लेखक की लिखी उपन्यासों में अनुराधा, हमनशी, जीवनधारा, सोनाझुरी और कबीगुरु, वह स्त्री थी या ज़िन्न, आदि काफी लोकप्रिय हैंl इनकी लघुकथाओं का संकलन - स्पर्श; आठ कहानियां दिल से दिल तक- पुस्तक के रूप में amazon, flipkart एवम BlueRose से प्राप्त किया जा सकता हैl देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओ, वेबसाइट्स, YouTube, Amazon Prime Music, Spotify, Jio Saavn पर भी इनकी रचनाएं उपलब्ध हैl

Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी सुविचार
2 महीना पहले

चिड़े के घोंसले सा है आशियाना अपना,
आज यहाँ कल वहाँ ले चले,
मिरे रहगुज़र में रैनबसेरा भी नहीं मयस्सर
बवंडर अब उड़ा के जहां ले चले।

-Shwet Kumar Sinha

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Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी सुविचार
2 महीना पहले

शोर बहुत करते हैं,
प्यार भरी बातें तुम्हारी मगर
आंखों से जब बोलती हो
दिल में उतर जाता है।

-Shwet Kumar Sinha

Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी सुविचार
2 महीना पहले

मिरे मिसरों को ख़यालात मत समझिएगा,
मेरी आपबीती है, मैने जी के गुजारा है

-Shwet Kumar Sinha

Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी समाचार
4 महीना पहले

उपन्यास- #सोनाझुरी_और_कबीगुरु महान कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता कबीगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर को समर्पित है, जिन्होने अपनी कविताओं और गीतों, जो रबीन्द्र संगीत के नाम से विश्वविख्यात है, रचकर भारतीय साहित्य और संस्कृति का एक नया इतिहास रच डाला।
रबीन्द्र संगीत में कबीगुरु के द्वारा प्रकृति और मानवीय भावनाओं की एकीकृत अभिव्यक्ति अद्वितीय है। “सोनाझुरी और कबीगुरु” उपन्यास के माध्यम से मैने उसकी एक छोटी सी झलक प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
रबींद्र संगीत का भारतीय और विशेषकर बंगाली संस्कृति पर गहरा प्रभाव रहा है। तभी तो भारत के पश्चिम बंगाल और पड़ोसी मित्रराष्ट्र बांग्लादेश में इन गीतों को बंगाल की सांस्कृतिक निधि माना गया है।
कबीगुरु और रबींद्रसंगीत की चर्चा बिना शांतिनिकेतन के अधूरी सी प्रतीत होती है। शांतिनिकेतन और उसके पास ही स्थित सोनाझुरी को साहित्य और प्रकृति का अद्भूत संगम कहना गलत न होगा, जहां के चप्पे-चप्पे पर मानो गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के पद्चिन्ह देखने को मिलते हैं।
कबीगुरु का व्यक्तित्व और रबींद्रसंगीत सदा से ही मुझे अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है, जिसकी वजह से शांतिनिकेतन और सोनाझुरी की मनोरम वादियों में जाने से खुद को रोक न पाया।
रबींद्रसंगीत और बंगाली संस्कृति के तानेबाने पर रची उपन्यास “सोनाझुरी और कबीगुरू” प्रेमकथा पर आधारित है जिसके माध्यम से मैने उन स्वर्गतूल्य पावन वादियों की एक छोटी-सी लकीर उकेरने की कोशिश की है और आशा करता हूँ पसंद आएगी।
नीचे दिए लिंक पर जाकर आप उपन्यास “सोनाझुरी और कबीगुरु” खरीद सकते हैं।
https://amzn.eu/d/fLYH0oK

धन्यवाद सहित,

श्वेत कुमार सिन्हा
Shwet Kumar Sinha
लेखक,उपन्यासकार एवम् पटकथालेखक
Writer, Novelist and Screenwriter

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Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी प्रेरक
6 महीना पहले

पर्वत पुरुष दशरथ मांझी, जिन्होंने केवल हथौड़ा और छेनी की मदद से गया(बिहार) के गहलौर पहाड़ काटकर सड़क बना डाला जिसका परिणाम यह हुआ कि 55 किलोमीटर का रास्ता 15 किलोमीटर में तब्दील हो गया। ऐसे महान पुरुष को शत–शत नमन।
इसी गहलौर घाटी से गुजरते वक्त आज मेरी मुलाकात दशरथ मांझी के पुत्र श्री भगीरथ मांझी से हुई। बातचीत के क्रम में मेरी लिखी पुस्तक "स्पर्श" पर भी चर्चा निकली। संयोग से पुस्तक की एक प्रति मेरे साथ थी। बहुत गौरवान्वित महसूस हुआ जब इन्हे पुस्तक की प्रति सौंप रहा था। कैमरे में कैद किए गए कुछ स्मरणीय क्षण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
#mountainman #dashrathmanjhi #gehlaur #Gaya #WhiteBee #shwetkumarsinha #bihariwriter #indianwriter #bluerosepublishers

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Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी प्रेरक
6 महीना पहले

पर्वत पुरुष दशरथ मांझी, जिन्होंने केवल हथौड़ा और छेनी की मदद से गया(बिहार) के गहलौर पहाड़ काटकर सड़क बना डाला जिसका परिणाम यह हुआ कि 55 किलोमीटर का रास्ता 15 किलोमीटर में तब्दील हो गया। ऐसे महान पुरुष को शत–शत नमन।
इसी गहलौर घाटी से गुजरते वक्त आज मेरी मुलाकात दशरथ मांझी के पुत्र श्री भगीरथ मांझी से हुई। बातचीत के क्रम में मेरी लिखी पुस्तक "स्पर्श" पर भी चर्चा निकली। संयोग से पुस्तक की एक प्रति मेरे साथ थी। बहुत गौरवान्वित महसूस हुआ जब इन्हे पुस्तक की प्रति सौंप रहा था। कैमरे में कैद किए गए कुछ स्मरणीय क्षण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
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6 महीना पहले

पर्वत पुरुष दशरथ मांझी, जिन्होंने केवल हथौड़ा और छेनी की मदद से गया(बिहार) के गहलौर पहाड़ काटकर सड़क बना डाला जिसका परिणाम यह हुआ कि 55 किलोमीटर का रास्ता 15 किलोमीटर में तब्दील हो गया। ऐसे महान पुरुष को शत–शत नमन।
इसी गहलौर घाटी से गुजरते वक्त आज मेरी मुलाकात दशरथ मांझी के पुत्र श्री भगीरथ मांझी से हुई। बातचीत के क्रम में मेरी लिखी पुस्तक "स्पर्श" पर भी चर्चा निकली। संयोग से पुस्तक की एक प्रति मेरे साथ थी। बहुत गौरवान्वित महसूस हुआ जब इन्हे पुस्तक की प्रति सौंप रहा था। कैमरे में कैद किए गए कुछ स्मरणीय क्षण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
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Shwet Kumar Sinha मातृभारती सत्यापित कोट्स पर पोस्ट किया गया हिंदी कहानी
7 महीना पहले

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7 महीना पहले

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