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समीक्षा - कहानी संग्रह, सुर्ख़ लाल रंग

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 5.6k

जीवन के ठोस धरातल से जन्म लेती कहानियाँ. . . 'सुर्ख़ लाल रंग'साहित्य की विधाओं में कहानी विधा एक ...

वह सब जो मैंने कहा

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 5.8k

आज 'लोकल' में भीड़ नहीं थी। ऐसा कम ही होता है, मेरे आस पास भी केवल तीन लोग ही ...

जीवन में दस्तक देता सिनेमा

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 9.3k

जीवन में दस्तक देता सिनेमा ...

बोलते शब्दों में “लिखी हुयी इबारत”

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 5.4k

साहित्य के क्षेत्र में यदि लघुकथा के संदर्भ में बात की जाए तो हाल ही के कुछ वर्षों में ...

'राम का जीवन या जीवन में राम' - एक अवलोकन

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 8.6k

राम का जीवन या जीवन में राम – अनघा जोगलेकर (एक संक्षिप्त अवलोकन ) ...

बिटिया! बदल गई तुम

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 12.7k

बिटिया! बदल गई तुम मेरी प्यारी बिटिया, ढेरों प्रेम भरा स्नेह और आशीर्वाद। जानता हूँ अपने मेल बॉक्स में ...

न जानें क्यों

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 6.6k

न जानें क्यों "प्रा जी अगर कोई प्रोब्लम न होवे तां, तुस्सी विंडो वाली सीट मैनूं दे सकदे हो।" ...

आस्था के रंग

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 10.5k

एक ही पेशा था हम दोनों का, और अक्सर किसी बड़े काम में दोनों साथ मिलकर काम को अंजाम ...

स्वाभिमान - लघुकथा - 49

by VIRENDER VEER MEHTA
  • 6.6k

'इस समय कौन आ सकता है?' डोर-बेल की आवाज पर सोचते हुए निशि ने दरवाजा खोला, सामने रवि था। ...

फांस - AN EMBARRASSMENT

by VIRENDER VEER MEHTA
  • (4.3/5)
  • 9.8k

‘फांस’ - AN EMBARRASSMENT ...