हीर... - 25 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 25

बचपन की मासूमियत और उस मासूमियत में करी गयी निश्छल सी बातें कानों में जाकर एक अलग ही तरह का रस घोल देती हैं जिसके एहसास से मन एकदम से प्रफुल्लित हो उठता है वैसा ही कुछ हुआ मधु के साथ जब उन्होंने नन्हीं सी ज्योति को ये कहते सुना कि "मुझे लाजीव से छादी कलनी है!!" 

रोते रोते अचानक से कही गयी ज्योति की ये मासूम सी बात सुनकर मधु ताली बजाकर जोर से हंसी और "अरे... हाहाहा!!" कहते हुये उन्होंने ज्योति को अपने गले से लगा लिया... 

मधु और ममता तो ज्योति की इस बात पर हंस ही रही थीं.. राजीव भी ताली बजाकर ऐसे हंसा जैसे उसे ये बात सुनकर बड़ा मजा आया हो... 

ज्योति को दुलारते हुये मधु ने कहा- बस इतनी सी बात.. इसमें रोने की क्या बात है बेटा? अच्छा ये बताओ.. आप तो बहुत छोटी हो, राजीव से शादी करके क्या करोगी? 

ज्योति आज जैसे खूब सारी बाल लीलायें करने के मूड में हो.. वैसे रोते रोते हंसने लगी और मधु से बोली- हम दोनों थेलेंगे ना फिल आंती..!! 

मधु ने भी पूरी तरह से ज्योति की इस मासूमियत का मजा लेते हुये पूछा- आप वैसे भी तो खेलते हो ना राजीव के साथ फिर शादी करके क्यों खेलना है? 

ज्योति ने कहा- अले पल थोली छी देल ही तो थेलती हूं ना.. छादी कलके उछके छाथ लहूंगी तो जादा थेलुंगी ना!! 

"अच्छा तो ये बात है!!" कहते हुये मधु हंसने लगीं और... अपने बचपन की इस मासूम सी शरारत को याद करके राजीव के साथ कानपुर लौट रही चारू भी ब्लश करते हुये कार की पिछली सीट पर बैठे बैठे हंसने लगी थी... 

राजीव को सही सलामत अपने साथ कानपुर ले जाने की खुशी में चारू बचपन की इस बात को याद करते हुये अपनी गोद में सिर रखकर लेटे राजीव को बहुत प्यार से लगातार देखे जा रही थी और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये उसके ऊपर जैसे न्यौछावर सी हुयी जा रही थी... 

राजीव के सिर पर प्यार से हाथ फेरते फेरते चारू ने बड़े प्यार से अपने दांत भींचते हुये उसकी चिन को अपनी हथेली से दबाया और "पागल लड़का!!" कहते हुये राहत की गहरी सांस लेकर खिड़की से बाहर की तरफ़ देखने लगी... 

चूंकि चारू भी बहुत थकी हुयी थी और उसका सुकून अब उसकी आंखों के सामने.. उसकी गोद पर सिर रखकर लेटा आराम से सो रहा था और चारू ने राजीव की बात मधु से करवाकर अपना वादा भी पूरा कर लिया था इसलिये मन ही मन उस सुकून को महसूस करते हुये उसे भी हल्की हल्की नींद आ गयी और वो भी अपनी जगह पर बैठे बैठे सो गयी थी... 

सुबह के करीब साढ़े छ: बज चुके थे और दिल्ली से कानपुर तक का लंबा सफ़र भी लगभग पूरा हो चुका था और चारू... राजीव को सही सलामत अपने साथ लेकर कानपुर पंहुच चुकी थी!!

चूंकि मधु या अवध दोनों में से किसी को ये नहीं पता था कि कल चारू दिल्ली गयी थी और राजीव उसके साथ ही वापस आ रहा है इसलिये कानपुर पंहुचने के बाद राजीव ने चारू के कहने पर पहले उसे उसके किदवई नगर स्थित उसके घर के बाहर ड्रॉप किया.. उसके बाद खुद रतनलाल नगर स्थित अपने घर चला गया..

अभी तक राजीव का जो हाल हम सबने देखा वो महज कल का देखा था कि किस तरीके से राजीव ने अंकिता की बेरुखी से परेशान होकर अपना इतना बुरा हाल कर लिया था लेकिन ये सिर्फ कल ही कल की बात नहीं थी, इससे पहले भी बहुत कुछ हुआ होगा... राजीव ने खुद के साथ इससे पहले भी कुछ ना कुछ गलत तो जरूर किया होगा!!

कहते हैं कि हर अति का एक सुनिश्चित अंत जरूर होता है शायद कल जो हुआ वो राजीव के दिल के दर्द की अति ही थी इसीलिये चारू का उसे उस गलीच और गंदी हालत में देखना और फिर फोन पर अपनी मां अपने पिता की रोती हुयी आवाज़ सुनना... राजीव के दिल को अंदर तक कचोट सा गया था और उसकी अंतरात्मा उसे कहीं ना कहीं इस बात को लेकर बहुत परेशान कर रही थी कि "तूने अपने साथ जो किया उसके बाद अगर तुझे कुछ हो जाता तो... तेरे मां बाप का क्या होता!! तूने जो कुछ भी किया वो अपने साथ नहीं किया.. अपनी मम्मी और अपने पापा के साथ किया है जिनकी कोई गलती नहीं थी उल्टा उन्होंने तो तेरे ऊपर अपनी कोई मर्जी भी नहीं थोपी कभी और हमेशा तेरे हर डिसिजन के साथ खड़ रहे... फिर भी!! राजीव तूने बहुत गलतियां करी हैं... तुझे शर्म आनी चाहिये!!" 

आज राजीव को अपनी गलतियों का एहसास हो रहा था शायद इसीलिये टैक्सी से उतरने के बाद वो थोड़ी देर तक तो अपने घर के बाहर बुत सा बना खड़ा रह गया, उसके कदम जैसे घर की तरफ़ आगे बढ़ ही नहीं रहे थे... उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो अपनी मां को रुलाने के बाद उनका सामना किस मुंह से करे!! 

राजीव का मन अंदर ही अंदर उसे कचोट रहा था, अपने होंठो को दांतों से दबाकर अपनी आंखों में आंसू लिये वो बस अपने घर की तरफ़ देखे जा रहा था पर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि वो... आगे बढ़कर घर के अंदर चला जाये!! 

क्रमशः