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समानता ?

by नाथूराम जाट
  • 3.7k

कौन कहता है अब समाज मे लड़की लड़का बराबर है। आज भी सभी अंतिम फैसले पुरुष के हीं होते ...

नारी सशक्तिकरण

by नाथूराम जाट
  • 7k

मेरे कहने से कुछ बदल जाता तो मैं सब कुछ सबसे पहले कहती की, नारी अब वो नहीं रही ...

मेरी अकेली रात

by नाथूराम जाट
  • 7.1k

बस बस बस बस बस बस करो अब थक गईं हूँ ।मैं तुम से प्यार की उम्मीद रखना, अब ...

उनकी यादे

by नाथूराम जाट
  • 4.8k

ख़ास उनसे मुलाक़ात ना हो रातों में कम -से -कम सो तो अच्छे से पाये गये. क्या करे की ...

प्रेम के नवरात्रि

by नाथूराम जाट
  • 6k

आज फिर साल का दूसरा महीना आया है सब के मन में अनेको समन्दर के बराबर उफान है, ...

हमेशा अकेली

by नाथूराम जाट
  • 8.4k

बात कुछ यू शुरू हुई, कॉलेज के दिन थे बड़े मजे वाले एक साल पूरा हुआ भी नहीं की ...