Roopanjali singh parmar की किताबें व् कहानियां मुफ्त पढ़ें

अरुंधति

by Roopanjali singh parmar
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विजय.. विजय.. दरवाजा खोलो.. विजय.. अरे अरु तुम.. इतनी रात को मेरे कमरे में आई हो सब ठीक है ...

दुःख या अवसाद

by Roopanjali singh parmar
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कुछ लोग इतने दुःखी होते हैं, कि जरा सी बातें ही इनकी आंखों को भर देती हैं। दुःख इस ...

भाभी

by Roopanjali singh parmar
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आप मेरी शादी कराना चाहती हैं ना, ठीक है तो सुनो.. मैं भाभी से शादी करना चाहता हूँ.. चटाक.. ...

अश्लील क्या है.. नज़रिया या कपड़े??

by Roopanjali singh parmar
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एक शब्द है जिस पर अक्सर ही बहुत सारे विचार पढ़ने या सुनने को मिलते हैं.. और वो शब्द ...

पार्थ आपका बेटा है

by Roopanjali singh parmar
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नैना अपनी माँ अरुणा जी की लाड़ली बेटी थी। उसकी माँ ने अकेले ही उसको पाला था। नैना के ...

जो रोम रोम में है, उसे कैसे भूल जाऊं

by Roopanjali singh parmar
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समय और नैना एक दूसरे को कॉलेज के दिनों से जानते थे। समय उसका सीनियर था और उससे 2 ...

मायका और ससुराल

by Roopanjali singh parmar
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रीना की शादी को चार साल हो गए थे, उसका एक बेटा भी था अभय, जो एक साल का ...

संध्या

by Roopanjali singh parmar
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संध्या कुछ दिनों के लिए अपनी भाभी के मायके आई थी। यूँ तो पारिवारिक रिश्तों की वजह से आरव ...

अधूरी ख्वाहिश

by Roopanjali singh parmar
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वो बस दोस्त बनना चाहती थी और बन गई .. भगवान से जैसे उसे सब कुछ मिल गया.. एक ...

वो कौन था

by Roopanjali singh parmar
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जब मैंने उसे पहली बार देखा था.. white shirt और blue denim में खड़ा एक 6 फ़ीट का लड़का। ...