बंधन (एक मर्यादा) - 2 Shalini Chaudhary द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बंधन (एक मर्यादा) - 2


जय श्री कृष्णा 🙏

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने,
प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः।

हे फैमिली कैसे है आप सब ? आशा है की आप सब ठीक होंगे और आपके परिवार वाले भी स्वस्थ और खुशहाल होंगे, आप सब से रिक्वेस्ट है की कहानी को ज्यादा से ज्यादा प्यार दे और सपोर्ट करे। लव यू ऑल ❣️

बिना देर किए चलते है कहानी के ओर..... 

बिहार ( मधुबनी ) 

चौधरी निवास,

नारायण जी अपनी बात कह कर खामोश हो जाते है, सब खामोश हो कर बैठे थे, सुधीरा जी भी शांति से बैठी थी उन्हे समझ नही आ रहा था की इस सिचुएशन में वो क्या बोले ? बंधन भी शांति से बैठी हुई अपनी ही सोच में गुम थी, लेकिन कोई था जिसे ये शांति काटने को दौड़ रही थी और वो था हमारा प्यारा सा केशव जिसे शांति बिल्कुल भी पसंद नही था।

केशव ( खामोशी तोड़ते हुए ) " पापा दीदी को जाने दो ना हम सब कैसे भी पैसे का इंतजाम कर ही लेंगे और दीदी वहां पर रहेंगी तो जब मेरा बोर्ड हो जाएगा तो मै भी आगे की पढ़ाई के लिए दीदी के पास ही चला जाऊंगा।" 

सुधीरा जी ( चिढ़ते हुए ) " तू तो हर जगह पर खुद को फिट करता रहता है, पहले दसवीं तो कर ले ।" 

बंधन उदासी में बैठी थी, जिसे देखते हुए नारायण जी बोलते है।

नारायण जी ( बंधन से ) " देखो ना कोई ऑनलाइन कोर्स हुआ तो ऑनलाइन ही कर लेना।" 

बंधन ( नारायण जी के तरफ देखते हुए ) " पिता जी ऑनलाइन कोर्स तो मिल जायेगा लेकिन मै रीयल लाइफ को भी देखना चाहती हूं, मै भी देखना चाहती हूं की बड़े शहर में लोग कैसे रहते है ? कैसे ऑफिस जा कर काम करते है ? कैसे लाइफ को और बेहतर बना सकते है, मै लाइफ के हर फेज को जीना चाहती हूं, रीयल लाइफ की प्रॉब्लम खुद से हैंडल करना चाहती हूं।" 

सुधीरा जी ( बंधन से ) " इतनी बड़ी भी नही हुई है की ये सब खुद करेगी, और वैसे भी लड़की जात है ऐसे कैसे अकेले दिल्ली जाने दे, वैसे भी माहौल कुछ ठीक नहीं है, गांव घर में, या मधुबनी जैसे शहर में ही ये हाल है, कहीं कोई घटना होती है तो कहीं कोई, और दिल्ली तो महानगर है, कि वहां तो पता नही क्या हाल होगा ?" 

बंधन ( शांति से ) " मां आप जो कह रही है सब ठीक है अपनी जगह लेकिन जमाना आगे और भी खराब हो होगा ये अब ठीक होने वाला नहीं है, इसलिए इसका तो कोई इलाज नहीं है, लेकिन इस डर से की क्या होगा ? हम आगे बढ़ना तो नही छोड़ सकते है ना, हम इन सिचुएशन से कर सकते है, और लड़ कर ही आगे बढ़ सकते है, मै भी लड़ना चाहती हूं, जमाने के साथ आगे बढ़ना चाहती हूं।" 

बंधन इतना बोल कर शांत हो जाती है, नारायण जी थोड़ी देर तक बंधन को खामोशी से देखते है फिर सुधीरा जी को देख कर बोलते है।

नारायण जी ( सुधीरा जी से ) " आप गाड़ी का चाभी ले आइए मुझे दुकान के लिए जाना है।" 

सुधीरा जी ( नारायण जी से ) " पहले आप नहा लीजिए और पूजा पाठ से निवृत हो जाइए इसके बाद दुकान जाइएगा क्योंकि बंधन अपने कंप्यूटर क्लास के लिए चली जायेगी और केशव को आज जल्दी स्कूल में बुलाया है, दुकान पर बैठने के लिए कोई नही रहेगा इसलिए पहले आप अपने काम खतम करके ही जाइए।" 

