जिंदगी से मुलाकात - भाग 13 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी से मुलाकात - भाग 13

जिंदगी चलती जा रही थी। विक्रम हैदराबाद जैसे शहर में अपने कंपैटिबिलिटी की जॉब ढूंढ रहा था। उसने कहीं जगह लॉजिस्टिक की तौर पर या फिर एक्सेल एग्जीक्यूटिव के तौर पर इंटरव्यू देने चाहे पर उसका सिलेक्शन नहीं हुआ।
थक हारकर उसने यह भी सोचा कि वह कोई साधारण सी जॉब कर ले पर "नो वैकेंसी" का सामना करना पड़ा।
तो कहीं जगह अमेरिका छोड़ आने पर ताने भी कसे गए। विक्रम अपनी जिंदगी से परेशान हो चुका था, बैंक बिजनेस के लिए लोन नहीं दे रही थी, नौकरी नहीं मिल रही थी।
कहीं भाग जाना चाहता था वो।
"जब भी हमें कभी लगे कि हमें कहीं भाग जाना चाहिए तो सच में भाग जाना चाहिए क्या पता जिस से भाग रहे थे वो हमें रास्ते में ही कहीं मिल जाए।"

विक्रम यही सोच रख कर अमेरिका के सीधा भारत वापस आया।
अब वह कहीं नहीं भाग सकता था।कहां भागता? और कब तक भागता?
*******

दूसरी तरफ रिया की कंपनी न्यू सॉफ्टवेयर लॉन्च कर रही थी। इसमें पहली बार C.E.O. ने भरोसा कर रिया को टीम लीडर चुना था। कहीं लोग इस फैसले से नाराज थे।
बिरला फाइनैंस ने उनकी प्रोजेक्ट को फाइनैंस देने के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन किया जिसके अंतर्गत “ऑटोमैक सॉफ्टवेअर के तहत डेवलपर और इंजीनियर की एक टीम भेजी जाएगी, अगर उन्हें प्रॉडक्ट पसंद आता है और प्रॉडक्ट मार्केट के डिमांड के हिसाब से है तो प्रोजेक्ट की मार्केटिंग-फाइनैंस कंपनी संभालेगी।“ इस कांट्रैक्ट अब सारी जिम्मेदारी सीईओ के बाद सॉफ्टवेयर प्रोग्राम तैयार करनेवाले टीम पर थी। मैनेजर अमोल प्रसाद, हेड डेवलपर सिद्धांत शुक्ला और टीम लिड रिया मिश्रा।
रिया अब अपना पूरा समय प्रोजेक्ट पर ही बिता देती। रात दिन काम कर थक जाती तो खाना खाना तक भूल जाती। मिसेस जोशी से उसकी अब खासा बातें नहीं होती।
विक्रम के घर आने का उसे पता तो था पर ज्यादा जानने में उसे कुछ ज्यादा रुचि नहीं थी।
एक बार प्रोग्राम, डेवलपर टीम को पसंद आ जाये बस वो पहली खुशखबरी मिसेस जोशी को ही सुनाएगी ऐसा उसने ठान लिया था।
कभी कभी छुट्टी के दिनों में भी ऑफिस वर्क घर पर ले आती। ऐसे ही शनिवार के दिन वो 4:30 बजे के करीब ऑफिस से घर पहुंचीं। आते वक्त बाहर से खाना भी लेकर आई साथ में बीयर की कैन भी, स्ट्रेस कम करने के लिए। आज उसे खाना बनाने का मन नहीं था। घर घुसी तो पहले शॉवर लेने बाथरूम गई, थकावट पूरी पानी में घुल गई।पानी शरीर पर पड़ रहा था, अपने आप उसकी शरीर यंत्रीकाएं शिथिल होती जा रही थी।
बाथरूम से बाहर निकली तो मस्जिद से अजान की आवाज सुनाई दे रही थी, सूरज की रौशनी बंद खिड़कियों को पार कर बेडरूम में घुस रही थी। कपड़े बदले, दो बीयर की कैन उठाकर टेरेस पर चल दी।
**********

रिया ऊपर जाने लगी तो देखा टेरेस का दरवाजा खुला था, एक शक्स सिगरेट हाथ में लिए दीवार से सटकर खड़ा था। रिया की नजर उस पर जाते ही वो थोड़ा चौकी, उस शख्स का भी हाल वही था उसने थोड़ी देर के लिए रिया को आंख उठाकर देखा भी पर बाद में फिर से सूरज की तरफ देखते हुए बिना कुछ बोले सिगरेट फूंक रहा था। रिया आगे बढ़ कटघरे से सटकर खड़ी थी।
