सीप में बंद घुटन.... ज़किया ज़ुबैरी (ब्रिटेन) (1) आज वह घुट रही थी कि रवि चुप क्यों है---!! जब ...
सांकल ज़किया ज़ुबैरी (1) क्या उसने अपने गिरने की कोई सीमा तय नहीं कर रखी? सीमा के आंसुओं ने ...
लौट आओ तुम... ! ज़किया ज़ुबैरी (1) “बीबी... ! कहाँ हैं आप... !” ''मैं नीचे हूं आपा... ड्राइंग रूम ...
मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (1) गरमी और उस पर बला की उमस! कपड़े जैसे शरीर से चिपके ...
बेचारी ईडियट... ! ज़किया ज़ुबैरी (1) लाल पीली और नीली रौशनियाँ... गोल गोल छोटे बड़े रंगीन शीशे के चहुं ...
बाबुल मोरा.... ज़किया ज़ुबैरी (1) “मां मैने कह दिया, मैं यह घर नहीं छोड़ूंगी।” “क्यों नहीं छोड़ेगी और कैसे ...
बस एक कदम.... ज़किया ज़ुबैरी (1) “नहीं मैं नहीं आऊंगी।” शैली को अपनी आवाज़ में भरे आत्मविश्वास पर स्वयं ...
ढीठ मुस्कुराहटें... ज़किया ज़ुबैरी (1) “अरे भई रानी मेरी एड़ी को गुदगुदा क्यों रही हो... क्या करती हो भई... ...
कच्चा गोश्त ज़किया ज़ुबैरी (1) बित्ते भर का क़द और दस गिरह लम्बी ज़बान!... और जब यह ज़बान कतरनी ...