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मैं वही हूँ! - 4 - अंतिम भाग

by Jaishree Roy
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मैं वही हूँ! (4) “दीपेन! तुम्हें मेरा नाम किसने बताया? मेरा सर चकराने-सा लगा था। वह अचानक पलट कर ...

मैं वही हूँ! - 3

by Jaishree Roy
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मैं वही हूँ! (3) बिस्तर में देर तक करवटें बदलने के बाद मैं उठ कर बाहर आ गया था। ...

मैं वही हूँ! - 2

by Jaishree Roy
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मैं वही हूँ! (2) उस तरफ देखते हुये मुझे तेज डर की अनुभूति हुई थी! शरीर में झुरझुरी फैल ...

मैं वही हूँ! - 1

by Jaishree Roy
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मैं वही हूँ! (1) मैं नया था यहाँ। नई-नई नौकरी ले कर आया था। इलाके की सभी पुरानी और ...

निर्वाण - 3 - अंतिम भाग

by Jaishree Roy
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निर्वाण (3) भगवान अफरोदित के प्राचीन मंदिर के गलियारे में यूलिया अपने सर पर तारों का मुकुट पहने सालों ...

निर्वाण - 2

by Jaishree Roy
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निर्वाण (2) गौरांग-सा दिव्य रूप था नकूल बोधिसत्व का! उनके चेहरे पर हमेशा बनी रहने वाली स्मित मुस्कान से ...

निर्वाण - 1

by Jaishree Roy
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निर्वाण (1) 15 अगस्त, 2016 आमफावा फ्लोटिंग मार्केट की सीढ़ियों पर उस दिन हम देर तक बैठे रहे थे। ...

उजाले की ओर - 4 - अंतिम भाग

by Jaishree Roy
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उजाले की ओर जयश्री रॉय (4) परियोजना के बाहर प्रौढ़ शिक्षा केंद्र, आस-पास के गाँव की महिलाओं के लिए ...

उजाले की ओर - 3

by Jaishree Roy
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उजाले की ओर जयश्री रॉय (3) उस दिन वह सुबीर के साथ विंध्य क्लब गई थी। उसके किसी कोलीग ...

उजाले की ओर - 2

by Jaishree Roy
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उजाले की ओर जयश्री रॉय (2) सुबीर के ओहदे के हिसाब से उन्हें सी टाइप क्वार्टर मिला था। दो ...