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बालकहानी लिखना व पढ़ना अच्छा लगता है इसलिए बालकहानी लिखता-पढ़ता हूँ. बालकविता की सरलता व सहजता भांति है इसलिए बालकविता रचता हूँ. वही लघुकथा में कम शब्दों में बहुत कुछ कह सकते है इसलिए इसलिए लघुकथाएँ अच्छी लगती है. यही वजह है कि लघुकथा लिखता हूँ.
खंजर पीठ में घोपा जाता है, मगर उस का घाव होता नहीं . आस्तीन में पलते सांप को देखना हो, मेरे शहर आ कर देखो. #ओमप्रकाश_क्षत्रिय_प्रकाश
लफ्जों में क्या देखते हो मन की पीड़ा को , देखना हो दर्द-ऐ-दिल का हाल, प्यार कर के देखो .
ओमप्रकाश क्षत्रिय शब्द—निष्ठा सम्मान हेतु चयनित ( रोचक विज्ञान बालकहानियों के संग्रह पर मिलेगा सम्मान ) रतनगढ़ ! आचार्य रत्नलाल विज्ञानुग की स्मृति में शब्दनिष्ठा सम्मान देशभर की प्रसिद्ध साहित्यिक प्रतिभा और उन की कृति के आधार पर चयनित रचनाकारों को पुरस्कार प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार दो वर्ग में विभाजित किया जाता है. एक वर्ग में पुस्तक की श्रेष्ठता के आधार पर और दूसरे वर्ग का पुरस्कार कहानी की श्रेष्ठता के आधार पर दिया जाता है. जिस में प्रथम वर्ग में 5500 रूपए, दूसरे वर्ग में 5100 रूपए और तृतीय वर्ग में 3100 रूपए की राशि के साथ शाल, श्रीफल, प्रमाणपत्र व प्रकाशित पुस्तक दे कर सम्मान पुरस्कृत किया जाता है. प्रत्येक वर्ग में दोदो रचनाकारों का सम्मान किया जाता है. संयोजक डॉ अखिलेश पालरिया ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में 2019 के सम्मान की घोषणा की है. जिस में नीमच जिले के प्रसिद्ध बालसाहित्कार ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' की कृति 'रोचक विज्ञान बालकहानियां' को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ है. इस चयन फलस्वरूप आप को शब्द निष्ठा सम्मान कार्यक्रम में 3100 रूपए की नगद राशि, शाल, श्रीफल व प्रमाणपत्र आदि दे कर सम्मानित किया जाएगा. इस पुरस्कार हेतु चयनित होने पर साहित्यकार साथियों और इष्टमित्रों ने आप को हार्दिक बधाई दी. इन का कहना है कि यह नीमच क्षेत्र के लिए गौरव का विषय है. स्मरणीय है कि आप को गत वर्ष नेपाल प्रदेश 2 के मुख्यमंत्री लालबाबू राऊतजी द्वारा नेपाल- भारत साहित्य सेतु सम्मान-2018 से नेपाल के बीरगंज में सम्मानित किया गया था. ---------------- आप के लोकप्रिय समाचार पत्र में प्रकाशनार्थ =======================================
लघुकथा— बेटी मां ने बैचेनी से इधरउधर देखा. बेटा और बहू पास के कमरे में थे. मन हुआ कि बेटी से कह दे ,'' सुमन ! दो भाइयों के बीच बटी मां तूझे पहले जैसा वह सबकुछ नहीं दे पाउंगी, जैसा देना चाहती हूं.'' तभी सुमन की आवाज आई, '' मां ! कुछ नहीं दोगी ?'' '' नानी हमें भी.'' बच्चे मचल उठे. मां ने चुपचाच आंख की कोर में निकल आए आंसू पौंछे और अपनी पुरानी पेटी में हाथ डाला. जहां बड़ी मुश्किल से बचाबचा कर रखे. 