी अंधेरे कमरे में बैठी न जाने कहां खोई हुई है। उसकी आंखों से पानी की जगह मानो उसके सपने टूट कर बह रहे हो। तभी आवाज आती है.. आरवी दरवाजा खोलो। आरवी क्या हुआ यार .. आरवी तुम सुन र...

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गोमती, तुम बहती रहना By Prafulla Kumar Tripathi

अपने जन्म वर्ष 1953 से अपने जीवन की युवावस्था और दाम्पत्य तथा नौकरी शुरुआत तक की अवधि का आत्मगंधी लेखा- जोखा मैंने अपनी आत्मकथा के पहले खंड “ आमी से गोमती तक “ में दे दिया है जिसे...

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ By राज कुमार कांदु

पूरे गाँव में रामलाल काका की ही चर्चा थी। जब से उस विशाल घर परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी, उन्होंने कई क्रांतिकारी फैसले लिए जिनके खिलाफ उनके पुरखे सदैव ही रहे।
सा...

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दो बूँद आँसू By Pradeep Shrivastava

सकीना यह समझते ही पसीना-पसीना हो गई कि वह काफ़िरों के वृद्धाश्रम जैसी किसी जगह पर है। ओम जय जगदीश हरे . . . आरती की आवाज़ उसके कानों में पड़ रही थी। उसने अपने दोनों हाथ उठाए कानों को...

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