नारायण जी उठ कर नहाने के लिए चले जाते है।

सुधीरा जी ( बंधन और केशव से ) " तुम दोनो भी अपने क्लास की तैयारी करो, केशव अपना बैग सेट कर लो और जैसे ही पापा नहा कर निकले तुम भी नहा लो, बंधन घर की सफाई खतम करके जल्दी से नहा लो ठीक है, तब तक मै नाश्ता तैयार करती हूं, वरना तुम्हारा बाप बिना खाए निकल जायेंगे।" 

सुधीरा जी उठ कर किचन की तरफ चली जाती है, और केशव भी अपना बैग ठीक करने चला जाता है, बंधन कुछ देर तक वैसे ही बैठने के बाद उठ कर काम पर लग जाती है, सबसे पहले अपने मम्मी पापा का कमरा साफ करती है, फिर अपना और लास्ट में केशव का इसके बाद वो जा कर नहा लेती है, और मंदिर में जा कर पूजा करती है।

बंधन ( मंदिर में ) " हे बंसीधर मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु, मै कभी भी किसी पर निर्भर नही होना चाहती हूं, मै जीवन के हर समय के लिए तैयार होना चाहती हूं, मुझे आजादी चाहिए प्रभु, स्वतंत्रता चाहिए विचारों का, निर्णयों का, मै चाहती हूं की अपने जीवन रथ की सारथी मै खुद रहूं, और आप मेरे मार्गदर्शक, हे मोहन मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु मेरे जीवन को एक नवीन रंग प्रदान करो।" 

वो पूजा खतम करके चली जाती है, उसके जाते ही मंदिर में जो दीप जल रहा था, जिसे बंधन ने जलाया था उसमे रौशनी एक दम से तेज हो जाती है, जैसे प्रभु ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो और ये उसका संकेत हो, सब एक साथ बैठ कर नाश्ता करते है, नाश्ते में रोटी और आलू का भुजिया बना था, ( हम बिहारियों का यही नाश्ता होता है हम ब्रेड और टोस्ट में ज्यादा भरोसा नहीं करते है ) सब नाश्ता करते है, नारायण जी दुकान के लिए निकल जाते है, केशव और बंधन एक साथ ही अपने क्लास के लिए निकलते है, रास्ते में बंधन बिल्कुल खामोश थी।

केशव ( बंधन को देख कर ) " क्या सोच रही हो ?" 

बंधन ( केशव को देख कर उदास होते हुए ) " लगता है मेरा आगे अच्छे कॉलेज में पढ़ने का सपना, सपना ही रह जायेगा।" 

केशव ( बंधन से ) " उल्टा क्यों सोचती हो, देखो पापा फाइनेंशियल इश्यू दिखा रहे है, अगर इसी से निपट लिया जाए तो..मतलब तब कोई बहाना नहीं बचेगा ना।" 

बंधन ( कन्फ्यूज होते हुए ) " मतलब क्या है तेरा, हम क्या कर सकते है ?" 

केशव ( चहकते हुए ) " और दीदी ये बोलो की हम क्या नही कर सकते है। मतलब समझ रही हो ( बंधन धीरे से ना में सर हिला देती है ) अरे मै समझाता हूं, पापा ने कहा की पैसे की दिक्कत है इसलिए ऑनलाइन देखो, अब आपका ग्रेजुशन कंप्लीट है, इसलिए आप किसी भी कंपनी में एक पी. ए की तौर पर काम कर सकते हो, आप बड़े कंपनी में देखो वहां अच्छे सैलरी के साथ जॉब मिल जायेगा और कौन सा रोज रोज क्लास करना पड़ेगा आपको, और तो और कॉर्पोरेट का माहौल भी पता लग जायेगा।" 

बंधन ( खुश होते हुए ) " क्या सही दिमाग लगाया है, ये बात तो मेरे दिमाग में आया ही नहीं। वैसे मेरे संगत में रह कर तेरा दिमाग भी तेज हो गया है, वेल डन।" 

इसके बाद वो केशव के पीठ को जोड़ से थपथपा देती है।

केशव ( चिढ़ते हुए ) " और दीदी मारो मत चोट लगती है।" 

बंधन ( रुकते हुए ) " सुन तो आज पक्का रहा शाम को हम दोनो ही कंपनी सर्च करेंगे जिसकी हमें रिक्वायर है, और हां आज घर पर ही रुकना दोस्तों के साथ मत निकल जाना वरना पिता जी को बोल दूंगी की तू जयनगर गया था, घूमने के लिए वो उस आवारा मोहित के साथ उसके बाइक पर।" 

केशव ( हाथ जोड़ते हुए ) " हां देवी समझ गया ।" 

तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या केशव का आइडिया काम करेगा ? जानने के लिए बने रहे बंधन ( एक मर्यादा )।

मेरे मन की बात

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✍️ शालिनी चौधरी