कुछ द़िन पहले मेरी मुलाकात एक ‘लाडो मित्र’ से हुई। जो गांव-ढाणियों में जाकर 'बेटी शिक्षा' कार्यक्रम का प्रचार ...
रमौली ख़ुद से ख़ुद की बातों में दिनरात उलझी हुई है। एक घुटन सी है उसके चारों ओर...। जहां ...
हर सुबह की तरह आज की सुबह न थी....आज ना तो सूरज की किरणें घर के भीतर झांक रही ...
आभासी दुनिया का एक सच, जब बच्चे ही आपस में कह रहे हैं क्या दिन थे वो जब हम ...
हमेशा याद रहेगा वो एक कप चाय का प्याला, बहुत स्पेशल जो था। होता भी क्यूं ना? किसी के ...
अलमारी की दराज़ में अब भी उसकी यादें बसती है। उसकी शर्ट का बटन, पेन का ढक्कन और वो ...
ताड़ियों संग घुमते पहिए...चमचमाती घंटी की 'ट्रिंग...ट्रिंग'...और 'हैंडल' पर लटकती हुई कपड़े की 'थैली'..। जिसके भीतर तेल से सनी ...