..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 5 Miss Sundarta द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 5

...!!जय महाकाल!!...

अब आगे...!!

मंदिर...!!

आज द्रक्षता के पापा और दादा जी की बरसी थी.....इसीलिए आज मान्यता और द्रक्षता मंदिर जाकर.....पंडित जी को अन्न और वस्तु का दान कर रही थी.....
अभी वो दोनों दान में बिजी थी.....जब एक बुजुर्ग महिला जो कब से द्रक्षता को देखे जा रही थी.....वोह अपने साथ खड़ी मध्य उम्र की महिला.....जो उनकी बहु थी.....
उनसे बोली:सुरुचि.....हमें ऐसा लग रहा है.....कि इन्हें हम जानते है.....लेकिन याद नहीं कर पा रहे.....!!
सुरुचि भी उनकी बात से सहमत होते हुए:हां.....मां.....मुझे भी तब से यही लग रहा था.....!!
द्रक्षता की नजर अनायस ही उन पर चली गई.....जब उसने उन्हें अपने आप को देखते हुए पाया.....तो वोह भी मुस्कुरा दी.....मान्यता उसके पास आई.....और उससे कुछ कहने लगी.....
सुरुचि और उनकी सास के चेहरे पर.....यह देख आश्चर्य के भाव आ गए.....वो दोनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगी.....
सुरुचि आश्चर्य से:मां यह तो मान्यता है.....ना.....!!
उन्होंने हां में सिर हिला दिया.....
सुरुचि बोली:क्या हम उनके पास चले.....मां.....!!
वोह दोनों मान्यता के पास चली गई.....मान्यता की नजर जब उन पर पड़ी.....तोह वह खुद भी बहुत हैरान थी.....द्रक्षता को कुछ समझ नहीं आ रहा था.....की यह सब इतनी हैरानगी से एक दूसरे को क्यों देख रहे है.....
कुछ पल की खामोशी के बाद सुरुचि बोली:मान्यता आप.....हमें समझ नहीं आ रहा.....कि यह आप है.....ऐसा लग रहा है.....सपने में जी रहे हो.....!!
मान्यता भी नासमझी से:हम भी आप दोनों को यहां पर देख हैरान है.....कितने सालों के बाद आप से मिल रहे हैं.....!!
फिर विनीता जी(सुरुचि की सास) जो द्रक्षता को देखते हुए:क्या यह तुम्हारी बेटी है.....मान्यता.....!!
मान्यता:हां.....यही मेरी बड़ी बेटी है.....!!
सुरुचि विनीता जी को एक नजर देख.....जो उनकी तरफ ही देख रही थी.....उनकी नजरों को समझते हुए.....
मान्यता से बोली:मान्यता अगर आप बुरा ना मानो.....तो हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं.....!!
मान्यता:बोलिए.....सुरुचि क्या कहना है आपको.....!!
फिर द्रक्षता से:बेटा.....तुम यह काम संभालो.....मै बात कर लू.....!!
सुरुचि:आप जानती है.....हम क्या कहना चाहते हैं.....यही की अब इन दोनों की शादी कर देनी चाहिए.....और आपके पति ने भी हमसे ये वादा किया था.....की जब द्रक्षता बड़ी हो जाएगी.....तब वो द्रक्षता को हमारे खानदान की बहु बनाएंगे.....वोह तो रहे नहीं.....अब आप बताइए.....!!
मान्यता उनके लहजे को समझते हुए:मुझे भी समझ आ रहा है.....लेकिन यह फैसला में खुद कैसे कर सकती हु.....यह द्रक्षता के जिंदगी का सवाल हैं.....उसे यह निर्णय खुद लेने का अधिकार है.....मैं अपने विचार उसके ऊपर नहीं थोपना चाहती.....शादी जैसे बंधन के लिए एक लड़की को.....अपने आप को तैयार करना होता है.....यह आप भी बहुत अच्छी तरह समझती हैं.....!!
सुरुचि:हम जानते है.....लेकिन आप उसकी मां हैं.....आप उससे पूछ के तो देखिए.....!!
मान्यता:ठीक है.....आप इतना कह रही है.....तो मैं जरूर उससे इस बारे में बात करूंगी.....उसका जो भी उत्तर होगा.....मैं वही आपसे कहूंगी.....उस पर ज्यादा दबाव नहीं डालना चाहती मैं.....!!
अब तक द्रक्षता अपना काम खत्म कर वापस लौट आई थी.....
सुरुचि ने उसे देख मुस्कुराते हुए:अभी क्या कर रही हैं.....आप.....!!
द्रक्षता कुछ वक्त तक.....अपनी मां को देख हैसिस्टेट करने के बाद कोमलता से:मै अभी कॉलेज के लास्ट ईयर की स्टूडेंट हु.....!!
विनीता जी उसके सर पर हाथ फेर कहती है:सदा खुश रहे.....बहुत दुख झेल लिए आपने इतने कम समय में.....!!
द्रक्षता बस उन्हें देखती रह जाती है.....
मान्यता और द्रक्षता उनसे विदा लेकर वापस घर आ गई.....आज संडे था जिस वजह से द्रक्षता का कॉलेज नहीं था.....इसलिए घर आने के बाद उसने कुछ देर आराम किया.....फिर अपने टाइम पर होटल के लिए निकल गई.....
उसकी स्कूटी अभी सिग्नल में रुकी हुई थी.....जब उसने अपने साइड की कार में देखा.....तब उसे एहसास हुआ कि.....यह तो वही आदमी है.....
उसने अपने मन में सोचा:यह आदमी आज कल.....मुझे कुछ ज्यादा नहीं दिख रहे.....रोज कही न कही दिख ही जाते है.....!!
कार में बैठे सात्विक.....जो पूरी तरह अपने लैपटॉप में व्यस्त थे.....अपने ऊपर किसी की नजरें महसूस कर.....उस तरफ नजर घुमा दिए.....
तभी सिंगल खुल गया.....तो द्रक्षता अपनी स्कूटी ले कर आगे निकल गई.....और आगे आए टर्न में चली गई.....
सात्विक उसके पीछे के हिस्से को देख कर समझ चुके थे.....की वोह द्रक्षता ही थी.....उसके एक ख्याल ने ही उनका मन बहुत खुश हो गया.....और होठों पर एक दिलकशी मुस्कान छा गई.....जो केवल कुछ समय के लिए ही था.....

