स्वयंसिद्धा सुखिया का पोर पोर आज बुरी तरह से दुख रहा था। रोम रोम में असहनीय ...
आकाश के सुरुचिपूर्ण ढंग से बने हुए मकान सुकून में उनके पहले शिशु के नामकरण संस्कार के उपलक्ष में ...
सुकून “पापा..... पापा..... अरे मुग्द्धा, पापा को कहीं देखा है क्या? अपने कमरे में नहीं हैं। ...
पश्चाताप रात के बारह बज रहे थे, लेकिन राधारमण जी की आंखों से नींद मानो कोसों दूर ...
मौलश्री आज बेहद गमगीन थी। सांझ का सुरमई अंधेरा धीरे धीरे गहराने लगा था। जैसे जैसे रात्रि की कालिमा ...
'पापा, डाइनिंग रूम में आजाओ, आपका नाश्ता लग गया है. सबके साथ नाश्ता करलो, नहीं तो बाद में कहोगे, ...
केतकी बेहद खिन्नता का अनुभव कर रही थी. सामने के घर से आती शहनाई की मधुर स्वरलहरी भी आज ...
पलाश......... पलाश........कहाँ जा रहे हो?.........अपनी केया को बीच राह में छोड़ कर..........वापिस आजाओ.........मत जाओ मुझसे दूर......पलाश........और एक ह्रदय विदारक ...
जेठ माह की तपती आग उगलती लंबी रात थी। हवा में बेहद तपिश थी। दुर्गा की टीन-टप्पर की बनी ...
यह कहानी राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती के अप्रेल 2018 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। ...