ताश का आशियाना - भाग 20 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 20

दोनों घर पहुंचे रागिनी को लगा घर में अपरिचित व्यक्ति की उपस्थिति देखते हुए बहुत बड़ा हंगामा होगा लेकिन सब उसके विपरीत हुआ।
वैशाली ने बड़े आदर से प्रतीक्षा का स्वागत किया।
खाने के समय खाना खिलाया चाय के समय चाय पिलाई।
लेकिन शाम को जब दोनों पुरुष घर वापस आए, तब चर्चा विशेषण चालू‌ हो गया।
"नाम क्या है तुम्हारा?" श्रीकांत ने पूछा।
प्रतीक्षा ने डरते–डराते हुए जवाब दिया, "जी,‌ प्रतीक्षा सरपोत्तदार।"
"रागिनी को कैसे पहचानती हो?"
"जी, कुछ साल पहले मेरे पापा का दिल्ली ट्रांसफर हुआ था, तब हम आजू बाजू में ही रहते थे।"
"क्या करते हैं तुम्हारे पिताजी?" अब यह सवाल प्रताप ने दागा था।
"जी राजकोष में अकाउंटेंट है।"
"यहां कैसे आना हुआ?" इस बार फिर से सरकार ने बाजी मारी।
जी इस 25 तारीख को मेरी शादी है इसलिए बनारस घूमने आई हूं। प्रतीक्षा में सारे जवाब बचते बचाते और डरते डराते ही दिए। एक गलत शब्द और वह घर से बाहर।
"शादी!!" वैशाली शादी का नाम सुनते ही चहक उठी।
"तुम कितने साल की हो?" वैशाली में उत्साह कम ना होते हुए सवाल पूछे।
"27 साल की।"
"अरे फिर तो हमारी रागिनी को भी कुछ बताओ, 30 साल की होने को आई लेकिन उसको शादी नहीं करनी।" वैशाली ने बिना जीजा अपना दुख जताया।
"तो यहां कितने दिन रहने का विचार है?"
"जी..."
प्रतीक्षा की बोलती बंद हो चुकी थी।
रागिनी ने प्रतीक्षा की बात और इज्जत दोनों संभाल ली।
"मेरी दोस्त है वह जितने दिन चाहे यहां रह सकती है।"
रागिनी का विधान सुनते ही श्रीकांत का पूछा गया यहआखरी सवाल बन चुका था।
खाना थोड़ी,
"तेरी सच में 25 को शादी है?" रागिनी ने अचंबे से पूछा।
"नही 25 को लास्ट डेट है।" प्रतीक्षा ने हंसते हुए कहा।
"लास्ट डेट किस चीज की?" रागिनी हैरत से पूछ उठी।
"शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल 2018"
"तो इसमें अगर मैं अपनी डॉक्युमेंट्री दू और वो उन्हे पसंद आ गई तब वो मुझे स्कॉलरशिप देंगे आगे की पढ़ाई के लिए।"
"लेकिन तेरी शादी का क्या?"
"पापा अभी दूल्हा ढुंढ रहे है, देखते है।"
"मैने अपनी डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए 2 लोगों से बात भी की।
उसमे से पहली मालविका सिंह जी है उनसे कॉन्टैक्ट करने पर पता चला वो ऑस्ट्रेलिया गई है किसी काम के लिए।"
"मालविका सिंह वो व्लॉगर, वो क्यों चाहिए तुम्हें?" रागिनी ने सवाल दागा।
"उनके साथ मिलकर मैं दिल्ली के लाइफ पर डॉक्युमेंट्री बनाने वाली थी पर वो फिलहाल ऑस्ट्रेलिया में है तो मैंने सोचा क्यों ना बनारस पर बना लू।"
प्रतीक्षा ने भौंहें उचकाते हुए हस दी।
"इसलिए मुझे कोई ऐसा चाहिए जो बनारस के बारे में थोड़ा बहुत जानता भी हो और आवाज भी अच्छी हो।
इसलिए मैने इंस्टाग्राम पे दूसरे व्लॉगर से बात की जो बनारस के बारे में काफी अच्छे से जानते हैं।
दो दिन बाद मिलने जाने वाली हूं उनसे।"
"ठीक है चली जाना फिलहाल अभी अब सोते हैं।"

