भाईजान जब अपने कमरे में आए तो बहुत ही डरे हुए थे। वह अंदर ही अंदर कुछ सोच रहे थे तभी भाभीजान उन्हें देखकर कहती हैं।
सादिया भाभीजान : आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं। क्या हुआ?
अख्तर भाईजान : कुछ भी तो नहीं देखो...! मुझे बहुत भूक लगी है। जल्द से जल्द नाश्ता का इंतेज़ाम करो।
सादिया भाभीजान : सब लोग बाहर आपका ही इंतेज़ार कर रहे हैं।
अख्तर भाईजान : तो चलो... चलते हैं।
और ये बोलते हुए वह कमरे से बाहर बगीचे कि तरफ चले गए। भाभीजान मन ही मन कुछ सोचने लगी और परेशान होने लगी। जब रात हुई तो भाईजान अपने उसी कमरे में फिर से जाकर बैठ गए और अपनी नॉवेल को टाइपराइटर पर टाइप करना शुरू कर दिया।
अख्तर भाईजान : कहते हैं... जब इंसान ख़ुदा बनने कि कोशिश करता है। तो वह पागलपन कि सारी हदें पार कर जाता है, ऐसा ही एक वैज्ञानिक जो भगवान बनने के चक्कर में पागल हो चूका था। उसकी जिंदगी का बस एक ही मक़सद था। मुर्दों में फिर से जान लाना, लोगों कि नज़रों से दूर उसने अपनी एक लेबोरटरी बना रखी थी। एक अमावस कि रात जब सारी दुनिया सो रही थी, वह निकल पड़ा मुर्दों कि तलाश में, कब्रिस्तान जाकर खोदाई शुरू कि किसी लाश का हाथ लिया, किसी लाश का पैर, किसी का पेट किसी का कुछ और, वह शरीर के अलग-अलग हिस्सों को अपनी लेबोरेटरी में ले आया। और फिर सिलाई करके जोड़ना शुरू किया। शरीर के हिस्सों को जोड़ने के बाद उसने शरीर के हर हिस्से को इलेक्ट्रिक वायर से जोड़ दिया। इसके बाद जैसे ही वह मैंन स्विच चालू करता है...!
तभी भाईजान के सामने रखा हुआ लैंप खुद बखुद ऑन ऑफ होने लगता है, घर के सारे बल्ब खुद बखुद ऑन ऑफ होने लगते हैं।
और तभी भाईजान के लिखे हुए अलफ़ाज़ हक़ीक़त में बदल जाते हैं। उस घर के तैखाने के अंदर एक खूंखार जिन्नात अपने वजूद में आ जाता है। वह लंगड़ाता हुआ आगे बढ़ने लगता है। और उस संदूक में परी हुई कुल्हाड़ी उठा कर तैखाने से बाहर निकल जाता है। भाईजान लैंप और बल्ब के ऑन ऑफ होने पर कुछ देर लिए घबरा जाते हैं, पर वह फिर से लिखना शुरू कर देते हैं।
अख्तर भाईजान : साइंटिस्ट का एक्सपेरिमेंट सफल हो जाता है। लाश ज़िंदा हो जाती है, और निकल पड़ती है अपने पहले शिकार कि तलाश में, वह लेबोरटरी से बाहर निकल कर गलियारों से होता हुआ घर से बाहर निकल जाता है।
तभी वह जिन्नात खिड़की के सामने से गुज़रता है, भाईजान सामने देखते हैं
तो उन्हें कुछ भी नज़र नहीं आता भाईजान फिर लिखना शुरू कर देते हैँ।
अख्तर भाईजान : किसी को मालूम नहीं की कौन होगा उसका पहला शिकार? किसकी जिंदगी का आज आखिरी दिन होगा?
तभी वह जिन्नात अफ़ज़ल खान के घर की तरफ जा पहुँचता है,
अख्तर भाईजान : वह तय करता है और पास ही घर मे घुसता है,
वह घर में अपना शिकार ढूंढ़ने लगता है।
अफ़ज़ल खान अपने में बैठ कर टेलीविज़न देख रहे थे, तभी जिन्नात उसके गेट के पास आ खड़ा होता है, अफ़ज़ल खान को लगता है की उनकी बीवी आया है,
अफ़ज़ल खान : आ गयी डार्लिंग बड़े ही अच्छे पड़ोसी हैँ हमारे अपनी तरह हसमुख और मिलनसार हैँ बस बातें ही कुछ ज़्यादा करते हैँ, हैँ ना।
तभी वह जिन्नात गुस्से से उनकी तड़फ बढ़ने लगता है,
अफ़ज़ल खान : रात को डिनर पर जाना है की नहीं उनके वहां? अरे मुझे छोड़ ही नहीं रहे थे, बड़ी मुश्किल से बच कर आया हूं, पीछा छुड़ाकर कर आया हूँ उनसे, हेलो! कुछ बोल क्यों नहीं रही? तभी जिन्नात पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखता है, अफ़ज़ल खान जैसे ही पीछे मुड़ते तो उस जिन्नात को देखकर हक्का बक्का रह जाते हैँ, जैसे ही वह भागने लगते हैँ तभी जिन्नात उन्हें पकड़ लेता है,
अख्तर भाईजान : आखिर जिन्नात अपने पहले शिकार का क़त्ल कैसे करेगा? क्या उसे कुल्हाड़ी से काट देगा? या फिर वह उसके छोटे छोटे टुकड़े कर देगा, नहीं मज़ा रही आ रहा
तभी भाईजान कुछ देर सोचने के बाद टाइपराइटर पर टाइप करना शुरू कर देते हैँ,
वहाँ जिन्नात अफ़ज़ल खान के सिर को दिवार पर मार कर उसकी जान ले लेता है
अख्तर भाईजान : बहुत लाश को घसीटते हुए ऐटिक में ले जाता है, और उसको छुपा देता है।