हीर... - 35 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 35

अंकिता को अपने सपने में खुद से दूर जाते और दूर जाते हुये उसे ये कहता देख कि "हम तुमसे शादी नहीं कर सकते!!" राजीव का मन बहुत जादा परेशान होने लगा था... इतना परेशान कि वो सुबह से ही बेचैन सा होकर इधर उधर किनछा किनछा सा ऐसे घूमे जा रहा था जैसे उसके मन को कहीं एक जगह सुकून ही ना मिल पा रहा हो, बार बार उसका मन करता कि वो फिर से अंकिता को कॉल करे और बार बार वो ये सोचते हुये कि "अंकिता ने फोन ना रिसीव किया तो!!" अपना मन मसोस कर अपना मोबाइल साइड में रख देता और फिर "भगवान... प्लीज ऐसा मत होने देना, मैं अंकिता को किसी और के साथ देख नहीं पाउंगा...!!" सोचकर मन ही मन रोते हुये अपनी जगह पर चुप बैठ जाता और बस अंकिता के बारे में ही सोचता रहता... 

अंकिता को फोन करूं या ना करूं... इसी पसोपेश में फंसे राजीव का आधा दिन गुज़र चुका था, ना तो उसे कहीं सुकून मिल रहा था और ना ही वो ठीक से कुछ खा पा रहा था... अंकिता को लेकर हद से जादा परेशान हो रहे राजीव ने आज ना तो घर में किसी से ठीक से बात करी थी और ना ही उसने चारू का फोन रिसीव किया था...फोन रिसीव करना तो दूर उसने चारू के किसी भी मैसेज का रिप्लाई तक नहीं किया था.... 

"भगवान मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते... मेरी अंकिता मुझसे दूर नहीं हो सकती, हे भगवान मैं क्या करूं.. हे भगवान मैं क्या करूं!!" जहां एक तरफ़ ये सब सोच सोच कर राजीव जैसे पागल सा हुआ जा रहा था वहीं दूसरी तरफ़ अचानक से उसका बदला हुआ एटीट्यूड देखकर इधर घर में मधु और ऑफिस में बैठी चारू का मन उसकी चिंता करते हुये हद से जादा परेशान हो रहा था.... 

'प्यार' और वो भी एक ऐसी लड़की से जो प्यार के लायक नहीं थी.... नतीजा सामने था!! उस एक लड़की की वजह से ना जाने कितनी जिंदगियां... आपस में उलझ चुकी थीं और वो लड़की अपनी करतूत के अंजामों से अंजान.. अपनी जिंदगी के सारे मजे लेने में बिजी थी..... 

मार्च का महीना था... दिन लंबे होने लगे थे और शाम के करीब सात बजने को थे, सुबह से परेशान राजीव से जब नहीं रहा गया तब वो अपनी बाइक से घर से कहीं चला गया!! 

राजीव का मन कहीं नहीं लग रहा था और "अंकिता को कॉल करूं या ना करूं??" इसी पसोपेश में फंसा राजीव कानपुर की सड़कों पर बेवजह ही कभी इस इलाके से उस इलाके तो कभी उस इलाके से इस इलाके... बस घूमे जा रहा था लेकिन उसे उसके इस सवाल का जवाब मिल ही नहीं रहा था कि वो "अंकिता को कॉल करे या.. ना करे!!" 

काफ़ी देर तक इधर उधर घूमने के बाद राजीव ने ये सोचते हुये कि "एक बार अंकिता को कॉल कर ही लेता हूं, जो होगा देखा जायेगा!!" अपनी बाइक साइड में लगायी और इतने दिनों के बाद आज फाइनली अंकिता को कॉल कर ही दिया लेकिन नतीजा वही... ढाक के तीन पात!! अंकिता ने पांच छ: बार कॉल करने के बाद भी राजीव का फोन रिसीव नहीं किया.... 

अंकिता के आज भी फोन ना रिसीव करने से हद से जादा इरिटेट हो चुका राजीव ये सोचते हुये कि "यार ये कैसी लड़की है... एक बार बात करने में आखिर दिक्कत क्या है, मर जाके कहीं.. मर जा तू!!"... मन ही मन बुरी तरीके से खीजते हुये घर वापस चला गया... 

राजीव को घर वापस आते आते रात के करीब साढ़े आठ बज चुके थे और अवध भी ऑफिस से घर आ चुके थे इसलिये उन्होंने जब राजीव का उतरा हुआ और उदास चेहरा देखा तो उन्होंने उससे पूछा - क्या बात है राजीव बहुत डल डल सा लग रहा है? 

अपने मन में छुपी इरिटेशन और अंकिता के लिये गुस्से को छुपाते हुये राजीव ने कहा- कुछ नहीं पापा बस थोड़ी सी तबियत ऐसी ही लग रही है, असल में घर में रहने की आदत नहीं है ना... तो बहुत बोरियत सी हो रही है, दोस्त भी सारे अब बाहर हैं तो उनसे भी नहीं मिल सकता इसलिये मन नहीं लग रहा कहीं, बस और कोई बात नहीं है!! 