दोनो सो गए, सुबह हुई।
आज कही बाहर जाना नही था। नाश्ता हुआ, दोनों T.V. पर वही 100 बार देखी हुई मूवी वो देख रहे थे।
"मैं बोर हो चुकी हु।" प्रतिक्षा उबासी देते हुए बोल उठे।
"फिर क्या करे चल मैं तुम्हे बनारस घुमाती हू।" रागिनी उत्साह के साथ सोफे से उठ खड़ी हुई।
"अरे कल हम जाने ही वाले है।"
"तो फिर अब क्या करे?"
"तू बताने वाली थी की, लड़के ने तुम्हे कैसे रिजेक्ट किया।"
रागिनी धड़ाम से सोफे पर बैठ गई –"तू अब तक उस बात पर अटकी हुई है।"
"अरे बताना प्लीज!"
"ठीक है बताती हु।"





"इस बार इस लड़के को पसंद कर ही लेना।" श्रीकांत जी सक्ति से से बोल उठे।
रागिनी अपने फोन में ही मुंह डाले खड़ी थी।
"मैं कुछ कह रहा हूं..."
"अंदर चले पहले या यही मुंह दिखाई करनी है।" रागिनी व्यंग्यता के साथ बोल उठी।
श्रीकांत जी अपना गुस्सा पीते हुए अंदर जाने लगे। तभी रागिनी का फोन बजा। श्रीकांतजी और वैशाली दोनों रुक गए।
"बेटा पहले अंदर चलो बाद में बात कर लेना।"
"हॉस्पिटल से कॉल है आप जाइए कॉल खत्म कर आती हूं।"
"भाग मत जाना।" श्रीकांत जी द्वेष के साथ बोल उठे।
"भाग ना होता ही तो यह क्यों आती?" रागिनी ने अपनी आंखें घुमा ली
श्रीमान जी अंदर घुसे, "अरे आइए–आइए भारद्वाज साहब!"
श्रीकांतजी नारायणजी का आदरतीथ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर घर के एक-एक चीज को पूरी तरह अपने बारीक नजर से देखने लगे। क्यों ना करते भला? रागिनी भारद्वाज परिवार की बेटी थी उन्हें तो इतना ध्यान रखना ही था।
घर में वेंटिलेशन के नाम पर ऊपर दो फैन, दो खिड़कियां, पूरे फर्स्ट फ्लोर सिर्फ 5 सीटर सोफा और दो कुर्सियां, ओल्ड एज डाइनिंग टेबल, ऊपर जाने के लिए सीडियां थी, और दो कमरे थे दोनों को ताला लगा था। शायद लड़के के लिए फ्यूचर प्लानिंग कर रखी थी शुक्लाओ ने । श्रीकांत जी को यह सब कुछ जच नहीं रहा था।
"तुम तो धोखेबाज निकले।" यही एक विचार पंडित शास्त्री के लिए मन में आ रहा था।
हमारी बेटी इतने छोटे से घर में कैसे एडजस्ट करेगी यह सवाल उनको सताए जा रहा था।
सिद्धार्थ के पिता ने श्रीकांत जी का मिजाज भाप लिया था। श्रीकांतजी मुंह बनाते हुए सोफे पर बैठ गए।
"आपकी बेटी कही दिखाई नहीं दे रही है?" गंगा ने सवाल पूछा।
"जी वो फोन कर रही है, आती ही होंगी।" वैशाली ने संकोच के साथ जवाब दिया।
"आपका बेटा कहां है?" श्रीकांत जी ने थोड़े रूष्ठ स्वभाव के साथ पूछा।
"हां वो तैयार होने गया है, आता ही होगा। तब तक आप कुछ लीजिए।" नारायण जी जरा बचते बचाते बोले।
टेबल पर मोतीचूर के लड्डू, समोसे, पापड़ी, सेव तमाम खाद्य पदार्थ रखे थे वह तमाम चीजें रखी थी जो पेट और जेब के लिए दोनो के लिए बेहतर साबित हो सकती थी।
"जी नहीं आप सिर्फ अपने बेटे को बुला दीजिए।" श्रीकांतजी अपनी मर्दानी आवाज के साथ बोल उठे।

