..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 2 Miss Sundarta द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 2

...!!जय महाकाल!!...

अब आगे...!!

द्रक्षता अपने काम में बिजी थी....तभी मैनेजर आकर उसे रूम नंबर 1269 में सर्विस देने को बोलते है....द्रक्षता ऑर्डर लेकर वहां जाती है.....वो एरिया वि आई पाई लोगों के लिए था.....वो उस रूम का दरवाजा खटखटाती है.....कुछ देर बाद रूम का दरवाजा खोला जाता है.....
सामने खरा सख्श राघव था.....वो उसे अंदर आने को बोलता है.....द्रक्षता अंदर जाकर देखती है.....तो एक सोफे पर सात्विक और दीपक बैठे थे.....ओर उसके ऑपोजिट सोफे पर एक मिडिल एज पर्सन और एक जावन आदमी था.....
सात्विक को देख उसकी धड़कने फिर असामान्य हो जाती हैं.....सात्विक का ध्यान उस पर नहीं था.....क्योंकि वो अपने सामने बैठे व्यक्तियों से कुछ डिस्कशन कर रहे थे.....वो ऑर्डर को टेबल पर रख देती है....
तब कही जाकर सात्विक का ध्यान उस पर जाता है.....सात्विक की नजरें उसे देख बेचैन हो रही थी.....उन्हें नहीं पता था कि ये क्यों ओर कैसे हो रहा है.....फिर उस पर से नजरे हटा लेते है.....
अपना काम कंप्लीट कर द्रक्षता वहां से चली जाती है.....
सात्विक ने डिस्कशन को कंटिन्यू रखते हुए कहा:मिस्टर मेहता....क्या हमें सच में आपके प्रोजेक्ट पर इन्वेस्ट करना चाहिए.....क्या हमें इससे कोई नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा.....!!
मिस्टर मेहता जो सात्विक की कोल्ड नजरों ओर ठंडे औरे से ऑलरेडी बहुत डरे हुए थे.....
वह कहते है:हम इसमें पूरी कोशिश करेंगे कि.....आपको किसी भी तरह का नुकसान का झेलना पड़े.....!!
सात्विक ने उसे घूरते हुए जवाब दिया:मैं कोशिश में नहीं.....रिजल्ट में बिलीव करता हु.....!!
उसके इतना कहते ही मिस्टर मेहता अपने डर को कंट्रोल करते हुए.....
कहते हैं:जी ऐसा ही होगा.....तो क्या हम कॉन्ट्रैक्ट साइन कर सकते है.....!!
सात्विक:ठीक है.....लेकिन नुकसान होने पर.....खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहिए.....!!
मिस्टर मेहता कॉन्ट्रैक्ट पेपर्स उनके सामने कर देते है.....तो सात्विक उसे पढ़ कर साइन कर देता है.....
फिर सारी फॉर्मेलिटी पूरा कर सात्विक उठ कर दीपक ओर राघव के साथ चले जाते है.....
वह तीनों जब होटल से बाहर जा रहे होते है.....तब सात्विक को द्रक्षता दिख जाती हैं.....जो कि किसी कस्टमर का ऑर्डर ले रही थी.....वो उसे देख ठहर जाते है.....ओर उस निहारने लग जाते हैं.....
क्या है इसमें ऐसा.....लेकिन कुछ तो है.....इसकी इस चेहरे में.....जो मुझे बार बार अपनी तरफ अट्रैक्ट करती है.....!!
सात्विक के मन में ये चल रहा था....की उनके सोच पर विराम लगते हुए.....
दीपक की आवाज आई:भाई तुम आज इतने एब्नार्मल क्यों बिहेव कर रहे हों.....हर समय चलते चलते रुक जा जा रहे हो.....ओर सोचने लग जा रहे हो.....सोचना ही है तो घर जाकर सूचियों.....ये भी कोई सोचना की जगह है.....!!
सात्विक कुछ सोचते हुए:मुझे यह लड़की चाहिए.....!!कहते हुए उन्होंने द्रक्षता की तरफ इशारा कर दिया.....
उनके इशारे को फोलो कर दीपक ओर राघव दोनों हैरान रह गए.....क्योंकि सात्विक लड़कियों की तरफ नजरे उठाकर भी नहीं देखता था.....ओर आज उनको लड़की चाहिए.....ये उन दोनों को डाइजेस्ट नहीं हो पा रहा था.....
राघव बोला:सर आप नींद में तो नहीं है.....!!हैरान होते हुए.....
सात्विक उसे बेहद ठंडी निगाहों से घूरने लगे.....
फिर कुछ सोच कर उसे देखते हुए बोले:मुझे इस लड़की की सारी जानकारी चाहिए.....कल तक का वक्त है तुम्हारे पास.....!!
दीपक जो अभी तक इस सदमे से बाहर नहीं आ पा रहा था.....
बोला:सात्विक तुम्हारे दिमाग में कही शॉट सर्किट हुआ है.....क्या.....तुम्हे और लड़की चाहिए.....!!
सात्विक उसकी बात को पूरी तरह इग्नोर करते हुए.....बाहर चले गए.....
वहीं द्रक्षता अपना काम खत्म कर.....घर आ चुकी थी.....
मान्यता उसे देखती है.....तो उसके पास आ कर कहती है:ज्यादा थकान हो गई क्या आज.....!!
उसने कहा:नहीं मां.....ऐसा कुछ नहीं है.....!!
मान्यता:सब समझती हु मैं.....साफ दिख रहा है.....तेरे चेहरे पर की कितनी थकी हुई है.....जा जाकर जल्दी से मुंह हाथ धूल कर आ.....मैं खाना लगाती हु!!
द्रक्षता:ठीक है.....मां!!
मान्यता खाना लगाकर.....सभी को खाने के लिए बुला लाती है.....सभी खाने बैठ जाते है.....
तभी दृशा सभी से बोली:मां.....दी.....कुछ दिनों में मेरे स्कूल में एनुअल प्रोग्राम्स होने वाले हैं.....तो उसी में मैने पार्टिसिपेट करने का सोचा है.....!!
द्रक्षता बोली:तो इसमें इतना सोचना कि क्या बात है.....तुम्हे जो करना है करो.....कोई तुम्हे नहीं रोकेगा.....किस दिन है प्रोग्राम.....बता दो उस दिन हम सभी तुम्हारे लिए जरूर जाएंगे.....!!
दृशा खुश होते हुए:क्या सच में.....थैंक यू दी.....आप बहुत अच्छी हो.....आपके तरह तो सबको होना चाहिए.....!!
दर्शित जो खाना खा रहा था.....
उसकी खुशी देख बोला:हो गया चुड़ैल.....अब खाना खा.....या भूखे सोने का इरादा है आज तेरा.....!!
दृशा चिढ़ कर मान्यता से:मां.....समझो लो अपने बेटे को.....बहुत बड़बोला हो गया है.....!!
मान्यता दर्शित को आंख दिखाते हुए:क्यों मेरी बेटी को चिढ़ा रहे हो तुम.....
दर्शित थोड़ा नाटक करते हुए:आज सच में लग रहा है.....की कोई मुझ से प्यार नहीं करता.....सब इस बड़बोली से प्यार करते है.....मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं है....यहां.....!!
द्रक्षता उसे रोकते हुए:बस बहुत हो गया.....खाना खाओ अब शांति से.....सब!!
थोड़ी देर बाद सब अपना अपना खाना खत्म कर.....अपने कमरे में चले जाते है.....द्रक्षता सारे बर्तन साफ करके अपने रूम में जाती है.....तो देखती है कि दृशा सो चुकी थी.....वो भी अपने साइड में सोते हुए लाइट्स ऑफ कर देती है.....
वो आंख बंद करती है.....तो उसे सात्विक का चेहरा नजर आने लगता है.....तो वह झट से आंखे खोल देती है.....लेकिन काफी देर करवट बदलने पर जब उस नींद नहीं आती.....तब वो उठ कर बाल्कनी में चली जाती है.....
ओर बाहर देखते हुए सोचती हैं:क्यों मुझे उस आदमी की सकल बार बार नजर आ रही है.....जिसे मैं जानती तक नहीं.....क्यों हो रहा है मुझे ऐसा.....पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ.....!!
काफी देर तक वो उसी के खयालों में खोई रहती है.....फिर अन्दर आकर सो जाती है.....
यहां द्रक्षता सो चुकी थी.....ओर दूसरी तरफ किसी की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी.....

