मज़बूत बनकर लौटा समन्दर LOTUS द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मज़बूत बनकर लौटा समन्दर

भा आह के मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ लेकर

सतीष करता पार्टी के कुशल रणनीतिकार देवेंद्र फडणवीस ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराष्ट्र के असली चाणक्य यही हैं। बाकी भी अपने को चाणक्य कहलाते हैं सबके बी चाणक्य है या फिर घोषणाओं के लिए चाणक्य हैं। देवेंद्र फडणवीस के मार्ग में इस बार बाहरी कम, लेकिन घर के अंदर के ज्यादा पुग्मन दिख रहे थे। भानपा को महाराष्ट्र में जिस तरह का प्रचंड बहुत मिला था, उससे उन्हें परिणाम आने के दूसरे या तीसरे दिन ही शपथ ले लेनी चाहिए थी। क्योंकि 132 सीटें अपने यम पर जीते देवेंद्र फडणवीस की उनके मित्र कों के पांच विधायकों ने तत्काल बिना शर्त समर्थन दे दिया था। गठबंधन में चुनाव लड़ने वाले राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित पवार ने अपने 41 विधायकों के साथ तत्काल समर्थन देने का एलान कर दिया था, लेकिन फिर भी उनके नाम का एलान होने में लगभग दस दिन लग गया। यह दर्शाता है कि अंदर ही अंदर गड़बड़ करने की, खेल बिगाड़ने की भरपूर कोशिशे की गई, लेकिन चतुर चाणक्य देवेंद्र ने उन सब बाधाओं को पार करते हुए आखिरकार शपथ ग्रहण कर ही लिया। वह भी राजभवन के दरबार हाल या चारों ओर से धिरे स्टेडियम में नहीं, बल्कि ऐतिहासिक व विशाल आजाद मैदान में जिसमें देश के सर्वमान्य नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोपी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे दिग्गजों की उपस्थिति थी। इतना ही नहीं, साधु-संतों, महंतों और भाजपा व एनडीए शासित राज्यों के 26 मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में अव्यतम विव्यतम रूप में कार्यक्रम हुआ। गुरुवार के दिन मुहुर्त के हिसाब से यह शपथ ग्रहण समारोह रखा गया था। देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ मराती में ली और अपने माता-पिता का नाम जोड़ते हुए ली। इसकी चारों ओर चर्चा हो रही है। वैसे अपने नाम के साथ पिता का नाम जोड़ना महाराष्ट्र में प्रथा है, लेकिन देवेंद्र ने अपनी मां का नाम जोड़कर शपथ लिया। इसके बाद उनके दोनों ही उपमुख्यमंत्रियों ने भी मां का नाम जोड़ते हुए शपथ ग्रहण किया। वैसे मुहूर्त के हिसाब से शाम साढ़े पांच बजे जैसे ही 'मी देवेंद्र सरिता गंगाधरराव फडणवीस ईश्वर साक्ष्य शपथ घेतो कि...' की आवाज सुनाई पड़ी, मुंबई के ऐतिहासिक आजाद मैदान में तालियां बजने लगीं, तालियां ऐसीं बजी की पूरा इलाका गुंजायमान हो उठा। शपथ ग्रहण का साक्षी बनने के लिए उस विशाल मैदान में इतनी प्रचंड भीड़ थी कि सरसों डालो तो भी वह जमीन तक नहीं गिरती। उपस्थित जनसमुदाय अपने लाडले देवा भाऊ के शपथ ग्रहण को प्रत्यक्ष रूप में देखना चाह रहा था। इसके लिए महाराष्ट्र के कोने कोने से माताएं, बहनें, किसान, मजदूर, बगायतदार सब आए हुए थे। मैदान में देवा भाऊ आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं, वंदे मातरम, भारत माता की जय के नारे लगातार लग रहे थे। वैसे शपथ ग्रहण शुरू होने के एक घंटे पहले तक पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लेकर मीडिया में अफवाहें फैली हुई थी। उनके सरकार में शामिल होने या बाहर से समर्थन देने की बातें हो रही थी, लेकिन' अंत भला तो सब भला' के अनुसार एकनाथ ने सब भला कर दिया। वह सरकार का हिस्सा बन गए हैं। नाराजगी नाट्य खत्म हो गया है। अब सबको एक साथ मिलकर जनादेश के अनुरूप काम करना है। वरना जिस जनता ने इतना प्रचंड जनादेश देकर सत्ता में भेजा है वहीं जनता खिलाफ जाकर विरोधी फैसला भी सुना सकती है। इसलिए दोनों उपमुख्यमंत्रियों को अपनी अति महत्वाकांक्षाओं को त्याग कर जनता की सेवा करनी चाहिए।