चन्द्रगुप्त (सन् 1931 में रचित) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद का प्रमुख नाटक है। इसमें विदेशियों से भारत ...
एक ओर से सपरिवार चन्द्रगुप्त और दूसरी ओर से यवन सेनापति प्रवेश करते हैं और वे सब साथ साथ ...
मौर्य कहेते हैं की यह सब ढोंग है रक्त और प्रतिशोध, क्रूरता और मृत्यु का खेल देखते ही ...
सिल्यूकसने मेगास्थनीज से सत्य जानना चाहा, शब्द चाहे कितने भी कटु हों पर वो सत्य जानना चाहता था, सुनना ...
राक्षस ने पूछा के अब क्या होगा, यह आग जो लग गई है वो बुझी नहीं तो वो कहाँ ...
सिंहरण ने कहा, हाँ आर्य, प्रचंड विक्रम से सम्राट ने आक्रमण किया है यवन सेना थर्रा उठी है ...
कार्नेलियाने पूछा, एलिस! यहाँ आने पर जैसे मन उदास हो गया है, इस संध्या के द्रश्यने मेरी तन्मयता में ...
चन्द्रगुप्त ने कहा की सिंहरण इस प्रतीक्षा में है की कोई ब्लाधिकृत जाय तो वे अपना अधिकार सोंप दें ...
कार्नेलिया ने कहा की बहुत दिन हुए देखा था वही भारतवर्ष! वही निर्मल ज्योति का देश, पवित्र भूमि, ...
चाणक्यने हंस कर कहा, कात्यायन तुम सच्चे ब्राह्मण हो! यह करुणा और सौहार्द का उद्रेक ऐसे ही ह्रदयों में ...