जो क र - विवेक मिश्र फिर मेट्रो आई रुकी और चली गई. समय ...
' घड़ा 'विशाल उठकर बिस्तर पर बैठ गए। उनके माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं। विशाल तेज़ी ...
अगस्त का आख़िरी हफ़्ता था। बारिश बहुत कम हुई थी। बादल आसमान पर ठहरे थे। बरसने के लिए उन्हें ...
दीपांश को अस्पताल में आए पाँच दिन बीत चुके थे... कमज़ोरी और खून कमी के कारण डॉक्टर ने फिलहाल ...
शिमोर्ग को आज अपने चारों ओर पहाड़ों का हरा रंग देखकर बचपन की होली याद आ रही थी, ऐसा ...
शिमोर्ग और विश्वमोहन के जाने के बाद तुरंत अस्पताल से निकल पड़ने पर भी हम दोपहर बीतते-बीतते ही संगीत ...
दीपांश के अतीत से निकल कर वर्तमान में आने की कोशिश में, हम शिवपुरी की उस लॉज की कैन्टीन ...
पिछले दो तीन दिन से दिल्ली में सर्दी बहुत बढ़ गई थी. अकेले आदमी के लिए इस मौसम की ...
उस दिन अनंत ने अपने हाथ से चाय बनाकर दोनों को दी. फिर एक चिट्ठियों का पुराना गट्ठर खोल ...
सुबह जब रेबेका की आँख खुली तो उस कमरे की गर्माहट किसी घोंसले सी लगी. मन किया फिर से ...