मैं ढग-ढग उछलते सागर सा हूं, उसकी आंखों का तारा हूं ...
आज गया था वहां जहाँ कभी मैंने अपने नन्हे पाव रखें थे जमी पर ,जहां कभी लहरातें खेत-खलीयान मे ...