किरण बेदी, ‘क्रेन बेदी’ Learn Hindi - Story for Children
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The 1982 Asia Games are about to start in a few days. Delhi traffic has to flow smoothly. A car is parked, illegally. Oh no... it\'s the Prime Minister\'s car. What will Kiran Bedi and her sub-inspector do?
क्रेन बेदी
राज्यपाल साहब का बुलावा आया,
तो मैं समझ नहीं पाई
कि उन्होंने मुझे क्यों बुलाया है।
उनके दफ़्तर में पहुंची,
तो उन्होंने मेरी तरफ़ देखते हुए पूछा,
किरन,
जानती हो मैंने तुम्हें क्यों बुलाया है?
मैंने कहा... \"जी नहीं।\"
वो मुस्कुराते हुए बोले,
किरन, एशियाई खेलों में सिर्फ़
एक साल बाकी है,
और दिल्ली के ट्रैफ़िक की हालत
बहुत खराब है, मैं चाहता हूं
कि तुम दिल्ली के ट्रैफ़िक की
बागडोर संभालो।\'
मैं हैरान रह गई।
ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी थी
और यह मेरे कामकाजी जीवन का
एक बहुत ही सुखद अनुभव साबित हुई।
इसी के कारण मैं किरन बेदी की जगह
क्रेन बेदी के नाम से मशहूर हुई।
1982 में दिल्ली में होने वाले
एशियाई खेलों का आयोजन
भारत की प्रतिष्ठा का प्रश्न था।
दिल्ली के ट्रैफ़िक की हालत
सुधारने के लिए
मुझे पूरी शक्ति लगानी पड़ी।
वायरलेस सैट और लाउडस्पीकर से लैस,
अपनी सफ़ेद अम्बेसेडर कार में,
मैं रोज़ सुबह,
आठ बजे सड़कों पर निकल पड़ती।
आठ बजे सड़कों पर निकल पड़ती।
मेरे हाथ में माईक होता था...
जहां ज़रूरत पड़ती थी,
ट्रैफ़िक का संचालन करती थी।
उन दिनों मैं रोज़ 19 घंटे काम करती।
उन दिनों मैं रोज़ 19 घंटे काम करती।
थकी टूटी घर लौटती
तो बिस्तर पर लेटते ही सो जाती।
सुबह तरोताज़ा उठती
और एक नये जोश के साथ
फिर निकल पड़ती,
दिल्ली की सड़कों पर।
दिल्ली के लोगों को,
रोज़ मुझे ट्रैफ़िक संभालते हुए,
देखने की आदत सी पड़ गई थी।
उन्हें यह बदलाव अच्छा लगा।
ट्रैफ़िक को व्यवस्थित करने के लिए ज़रूरी था...
कि लोगों को
गलत तरीके से गाड़ियां खड़ी करने से
रोका जाये।
पुलिस के पास क्रेनें नहीं थीं,
इसलिए मैंने शहर में उपलब्ध
सभी क्रेनें किराए पर ले लीं,
और गलत ढंग से खड़ी गाड़ियों को
उठवाना शुरू कर दिया।
यह समाचार फैलते ही
वाहन चालकों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
वो वाहनों को सही जगह पर,
सही ढंग से खड़ा करने लगे।
क्योंकि उन्हें क्रेन बेदी\' का डर रहता था।
एक दिन एक वीआईपी की कार,
सड़क पर गलत ढंग से खड़ी पाई गई।
कार का चालक
उसकी मरम्मत करवा रहा था।
एक सब-इन्स्पैक्टर ने चालक पर जुर्माना किया
और कार को क्रेन से उठवा कर थाने ले आया।
उसने इस बात की ज़रा भी चिन्ता नहीं की
कि कार किसी वीआईपी की है।
असल में,
वो श्रीमती इंदिरा गांधी की कार थी,
जो तब प्रधानमंत्री थीं।
इस पूरे मामले में,
मैंने सब-इन्स्पैक्टर का साथ दिया,
क्योंकि उसने पूरी ईमानदारी से
अपना कर्तव्य निभाया था।
अगले दिन यह समाचार,
अखबारों के पहले पन्ने पर छपा।
कई लोगों ने इस बात का विरोध किया
और कई लोगों ने साथ भी दिया
और सम्मान भी दिया।
क्योंकि मैंने वही किया जो सही था।
Story: Kiran Bedi
Story Adaptation: Ananya Parthibhan
Illustrations: M Kathiravan
Music: Acoustrics (Students of AR Rahaman)
Translation: Madhu B Joshi
Narration: Kiran Bedi