रात के समय...!!
द्रक्षता के घर...!!

सबने खाना खा लिया था.....द्रक्षता किचेन में पड़े बर्तनों को साफ कर रही थी.....जब वो सब काम खत्म कर किचेन से बाहर आती है.....उसकी मां सोफे पर बैठी हुई थीं.....और कुछ गहरी सोच में खोई हुई थी.....वो उसे ऐसे देख उसके पास चली गई.....मान्यता जब द्रक्षता को अपने पास देखती हैं.....तो उसे अपने पास आकर बैठने को बोलती है.....
द्रक्षता उनके पास आकर चिंतित स्वर में:मां आप बहुत परेशान लग रही है.....कुछ बात है क्या.....!!
मान्यता उसे देखते हुए:बात तो है.....और पूरी तरह तुमसे जुड़ी हुई है.....!!
द्रक्षता और परेशान होते हुए:क्या मां.....बताइए ना इतना सस्पेंस क्यों क्रिएट कर रहे हैं.....!!
मान्यता उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए:बेटा.....जब तेरा जन्म हुआ था.....तब तेरे पापा ने अपने एक बहुत करीबी दोस्त.....से वादा किया था.....कि उनके घर की बहु तु ही बनेगी.....!!
द्रक्षता हैरानी से:क्या.....!!
मान्यता उसके देख:हां बेटा.....वोह सब बहुत बड़े लोग है.....(कुछ समय रुक कुछ सोच)आज मंदिर में जो दो औरतें मिली थी ना.....वोह उसी घर से है.....और उन्होंने मुझे ये बात याद दिलाई.....जो मैं कब का भूल चुकी थी.....लेकिन तेरे पापा का किया गया वादा.....उन्हें अब तक याद है.....मैं तुझसे बस इतना पूछना चाहती हूं.....कि क्या तू अभी शादी के लिए तैयार है.....मैं तुझ पर कोई दबाव नहीं बनाऊंगी.....आखरी फैसला सिर्फ तेरा होगा.....!!
द्रक्षता जो इतना सब कुछ सुन पूरी तरह हैरान थी:मां आप क्या चाहती हैं.....!!
मान्यता प्यार से:मेरे चाहने न चाहने से कुछ नहीं होता.....जिंदगी तेरी है तुझे उस बंधन में बंधना है.....शादी तुझे करनी है.....तू हां कहेगी.....तब भी तेरे साथ हु.....ना कहेगी.....तब भी.....!!
द्रक्षता कुछ सोच कर:मां मुझे कुछ समय चाहिए..…अभी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.....!!
मान्यता:तुझे जितना समय चाहिए.....तू ले.....और सब कुछ सोच समझ कर फैसला लेना.....!!
द्रक्षता ने बस हां में सर हिला दिया.....उसके बाद दोनों अपने अपने कमरे में सोने चली गई.....
द्रक्षता बिस्तर पर आकर.....अपने जगह पर लेट जाती है.....और अपनी मां के द्वारा बताए गए बातों के बारे में सोचने लगी.....बार बार उसे अपने आंखों के सामने सात्विक का चेहरा आने लगता है.....वो बार बार अपने करवटें बदलने लगती हैं.....जब काफी देर तक उसे नींद नहीं आती.....तब वो उठ कर बैठ जाती है.....
