हीर... - 18 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 18

कमरे का फर्श साफ़ करने के बाद राजीव तो नहाने के लिये चला गया था लेकिन चारू... चारू अभी भी अपनी जगह पर हाथ बांधे खड़ी..आंसुओ से भरी अपनी लाल हो चुकी आंखों से बाथरूम के गेट की ही तरफ़ देखे जा रही थी और लगातार सुबकियां लेती जा रही थी!!

इस तरीके से खड़े होकर बाथरूम की तरफ़ देखते हुये चारू को राजीव की आज की हालत देखने के बाद वो दिन याद आने लगा था जब----

=="तुम हो राजीव!! तुमने मुझे पहचाना?? मैं तुम्हारी खिचड़ी आंटी.. याद आया??" चारू की मम्मी ने राजीव से कहा...

राजीव ने भी खुश होते हुये कहा- आंटी आप... इतने सालों बाद!! ज्योति कहां है और ये आर्ची कितनी छोटी सी थी, कितनी बड़ी हो गयी!! आंटी ज्योति कहां है... जब छोटी थी तब कहती थी कि बड़ी होकर मैं राजीव से शादी करूंगी, कहां है वो?

चारू की मम्मी ने कहा- वो खड़ी तो हुयी है.. आर्ची के बगल में!! ==

राजीव की हालत देखकर हद से जादा दुखी हो चुकी और बेहद तकलीफ़ महसूस कर रही चारू अतीत की ये बात सोच ही रही थी कि तभी राजीव बाथरूम का गेट खोलकर बाहर आ गया और चारू को अभी भी उसी जगह पर खड़ा देखकर फिर से बड़े रूखे अंदाज़ में अपने दांत किसमिसाते हुये बोला- तू गयी नहीं अभी तक!! मजा आ रहा है ना तुझे भी, हम्म्.. मज़ा आ रहा है ना मुझे इस हालत में देखकर, दे...चल तू भी मुझे ज्ञान दे (एकदम से चिल्लाकर राजीव बोला) ज्ञान दे और चली जा यहां से!!

अपनी बात गुस्से में बोलने के बाद राजीव गुस्से से हांफता हुआ पास ही पड़े बेड के पास गया और अपने पैर लटका कर बैठ गया और बेड पर बैठने के बाद उसने अपना सिर नीचे झुका लिया...

थोड़ी देर तक राजीव गुस्से में तेज़ तेज़ सांसे लेकर फुंफकारता हुआ सा नीचे की तरफ़ देखता रहा और फिर अपने भरे गले से इरिटेट सा होता हुआ वो बोला- जिसके ऊपर गुज़रती है बस वही समझ सकता है कि बिना वजह उसे क्या क्या सहना पड़ रहा है, बाकी सबके लिये ये सारी बातें सिर्फ और सिर्फ मजाक होती हैं... समझाने के लिये सब आ जाते हैं लेकिन साथ देने कोई नहीं आता, नहीं चाहिये मुझे अब किसी एक का भी साथ... (चारू की तरफ़ देखकर राजीव ने कहा) मुझे अब तेरा भी साथ नहीं चाहिये चारू, जितना तूने मेरे लिये कर दिया वही बहुत है... इससे जादा और कुछ भी मुझे नहीं चाहिये!!

राजीव गुस्से में अपनी बात बोले जा रहा था और चारू अभी भी अपनी आंखों में आंसू लिये हुये एकटक बस उसी को देखे जा रही थी और... वो अब भी चुप थी बिल्कुल ऐसे जैसे उसके पास राजीव की बातों पर रियेक्ट करने के लिये शब्द ही ना बचे हों!!

चारू बेबस सी होकर राजीव की तरफ़ देख ही रही थी कि तभी राजीव अपनी जगह पर बैठे बैठे ही उसे जोर से उंगली दिखाते हुये बोला- तुझे सुनाई दे रहा है कि नहीं!! मैं बोल रहा हूं ना... चली जा यहां से, एक बार की बात समझ में नहीं आती क्या? याद रख चारू... अगर अंकिता नहीं तो कोई नहीं, तू भी नहीं...!!

राजीव ने जब देखा कि चारू पर उसकी किसी भी बात का कोई एफेक्ट नहीं हो रहा है और वो अपने हाथ बांधकर बुत सी खड़ी बस उसे ही देखे जा रही है तब वो और जादा इरिटेट हो गया और अपनी जगह से उठने के बाद दांत भींचकर इधर उधर कुछ ढूंढता हुआ सा उससे बोला- रुक तू ऐसे नहीं मानेगी..!!

अपनी बात बोलकर गुस्से से अपनी दोनों आंखे फाड़े हुये वो तिलमिलाता हुआ सा चारू के पास गया और उसकी बांह पकड़ कर उसे दरवाजे की तरफ़ ले जाने लगा और "नहीं समझ आ रही है ना मेरी बात... नहीं समझ आ रही ना!!" बोलते हुये उसने चारू को जोर से धक्का देकर अपने फ्लैट के दरवाजे के बाहर धकेल दिया लेकिन... चारू अब भी चुप थी और धक्का लगने की वजह से वो जितनी दूर चली गयी थी... वो वहीं जाकर खड़ी हो गयी और धक्का देने के बाद अंदर जाकर सामने ही पड़े अपने बेड पर जाकर अपना सिर पकड़ कर बैठ चुके राजीव की तरफ़.. बस देखती जा रही थी लेकिन वो अब भी चुप थी!!

अंदर आने के बाद बेड पर बैठकर राजीव अपना सिर पकड़कर फिर से बहुत दुख करते हुये रोने लगा था, ऐसा लग रहा था जैसे उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो चारू के साथ आखिर कर क्या रहा है... वो बस कर रहा था!!

राजीव को ऐसे रोते देख चारू से रहा नहीं गया और वो सुबकते हुये अपने ठिठके हुये कदमों से चलकर फिर से फ्लैट के अंदर चली गयी और फिर राजीव के पैरों के पास बैठने के बाद उसका हाथ थामकर खिसियाते हुये बोली- राजीव... तू मुझे ही गुनहगार मानता है ना अपनी इस हालत का हम्म्... तू बस मुझे इतना बता दे कि मेरी गलती क्या है? मैं उस दिन तेरे बर्थ डे पर बस तुझे सरप्राइज़ देने आयी थी... उसके बाद जो हुआ वो बस एक कोइंसीडेंट था, तू जानता है ना कि हमारा रिश्ता कैसा है फिर... कम से कम तू कैसे मुझे ब्लेम कर सकता है इन सबके लिये और मुझे पता होता कि इतनी जरा सी बात की वजह से अंकिता ये सब कर देगी तो.. तो मैं कभी तुझे सरप्राइज़ देने के लिये तेरे फ्लैट में ना आती!!

अपनी बात कहते कहते चारू ने अपने हाथ जोड़ लिये और रोते हुये राजीव से बोली- मुझे नहीं पता था राजीव कि एक जरा सी बात इतनी आगे बढ़ जायेगी!!

क्रमशः

इसका मतलब अंकिता सही थी? क्या उसने उस दिन सच में चारू को उस हालत में देखा था जैसा उसने अजीत से बताया था या फिर... बात कुछ और है!!