केसरिया रंग पूरे आकाश में फैल चुका था, सूरज ढलते हुए दिखाई दे रहा था, अजान अब बंद हो गई थी, लोगों की चहल पहल बढ़ गई थी, कुछ बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे थे।
थोड़ी देर के लिए आंखें बंद कर सूरज को अपने अंदर महसूस कर रही थी वो सूरज की रौशनी अपने अंदर फैलते हुए दिखाई दे रही थी। कुछ देर बाद उसने बीयर कैन का सील खोला और बीयर पीने लगे लगी फिर अचानक पीते पीते उसकी नजर एक बार फिर उस शक्श पर पड़ गई बाल बढ़े हुए,अंदर से सफेद, सफेद दाढ़ी, आँखों पर काला चश्मा,सिंपल प्लेन ब्लैक शर्ट पहना हुआ जिसमें टाय बंधी हुई थी पर वो भी ढीली छोड़ी थी,ऊपर की शर्ट के दो बटन खुले हुए थे।
अगर बाल सफेद, दाढ़ी बढ़ी हुई,काला चश्मा नहीं होता तो उसमें और फस्ट्रेटेड,बेकारी से झूझ रहे युवा पुरुष में कोई फर्क नहीं था।
नीचे खुली हुई फाइल पड़ी थी जिसमें रहकर भी सारे डॉक्यूमेंट बाहर निकलकर आए थे, जमीन पर जो दो फूंकी हुई सिगारेट पड़ी हुई थी उसे यह पता चल रहा था कि यह उस आदमी की तीसरी सिगारेट है।
पता नहीं क्या ढूंढ रहा था खुद में या आजाद बंद दुनिया में?रिया ने बीयर की एक और कैन फोड़ी और पलक झपकते ही उस शख्स के पास जाकर उसके मुँह के सामने कैन धर दी।
आदमी हैरान हुआ पर कुछ ज्यादा ना बोलते हुए उसने “नो थैंक्स” कह दिया।
रिया ने फिर भी कैन नीचे रख बिना कुछ बोले आगे चली गयी। रिया सूरज को देख रही थी, इमारते देख रही थी, खेलते हुए बच्चों को देख रही थी, लोगों की भागादौड़ी देख रही थी पहले की रिया और अब की रियां में बहुत अंतर था, हैदराबाद में घुल सी गई थी रिया।
बीयर गटक्ते हुए कुछ सोच रही थी कि उसी वो आदमी कब कैन लेकर पीछे खड़ा है महसूस ही नहीं हुआ।
वो बाजू में खड़ा होने के बावजूद भी कुछ नहीं बोला-“यहाँ पर नए हो?” रिया ने आखिरकार चुप्पी तोड़ी।
“हु…” सिर्फ इतना ही जवाब विक्रम के मुँह से फूटा।
“हाँ भी और नहीं भी विक्रम ने बात को आगे बढ़ाया।“
“मतलब?”
“10 साल पहले यहीं रहता था, फिर अपने सपनों की तलाश में फॉरेन चला गया। सपने पूरे हुए, सब कुछ हासिल हो गया लेकिन एक तूफान ने सबकुछ बिखेर दिया तो फिर वापस आ गया। शायद दिल में भर रखा था, वो आज की तकलीफ से भी ज्यादा गहरा हो चुका था।“
“काफी फिलॉसोफिकल-दुखी इंसान लगते हो। आर्ट्स स्टूडेंट हो क्या?”
विक्रम हंस दिया-“नहीं कंपनी में लॉजिस्टिक था।”
“था… मतलब अब नहीं हो?” सवाल ऐसे दागा जैसे वो अपने बिछड़े यार से मिल रही हो।
“कंपनी को भारी नुकसान होने के कारण उसे किसी और कंपनी ने ओवरटेक कर लिया। उन्होंने नए रूल्स एंड रेगुलेशन के तहत कुछ लोगों को जॉब से निकालने का फैसला किया, उसमें मैं भी था।“
तो तुम विदेश से फेंके गए आदमी हो? तुममे वो कैपेबिलिटी ही नहीं होगी, इसलिए कंपनी ने तूम्हे बाहर निकाल दिया।
विक्रम को यह बताकर पछतावा हो रहा था कि बाकियों की तरह भी यह लड़की मुझे कई दोषी ना ठहराए?