द्रक्षता मन ही मन सोचते हुए बड़बड़ाने लगती हैं:यह क्या हो रहा है मुझे.....यह शादी की बात से इतनी घबराहट क्यों हो रही है.....और बार बार उस आदमी का चेहरा क्यों नजर आ रहा हैं.....!!
थोड़ा रुक कुछ सोच कर:क्या.....मैं उनके के लिए कुछ महसूस करने लगी हु.....लेकिन यह कैसे हो सकता हैं.....मैं उनसे ज्यादा मिली भी नहीं.....बात भी नहीं की.....!!
फिर कुछ समय रुक:वो तो बहुत अमीर है.....अगर मैं उनके बारे में कुछ महसूस करने लगी.....तो भी हम दोनों का कोई मेल नहीं.....!!
इतना सोच वोह बहुत उदास हो जाती हैं.....वोह अपनी जगह से उठ कर बाल्कनी में चली जाती हैं.....ठंडी हवाओं के झोंके.....जब उसे छू कर जाते हैं.....वोह सिहर जाती हैं.....उसकी आँखें नम हो जाती हैं.....
जो कुछ हुआ.....वह सब सोच सोच कर वोह परेशान हो चुकी थी.....और अब ये बात उसे और परेशान कर रही थी.....वोह गहरी सोच में खो चुकी थी.....जब उसे नींद आने लगी.....वो उठ कर सोने चली जाती हैं.....

सुबह का समय...!!
द्रक्षता का घर...!!

द्रक्षता उठ कर नहा धोकर तैयारहो चुकी थीं.....अपने घर के मंदिर में पापा और दादा जी के फोटो के सामने हाथ जोर खड़ी थी.....उन्हें एकटक देखते जा रही थी.....
वोह बोलती हैं:अब जो होना होगा.....हो जाएगा.....मैं यह शादी करूंगी.....उस आदमी को अपने जहन में दुबारा आने नहीं दूंगी.....मुझे नहीं पता कि यह सब कैसे होगा.....पापा दादा जी.....लेकिन अब मैं यही करूंगी.....!!
फिर वहां से उठ कर.....डाइनिंग टेबल पर आ जाती है..... जहां पहले से उसका परिवार बैठा हुआ था.....वो सबको नाश्ता परोसती है.....
मान्यता उसकी उदासी देख पा रही थी.....लेकिन वो कुछ ना बोली.....सब खा कर उठ चुके थे.....
तब दृशा बोली:मां स्कूल के फंक्शन.....के लिए आज रिहर्सल है.....तो आने में देर हो जाएगी.....तो परेशान मत होना.....!!
मान्यता उसे देख:ठीक है.....देरी का बहाना तो दे दिया तूने.....लेकिन इसी का इस्तेमाल कर के.....कही घूमने मत चली जाना.....!!
दृशा चिढ़ कर:मां.....मैं क्या आपको घुम्मकड़ लगती हु.....जो कही का बोल कही चली जाऊंगी.....!!
द्रक्षता दृशा का समर्थन करते हुए:अरे मां अभी कही घूमने नहीं जाएगी.....तो क्या बुढ़ापे में जाएगी.....!!

...!!जय महाकाल!!...

क्रमशः..!!