स्याह रातों की सुबह काॅफी हाउस के एक टेबल पर वे दोनों आमने-सामने बैठे हुए थे। ध्यान से देखा ...
- खंड-3 - यह सब शायद यूँ ही चलता रहता यदि उन दिनों मैं अपनी चचेरी नन्द के घर ...
- खंड-2 - देवेन्द्र भइया मेरे ताऊ जी के बेटे थे। ताऊ जी ने अपने जीवन काल में पर्याप्त ...
खंड-1 शतरंज की बिछी हुई बिसात पर सबको मोहरा बना कर खेलती हुई प्रकृति कितनी निष्ठुर हो उठी होगी ...
साला फटीचर आज काम का बोझ बहुत ज्यादा था, आलोक को मानो साँस लेने की भी फुर्सत नहीं ...
प्रिय दीदीचौंक गई न? तुमने तो कभी सोंचा तक नहीं होगा कि मैं तुम्हें पत्र लिखूँगी। पर एक बात ...
संघर्ष - पार्ट 3 सचमुच, सबके सामने मानों बम ही फूट गया था... मेरी ऐसी हिमाकत के ...
संघर्ष (पार्ट - 2) किसी विधवा, गरीब माँ की इकलौती बेटी थीं ज्योति दी, जिनको रोहित जैसा वर मिलने ...
संघर्ष पार्ट 1 शुरू में तो विश्वास ही नहीं हुआ और बेहद आश्चर्यचकित थी मैं, फिर एक अनकही नफ़रत ...
कालचक्र उस दिन अचानक आशीष का फोन आया। न जाने कितने समय बाद उसकी आवाज़ कान में पड़ी थी। ...