"सिद्धार्थ!!" पहले तो उन्होंने जोर से आवाज दिया लेकिन आजू-बाजू के रूख को देख खुद को और बेटे को शर्मिंदा होने से बचा लिया।
काफी खड़खड़ के बाद भी दरवाजा ना खुलते देख, वह सब को देख एक परेशानी भरी मुस्कान देते हुए सीधा टीवी जिसके नीचे था उस टेबल के पास चले गए।
टेबल का कबोर्ड खोल बाहर चाबी निकाली।
रागिनी, श्रीकांत वहा बेठे तमाम लोग अव्यवस्था यानि कन्फ्यूजन की स्थिति में थे सिर्फ सिद्धार्थ की मां गंगा छोड़के। नारायण जी ने बिना वक्त गवाए दरवाजा खोला।
रोज की तरह कमरा अस्ताव्यस्त था।
बेड भी बनाया नहीं था, और रोज की तरह ही सिद्धार्थ का वहां नामोनिशान तक नहीं था। पिताजी ने बाथरूम भी चेक किया वो वहां भी नहीं था। वह बेचैन परेशान हो गए।
55 साल की उम्र में बाप को झटके पर झटके दिए जा रहा था सिद्धार्थ।
नारायण जी के लिए कोई नई बात नहीं थी पर आज का झटका शायद उनकी इज्जत लेकर डूबेगा इसका अंदाजा उन्हें हो चुका था और लगभग हो ही गया जब उन्हें स्टडी टेबल पर रखा एक नोट मिला जिसमें पेपर बोल रखा था।
"गंगा!!गंगा!!" नारायण जी ने अपना कंठ दान कर गंगा जी को पुकारा। वो भागते हुए सिद्धार्थ के कमरे में गई। वहां पहुंचते ही वह कागज उन्होंने गंगा के हाथ में रख दिया। बेचारे पिताजी पूरी तरह टूट चुके थे इसलिए वह स्थित बेड पर सिर पकड़कर बैठ गए।

पुजनीय माता–पिता,
आप हमेशा मेरी खुशी के बारे मे सोचते हुए ही आज बूढ़े हुए है। लेकिन आपको लगता होगा मैं भी यह करते
हुए बुढा हूंगा यह गलत है। प्लीज मां आप रोईए मत, मैं सिर्फ कुछ वक्त के लिए बाहर जा रहा हूँ। (माँ रो रही थी, सिद्धार्थ को पता था।)मुझे शादी नही करनी मैने आपको पहली भी कितनी बार समझाने की कोशिश की पर आप दोनो नही माने। इसलिए मुझे यह कदम लेना पड़ा। मैं जिस बिमारी के साथ जी रहा हूं उसका ख्याल किए बगैर आपने यह फैसला किया है। इसलिए एक लड़की की जिंदगी बरबाद करने का पाप मैं खुदके कंधे पर ले मरना नही चाहता। और पापा, at the end I love you.
आपका लाडला
सिद्धार्थ



नारायण जी कमरे से बाहर आए।
"कहां है आपका बेटा?" श्रीकांत जी ने बड़ी रूष्टता से सवाल दागा।
"वो...वो..." नारायण जी बयान से बाहर हो चुके थे।
वह जवाब देने के लिए सिर्फ गंगा की तरफ देखे जा रहे थे ताकि उनके बदले वह सारा मामला रफा-दफा कर दे।
"वो नहीं है।" बस गंगा इतना ही बोल पाई।
"नहीं है मतलब?" अब वैशाली जी बड़ी आश्चर्य के साथ पूछ उठी। गंगा जी अपने पति की तरफ आंखों से मदद की गुहार लगाने लगी।
"वो यह शादी नहीं करना चाहता था इसलिए वह भाग गया।" नारायण जी आखिरकार बोल उठे।
सब शौक से उठकर खड़े हो गए।
"क्या कह रहे है आप?" श्रीकांत की बढ़ी हुई आवाज से वहा खड़ी सारी महिला विमुख हो गई।
नारायण जी सिर्फ सिर नीचे कर खड़े थे।
"आपको पता है अगर शास्त्री जी ने यह रिश्ता नहीं सुझाया होता तो हम कभी ऐसे घर में अपनी बेटी का हाथ नहीं देते।" श्रीकांतजी रौद्र रूप धारण करते हुए बोल उठे।
नारायणजी और गंगा दोनो इस बयान से चकित हो उठे।
नारायणजी को पहली बार अपने बेटे के कारण शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था।
इस सब में रागिनी को पहली बार सिद्धार्थ नाम का शख्स इंटरेस्टिंग लगा था।
बिना सोचे समझे 40 रिश्ते ठुकराने के बाद उसे किसी ने बिना आमने-सामने मिले नॉट इंटरेस्टेड का तमाचा मारा था।
And she like it.not a person but his attitude..
नारायण जी उदास थे, गंगाजी उदास थी, वैशाली गुस्से में थी, श्रीकांत जी को अपमान महसूस हो रहा था पर रागिनी को एक अजीब सी भावना महसूस हो रही थी खुद के प्रतिबिंब को देखने की खुशी। वो खुश थी यह शादी टूटने से लंदन भाग सकती थी बिना किसी के दबाव के साथ।