मुंबई के लग्जरियस इलाके में जहां ज्यादा से ज्यादा 10 से 12 बंगले होंगे.....उन्हीं में से एक बंगला.....जो दिखने उन सारे बंगलो में से सबसे खूबसूरत और रॉयल था.....जिसके चारों तरफ बॉडीगार्ड घिरे हुए थे.....उनके पहनावे को देखकर पता लग सकता था.....की वो सब कितन बड़े परिवार की रखवाली करते है.....
उस बंगले के अंदर बहुत सारे रंग बिरंगे पेड़ पौधे लगे हुए थे.....जो उस जगह को ओर अधिक मनमोहक बना रहे थे.....सामने बना फव्वारा बहुत सुंदर था.....
बंगलो की नक्काशी में बहुत करी मेहनत की गई होगी.....ये बखूबी पता चल रहा था.....सफेद रंग का ये बंगलो बहुत सुंदर था.....
उस बंगले के फोर्थ फ्लोर में.....एक आदमी जो शर्टलेस था.....वो बहुत बेचैन नजर आ रहा था.....वो लगातार स्मोक किए जा रह था.....
वह अपने आप से कहते हैं:क्या था.....तुम्हारी उन नजरों में जो अभी तक मुझे बेचैन किए हुए है.....लेकिन जो भी था.....तुम अब मेरी हो.....सिर्फ मेरी.....सात्विक सिंह राजपूत की.....और अब तुम्हे मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता.....तुम्हे मेरा होना होगा.....चाहे प्यार से या फिर जबरदस्ती ही सही.....!!उनकी आवाज में एक जुनून झलक रहा था.....

