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रामानुज 'दरिया' गोण्डा अवध उत्तर प्रदेश।पिता जी - श्री श्याम सगुन तिवारी,माता जी श्रीमती कुसमा देवी, ग्राम-दरियापुर माफी,पोस्ट-देवरिया अलावल,जिला-गोण्डा l साहित्य का उद्देश्य सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना नहीं होता शर्त यह है कि सूरत बदलनी चाहिए।
जब से दिल में उतरने लगे हो तुम मेरी कलम से निकलने लगे हो तुम "दरिया"
हुस्न बेकरार बहुत है लव पे इकरार बहुत है आ बैठ पास जिंदगी आज इंतजार बहुत है। -Ramanuj Dariya
लक्ष्य प्राप्ति के लिये साधन नहीं साधना की जरूरत होती है। -Ramanuj Dariya
समय के साथ जीने के सलीके बदल जाते हैं साहब जो जान देने की बात करते थे आज लेने पे उतर आए हैं -Ramanuj Dariya
कि एक सिगरेट मेरे लिये भी जलाओ जिंदगी को बुझाने से फायदा क्या है क्या इश्क ने तुम्हें सिखाया नहीं दरिया बेवफ़ाई निभाने का कायदा क्या है। -Ramanuj Dariya
खुद पर मुझे अब एतबार हो गया तुझे देखा तो मुझे प्यार हो गया। भले बाहों से बाहें न मिले कभी पर नयनों से प्यार बेसुमार हो गया। तुम जिंदगी की सबसे अजीज़ हो तेरी छुवन से मुझे प्यार हो गया। -Ramanuj Dariya
प्रेम एक दूसरे के प्रति समर्पण का नाम है, गुलामी का नहीं। -Ramanuj Dariya
तूने दिया ही क्या है, ए - इश्क मुझे चंद आँशु और एक टूटी हुयी कलम। -Ramanuj Dariya
जब तेरे बगैर करवा चौथ बीत गया ए- चाँद फिर दिवाली क्या चीज़ है। -Ramanuj Dariya
बदनामियों से कौन डरता है यहां इश्क परवान चढ़ कर तो आये। -Ramanuj Dariya
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