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अथ गूँगे गॉंव की कथा - उपन्यास
ramgopal bhavuk
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
होली के अवसर पर खेतों में मसूर उखाड़ने का कार्य तेजी से शुरू हो गया था ।
आज मौजी जल्दी ही जाग गया था। यों तो रोज ही जल्दी जागना पड़ता है, पर होली के दिन की उमंग और भी जल्दी जगा देती है। उसकी पत्नी संपतिया उर्फ पचरायवारी सरपंच विष्णु शर्मा शर्मा उर्फ विशन महाराज के यहां गोबर डालने चली गई।
मौजी पत्नी के जाते ही कल खेत से लौटकर रखें गोफन को यहाँ वहाँ खोजने लगा, उसकी बड़ी लड़की रधिया यह देख कर बोली, दादा सुबह-सुबह जाने का खखोर रहे हो ।
मौजी बोला, कल महाते के खेत में से मैं चिड़िया बिडार के आओ, मैंने अपनो गोफन झेंईं कहूं धर दओ। जाने कहां चलो गओ ।
रधिया बोली, दादा तुम बड़े खराब हो ,सबेरें सबेरें गोफन लेकें चिड़ियाँ खेत पै पहुंचबे से पैलें खेत पर पहुंच जाओगे। जब चिड़ियाँ खेत पै पहुंचेंगीं, तुम चिल्ला चिल्ला कें हाय हाय करोगे ।अरे दादा चिड़ियाँ अपनों पेट भरिबे कहां जाएं । विनकें का खेती होते।
मौजी बोला ,बेचारा किसान भी क्या करें ,जो देखो उसी से आस लगाए बैठा है ।दिन-रात किसान मेहनत करे, तब कहीं ये दाने दिखते हैं ।इन पर भी जिनकी देखो उसकी दाड़ है। मंडी में तो इन अनाज के दानों पर मोटे पेट वाले सेठ, चीलों की तरह झपटते हैं ।
उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथगूँगे गॉंव की कथा 1 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति संपर्कः कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0) पिन- 475110 मोबा- 9425715707 ...और पढ़े8770554097 एक होली के अवसर पर खेतों में मसूर उखाड़ने का कार्य तेजी से शुरू हो गया था । आज मौजी जल्दी ही जाग गया था। यों तो रोज ही जल्दी जागना पड़ता है, पर होली के दिन की उमंग और भी जल्दी जगा देती है। उसकी पत्नी संपतिया उर्फ पचरायवारी सरपंच विष्णु
उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथगूँगे गॉंव की कथा 2 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति उनकी ये बातें सुनकर मौजी की होली ढीली पड़ गई। अपराधी की भाँति उनके सामने खड़े होकर बोला-‘महाते, ...और पढ़ेपहुँचत में दानास की बेर हो जायगी।’ वे बोले-‘तुम्हें दानास की परी है। जही खेती-बाड़ी से सब अच्छे लगतयें। जही से सबैय बड़ी-बड़ी बातें आतें।’ मौजी समझ गया कि ये काम पर पहुँचा कर ही रहेंगे,बोला-‘महाते, आज चाहें कछू कह लेऊ, आज तो नहीं चल सकत।’ यह सुनकर महाते गुस्से में आ गये, बोले-‘तो हमाओ हिसाब कर
उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 3 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति अथ गूँगे गॉंव की कथा वह प्रसिद्ध उपन्यास है जो ऐसे भारत के लाखों गांवो की कथा कही जा ...और पढ़ेहै जिनमें जाति पाँति और शोषण की निर्मम घटनाओं के बाद भी न प्रतिकार होता न विद्रोह, हर आदमी गूँगा है लाखों गाँवों में। सन 78 में लिखा अविस्मरणीय उपन्यास है यह। 3 इस बस्ती के जमींदार ठाकुर लालसिंह का यह पुस्तैनी मन्दिर है। जमींदारी के जमाने से ही दानास के यहाँ ठहरने की परम्परा रही है।
उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 4 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति भीड़ में से किसी ने उनकी बात का विरोध किया-‘अरे! ऐसी अटकी हू का है। ...और पढ़ेभलिनकों को पूछतो। गुण्डन की चलती सब जगह हो गई है। फिर जैसे तुम सोच रहे हो वैसे वेऊ सोच रहे हैं कै नहीं?’ किसुना गोली बोला-‘ जे बातिन में टेम खराब मति करो। अरे !जब वे इतै नहीं ढूँके ,अपुन बितै काये कों चलतओ?’झगड़े के डर से अधिकांश लोग गैल काटकर चलने के मूड़ में आ गये। यह
उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 5 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति 5 तेज धूप के कारण कुन्दन का मुँह सूखने लगा। इसी समय तुरही का ...और पढ़ेगूँजा। लोग आलस्य का परित्याग करके उठ खड़े हुये। बाबड़ी के पास से नीचे उतर कर मरधट में जा पहुँचे। इस सास्वत सत्य पर गुलाल चढ़ाकर सभी ने अभिनन्दन किया। तालाब के किनारे से चलकर दानास बालाजी के बाग में पहुँच गया। बालाजी मन्दिर की दुर्दशा देखकर उनका मन क्रोधित होने लगा। मन्दिर की दीवारें फट गईं थीं। मूर्तियों की