“हम हमेशा जैसा सोचते हैं, जैसा चाहते हैं वैसा हमेशा से ही नहीं होता। हम जो भी सोचते है उसका जो भी हिस्सा पूरा कर पाते है, भाग्य उसमें भी पासा फेंक हमें चारों खाने चित कर देता है। आखिरकार जो भाग्य में लिखा होता है उतना ही मिलता है।“
रिया की इस बात ने विक्रम की सोच को गलत ठहराया।
विक्रम आश्चर्यचकित था। दो महीनों में पहली बार उसने अपनी बात बेखयाली से सामने रखने पर पहली बार उसे यह दिलासा मिला था, यह सब भाग्य का खेल “तुम आर्ट्स स्टूडेंट हो क्या? इतनी फिलोसॉफिकल बातें कर रही हो।“ विक्रम ने कुछ देर पहले रिया के सवाल पर पलटवार किया।
“नहीं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ, बस थोड़ा एक्सपीरियंस है मुझे। गलतियों से सीखा है, आयी थी मैनेजर बनने। मैनेजर की पोस्ट मिली सब ठीक चल रहा था। मेरी एक गलती की वजह से आज सिर्फ एक एम्प्लॉय हूँ।“एक लंबी साँस भरते हुए रिया ने कहा।
“हु…”सिर्फ उतना ही जवाब विक्रम दे रहा था।
“नौकरी क्यों नहीं ढूंढते तुम?” कुछ ऐसे ही रिया ने बोल दिया।
लगा आगे वाला व्यक्ति गुस्सा हो जाएगा। पर उल्टा उसने जवाब दिया।
“एक महीना हो गया, नौकरी की तलाश में दर-बदर भटक रहा हूँ। पर कोई नौकरी नहीं दे रहा, उल्टा बेइज्जती करके कभी कभी.. “
“जब मैं मुंबई आई थी तब भी मेरा हाल कुछ ऐसा ही था। नौकरी टिकने के लिए परेशान थी, नौकरी टिकीं भी और मिली। हैदराबाद भी उसी के लिए आई पर संभाल कर नहीं रख पाई। बहुत लोग जुड़े,काफी लोग छूट गए। जो लोग छुटे उनका गम इतना बढ़ गया कि जो हाथ में था वो भी गंवा बैठी।“
रिया की गोलमटोल बातें विक्रम की दिमाग से ऊपर से जा रही थी पर इतना जरूर था कि वो दोनों एक ही पगडंडी पर बैठे हुए दो पंछी थे।
विक्रम का कन्फ्यूजन देख रियाने सवाल का रुख विक्रम की तरफ मोड़ा।
“फिर आगे क्या करने का सोचा है? बस इस दुनिया से कहीं दूर निकलना चाहता हूँ।“
रिया अपनी हालत याद कर हँस दी।
“जब हमारे की गई गलतियों पर हमें रोने से ज्यादा हँसना आए तो समझ जाना चाहिए हम एक कदम मैच्योर हो चूके हैं।
“सोचना भी मत बच गए तो दुनिया जीने नहीं देगी और मर गए तो तुम कभी यह नहीं देख पाओगे कि आगे क्या हो सकता है? और क्या हो सकता था? तुम्हारी एक बेहतर कोशिश के कारण।“
अपने माथे पर उंगलियां फिरा कर अपना दर्द कम करते हुए वो बस फुसफुसाया- “तुम नहीं समझोगी?”
लेकिन रिया के कानो ने सब सुन लिया था- “मैं…मैं नहीं समझूंगी?”
रिया जोर जोरसे हंसने लगी “आज जो खयाल मन में पाल रहे हो वो खयाल में जी चुकी हूँ।“
“डिप्रेशन के कारण आत्महत्या करने की फालतू कोशीश की थी मैने, बाद में जाकर पता चला थोड़ा जिंदगी को सुधारने की कोशीश करती तो जो हाथ में था वो शायद बच जाता।“
“तुम रिया हो?” अचानक बड़ी गंभीरता से विक्रम ने सवाल पेश किया।
रिया कुछ देर के लिए सोच में पड़ गई, आश्चर्य से माथे पर सिकुड़न आ गई फिर अपने आप ओठ तिरछी हँसी हंसने लगे।
"My god! मैं इतनी फेमस हूँ!? मुझे पता ही नहीं था, मरने की बेबाक कोशिश से इतनी फेमसिटी मिल जाएगी।"
विक्रम ने रिया के व्यंग्य पर जवाब देते हुए कहा –“आई हमेशा तुम्हारी बात छेड़ती है,मिसेस लता जोशी।“
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