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रामानुज 'दरिया' गोण्डा अवध उत्तर प्रदेश।पिता जी - श्री श्याम सगुन तिवारी,माता जी श्रीमती कुसमा देवी, ग्राम-दरियापुर माफी,पोस्ट-देवरिया अलावल,जिला-गोण्डा l साहित्य का उद्देश्य सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना नहीं होता शर्त यह है कि सूरत बदलनी चाहिए।
खुद को खोकर तुझे हमने पाया है कुछ इस कदर हमने दौलत कमाया है। मुक़ददर की राहें बिरान लगती हैं दरिया दिखते फूलों में सिर्फ़ कांटों की काया है। जवानी गिरवीं पड़ी है साहूकार के यहां जिसे पाने में तन मन धन सब गवांया है। हर मोड़ पर अग्नि परीक्षा नहीं लेते दरिया इस बात को तुम्हें कितनी बार समझाया है। थक गयी रातें जो नींद की कसमें खाती थी हमने आंखों में नया दीपक जो जलाया है। -रामानुज दरिया
आप ईमानदार हो इससे अच्छा कुछ नहीं आप ईमानदारी की कीमत चाहते हो इससे बुरा कुछ नहीं। आप हां में हां मिलाते हो आपसे अच्छा कोई नहीं आप गलत का विरोध करना जानते हो आपसे बुरा कोई नहीं। -रामानुज दरिया
जमीं जमीं सी धरती और खुला खुला स आसमां होगा सितारे अंधेरा मिटायेंगे चांद हुस्न में अपने जवां होगा उस रात जाने क्या होगा। कोख मां की चीखेगी पांव पिता के लड़खड़ायेंगे हालात इतना नया होगा वर्तमान भविष्य में रवां होगा उस रात जाने क्या होगा। -रामानुज दरिया
मज़ाल क्या जो कोई बंदर हमें चिढ़ा सके हमने हर साख पे अपने उल्लू बिठा रख्खे हैं। -रामानुज दरिया
बस रोने को ही जी चाहता है जाने क्या खोने को जी चाहता है। बचा नही कुछ भी अब मेरा जाने किसका होने को जी चाहता है। लिपट कर रोती है ये रात भी रात भर जाने किसके संग सोने को जी चाहता है। दौलत खूब कमाया उदासी और तन्हाई भी जाने किस खजाने को जी चाहता है। इर्ष्या द्वेष कलह फ़सल सारी तैयार है जाने कौन सा बीज बोने को जी चाहता है। ओढ़ ली कफ़न खुद से रूबरू होकर जाने कौन सी चादर ओढ़ने को जी चाहता है। -रामानुज दरिया
पास आकर न दूर जाया करो इस क़दर भी न सताया करो। ख़्वाबों के दरमियां फासले हैं न ख्वाबों से तुम घबराया करो। जिंदगी की असली कमाई तुम हो मेरी कमाई से न मुकर जाया करो। दिल दे दिये हो तो भरोसा रख्खो हर जगह न हाथ आजमाया करो। -रामानुज दरिया
भूले से भी जान भूल मत जाना नाज़ुक दिल है ज्यादा मत दुखाना। आ गया हूँ मैं धनवानों की कतार में जान तू ही है मेरा असली खजाना। प्यार तुमसे है, बस यही था कहना आता नहीं मुझे ज्यादा बातें बनाना। चाह है मिलने की हम मिलेंगे जरूर रोक सकेगा कब तक बेरहम जमाना। -रामानुज दरिया
मैं लड़ता ही कब तलक उससे आख़िर जिसने ख़ुद को मिटा दिया मेरे खातिर। उसकी तो मजबूरियां थी बिछड़ने की इल्ज़ाम बेवफ़ा का लिया मेरे खातिर। बेशक था मैं मोहब्बत का दरिया तरस गया हूँ इक बूंद प्यार के खातिर। जिस्म-फ़रोसी से निकाल कर लायी है उससे ज्यादा उसका दिमाग था शातिर। चलो अब इक राह नयी बनाते हैं कुछ और नहीं ,अपने प्यार के ख़ातिर। दुनिया का एक सच ये भी है 'दरिया' भेंट होती रहती है पेट के ख़ातिर। सेहत गिरती रही मेरी दिन - ब - दिन पीछे भागता रहा मैं स्वाद के ख़ातिर। हर कोई तुम्हारा हम दर्द है दरिया तरसोगे नहीं चुटकी भर नमक ख़ातिर। उलझ जाते हैं सारे रिस्ते सही गलत में लड़ना पड़ता है यहां प्यार के ख़ातिर। हर फ़ैसला हमारा सही हो ज़रूरी तो नहीं बहुत कुछ करना पड़ता है व्यापार के ख़ातिर। -रामानुज दरिया
मेरी रातों की नींद उड़ाने वाले मेरी सुबह की सलाम ले जाना। खामोशियों के अनछुये रिश्तों से इश्क़ का तकिया कलाम ले जाना। जा रही हो तो सुनो इक बार सनम साथ,अपने दिल का निज़ाम ले जाना। तेरे इशारों पे नाचता फिरता था जो साथ अपने जोरू का गुलाम ले जाना। -रामानुज दरिया
उसके सिवा कुछ दिखायी नहीं देता मेरी आँखों से पर्दा हटा दो यारों। बड़ा मीठा होता है स्वाद झूठ का स्वाद सच का भी चखा दो यारों। दोस्ती के लिबास में दुश्मन भी आयेंगे जरूरतों को थोड़ी सी हवा दो यारों। झोपड़ी महल बनते देर नहीं लगती अपने हौंसलों को जुबां तो दो यारों। कितनों महल जमींदोज़ हो गये यहां अहंकारों को अपने रवां होने दो यारों। सारे रस्मों रिवाज़ तोड़ कर आयेगी इश्क़ को थोड़ा और जवां होने दो यारों। -रामानुज दरिया
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