10—10 के 10 नोट पड़े थे. जो उस ने अपनी दवा के लिए रख छोड़े थे. हाथ में भींच कर लाई. '' लो ! यह तुम्हारे लिए,'' मां ने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा. '' ओर मुझे !'' सुमन के कहते ही यह वाक्य मां के सीने में तीर की तरह धस गया. मां ने कमरे की ओर चोर निगाहों से देख कर कहा, '' तूझे क्या दूं बेटी ?'' कहते हुए मां ने मुंह फेर लिया. '' वही वाला सब से बड़ा उपहार.'' सुमन ने मां का मुंह अपनी ओर कर लिया. मां के आंसू टपक पड़े. '' कौनसा ?'' '' आप का आशीर्वाद और आप का सानिध्य मां.'' कहते हुए सुमन मां से लिपट गई. ————————————— दिनांक 21.10.2018 ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' पोस्ट आफिस के पास रतनगढ़ जिला— नीमच—45822
लघुकथा— बेटी मां ने बैचेनी से इधरउधर देखा. बेटा और बहू पास के कमरे में थे. मन हुआ कि बेटी से कह दे ,'' सुमन ! दो भाइयों के बीच बटी मां तूझे पहले जैसा वह सबकुछ नहीं दे पाउंगी, जैसा देना चाहती हूं.'' तभी सुमन की आवाज आई, '' मां ! कुछ नहीं दोगी ?'' '' नानी हमें भी.'' बच्चे मचल उठे. मां ने चुपचाच आंख की कोर में निकल आए आंसू पौंछे और अपनी पुरानी पेटी में हाथ डाला. जहां बड़ी मुश्किल से बचाबचा कर रखे. 10—10 के 10 नोट पड़े थे. जो उस ने अपनी दवा के लिए रख छोड़े थे. हाथ में भींच कर लाई. '' लो ! यह तुम्हारे लिए,'' मां ने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा. '' ओर मुझे !'' सुमन के कहते ही यह वाक्य मां के सीने में तीर की तरह धस गया. मां ने कमरे की ओर चोर निगाहों से देख कर कहा, '' तूझे क्या दूं बेटी ?'' कहते हुए मां ने मुंह फेर लिया. '' वही वाला सब से बड़ा उपहार.'' सुमन ने मां का मुंह अपनी ओर कर लिया. मां के आंसू टपक पड़े. '' कौनसा ?'' '' आप का आशीर्वाद और आप का सानिध्य मां.'' कहते हुए सुमन मां से लिपट गई. ————————————— दिनांक 21.10.2018 ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' पोस्ट आफिस के पास रतनगढ़ जिला— नीमच—458226
कविता - लड़कियां पटा रही है #kavyoutsaV लड़कियां पटा रही है बूढ़े और मुस्टंग. कुंवारे युवा देख कर, रह गए दंग. अजग—गजब का हो रहा है खेल, बिगड़ रहे रिश्तें और संबंधों के रंग. होगी कैसे जंग ? समझ न मझ को आया ? टिमटिमाता दीपक और आंधी की छाया. कौन—कितनी देर रूकेगा इस में जलती अग्नि में वर्षा की है माया. वर्षा की है माया, समझ न आए ढंग. ये टीआरपी का खेल है या राजनीति का रंग. बूढ़ेयुवा मिल कर खेल रहे है खेल. मैं इस की हो ली, होली किसी ओर के संग. होली किसी ओर के संग, कहे कविराय. चलतेचलते रास्ते करती लड़की बायबाय. बॉय से बॉय मिले तो हो जाए शादी. कैसे बाग खिलेगा बढ़ेगी कैसे आबादी हाय. बढ़ेगी आबादी हाय, माता किस को कौन कहेगा ? लड़केलड़की में से पिता कौन रहेगा ? बिगड़ा ये पर्यावरण के रिश्तों को प्रदूषण तो संस्कार का दोषी कौन किसे कहेगा ? कौन किसे कहेगा ? छोड़ो यह उल्टीसीधी रीत. माता को माता रहने दो और उस की प्रीत. तभी बढ़ेगा आपस में प्रेम, प्यार और मनुहार इसी से मिलेगी मातपिता और मानव को जीत.
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