राजीव अपनी बात अवध से बोल ही रहा था कि तभी मधु किचेन से चाय लेकर वहां आ गयीं और चाय की ट्रे मेज पर रखकर सोफे पर बैठते हुये बोलीं- बस कुछ दिनों की बात है, चारू कह रही थी कि अप्रैल के फर्स्ट वीक से तेरी ज्वाइनिंग हो जायेगी... फिर बिजी होने के बाद मन अपने आप लग जायेगा!!

राजीव मन ही मन इतना उदास था कि मधु की बात सुनकर उसने बस "हम्म्म्!!" बोला और चाय का कप हाथ में लेकर टीवी देखते हुये चुपचाप चाय पीने लगा लेकिन उसके बाद कुछ नहीं बोला....

अवध और मधु भी जानते थे कि राजीव इससे पहले कभी इतने दिनों के लिये घर पर नहीं बैठा इसलिये उसकी बातों से उसकी मानसिक स्थिति को समझते हुये उन दोनों ने भी उसको फिर नहीं टोका...

चाय पीने के बाद मधु जहां एक तरफ़ किचेन में खाना बनाने के लिये चली गयी थीं वहीं दूसरी तरफ़ राजीव.. अवध के साथ ड्राइंगरूम में बैठा टीवी देख तो रहा था लेकिन वो चुप था.... कुछ भी नहीं बोल रहा था और मन ही मन ये सोचते हुये परेशान हो रहा था कि "यार एक बार फोन रिसीव करने में क्या दिक्कत है!!"

इसी तरीके से परेशान होते होते राजीव ने डिनर किया और फिर अपने कमरे में सोने के लिये चला गया....

राजीव सोने के लिये अपने बिस्तर पर लेट जरूर गया था लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं बस... अंकिता ही थी और मन में थी.. अंकिता को लेकर सिर्फ और सिर्फ इरिटेशन, अंकिता ने राजीव के साथ जो किया उसके बाद वो खुद अपने आप को इस दुनिया का सबसे असहाय इंसान समझने लगा था... उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो करे तो आखिर करे क्या!!

इन्हीं सब उलझनों में परेशान होकर करवटें बदल रहे राजीव की आंखों में रात के साढ़े ग्यारह बजने के बाद भी बिल्कुल नींद नहीं थी.... वो जबरदस्ती एक करवट लेकर अपनी आंखे बंद किये हुये लेटा ही था कि तभी उसके मोबाइल की वॉट्सएप टोन बजने लगी और करीब तीन चार मैसेज उसके वॉट्सएप पर आ गये...

पहले तो राजीव ने ये सोचकर मैसेज चेक नहीं किया कि "चारू के ही होंगे... सुबह देख लूंगा, जागा हुआ देखेगी तो बात करने की जिद करेगी और मेरा बात करने का बिल्कुल मन नहीं हो रहा है!!"

ये बात सोचकर राजीव चुपचाप अपनी जगह पर लेटा रहा लेकिन करीब दस मिनट बाद जब उसने अपने मोबाइल की स्क्रीन ऑन करी तब... वो एकदम से झटके से उठकर बैठ गया क्योंकि नोटिफिकेशन में उसने देख लिया था कि मैसेज चारू का नहीं बल्कि... अंकिता का है!! 

" इतने टाइम बाद अंकिता का मैसेज!!" ये सोचते हुये हैरान होकर राजीव ने जैसे ही मैसेज खोलकर पढ़े... उसकी तो मानो दुनिया ही उजड़ गयी हो... वैसे वो किसी बच्चे की तरह खिसियाते हुये खुद से बोला- नहीं... ये नहीं हो सकता, ये नहीं हो सकता.. मेरी अंकिता किसी और से शादी नहीं कर सकती, हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ!!

अंकिता के मैसेज पढ़ने के बाद अपनी बात खुद से कहते कहते राजीव बहुत दुख करके रोने लगा था क्योंकि अंकिता ने मैसेज में लिखा था कि "(1)आज इतने दिनों बाद तुम्हें हमारी याद कैसे आ गयी... (2)खैर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता.. हम तुमसे कभी बात नहीं करेंगे (3)तुम भी हमारा पीछा छोड़ दो... (4) हमारी शादी फिक्स हो गयी है.... (5)अब कॉल मत करना..." 

ये था अंकिता का राजीव के कॉल का जवाब..... जो उसके लिये भले नॉर्मल था लेकिन राजीव... राजीव की बची कुची खुशियां और अंकिता के वापस आने की सारी उम्मीदें... अपने साथ बहा ले गया था!!

क्रमशः