तभी कोई उनके कमरे का दरवाजा खटखटाता है.....वो सिगरेट ऐश ट्रे फेंक कर.....कमरे का डोर ओपन कर देते है.....तो सामने एक 48 वर्षीय महिला खड़ी थी.....

सात्विक उनसे पूछते हैं:मां आप इतनी रात को मेरे कमरे में.....कोई बात है क्या.....!!
सुरुचि कहती है:क्यों.....मैं नहीं आ सकती यहां.....कोइ रीजन चाहिए मुझे यहां आने के लिए.....!!
सात्विक बोले:नहीं मां.....ऐसी कोई बात नहीं है.....आपको अब तक सो जाना चाहिए था.....!!
सुरुचि बोली:मैं यहां अपने बेटे से पूछने आई थी.....की वोह खाना खाएगा.....या बाहर से खा कर आया है.....उसकी बीवी तो है.....नहीं.....इसलिए मां हूं तो मुझे ही उसका ख्याल रखना है.....!!
सात्विक परेशान हो कर:मां आप फिर से ये शादी वाली बात बीच में घुसा रही हैं.....मैंने कहा था ना.....अभी मुझे इस शादी जैसी आफत से दूर रहना है.....फिर भी आप बार बार इसी का जिक्र करती है.....!!
सुरुचि उन्हें समझते हुए:बेटा तुम्हारी उम्र हो चुकी है.....शादी की.....तभी तो बोल रही हु.....और तुम्हारे जीवन में भी तुम्हारी साथी आ जाएगी.....जो तुम्हारा ख्याल रखेगी.....मेरा भी मन करता है.....अपनी बहु से सेवा करवाने का.....सास बनने का....!!
सात्विक को उनकी बाते सुन कर द्रक्षता का ख्याल आ जाता है.....
तो वो उनसे बोले:मां मैं तैयार हु शादी के लिए.....लेकिन आप उसी लड़की से मेरी शादी कराएंगी.....जो मुझे पसंद आयेगी.....वरना नहीं करूंगा.....!!
सुरुचि उनकी बात सुन खुश होते हुए:सच में.....तुम मान गए शादी के लिए.....मैं बहुत खुश हु.....अब मुझे भी मेरी बहु मिलेगी.....हाय.....मैं भी अब सास बन जाऊंगी.....बेटा तुझे कोई पसंद है क्या.....तो बता मैं कल ही उसके घर जाकर.....उसका हाथ तेरे लिए मांगूंगी.....!!
सात्विक कुछ सोचते हुए:मां.....मैं आपको ये बात बाद में बताऊंगा.....ओर हा.....मैने बाहर ही खाना खा लिया था.....तो आप जाकर सो जाएं.....शुभ रात्रि!!
सुरुचि खुशी से:शुभ रात्रि.....तूं भी जा कर सो जा.....!!

क्रमशः..!!