नाट्यपुरुष - राजेन्द्र लहरिया - उपन्यास
राज बोहरे
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
बूढ़ा क्यू में था!
क्यू 'महामहिमावान’ के सार्वजनिक अभिनंदन करने के लिए लगी हुई थी, जिसमें स्त्री-पुरुष नौजवानों-जवानों से लेकर बूढ़ों तक की मौजूदगी थी। पर उन सबके बीच, क्यू में मौजूद वह बूढ़ा कुछ अलग ही दिखाई दे रहा ...और पढ़ेवजह यह कि उसके चेहरे-मोहरे, पहनावे और हाव-भाव में औरों से कुछ अलग होने की फ़ितरत नुमायाँ थी: उसका चेहरा गोरा एवं लंबोतरा था; उसके सिर पर झक्क सफेद लंबे बाल थे; उसकी सफेद तराशी हुई दाढ़ी थी; उसने अपनी दुबली-पतली देह पर ढीली नीले रंग की जीन्स की पैन्ट और लाल रंग का लंबा कुरता पहन रखे थे; उसके पैरों में कोल्हापुरी चप्पलें थीं और उसके दाँये कंधे से एक डिज़ाइनर कढ़ाई वाला झोला टंगा हुआ था!
राजेन्द्र लहरिया–नाट्यपुरुष 1 आख्यान बूढ़ा क्यू में था! क्यू 'महामहिमावान’ के सार्वजनिक अभिनंदन करने के लिए लगी हुई थी, जिसमें स्त्री-पुरुष नौजवानों-जवानों से लेकर बूढ़ों तक की मौजूदगी थी। पर उन सबके बीच, क्यू ...और पढ़ेमौजूद वह बूढ़ा कुछ अलग ही दिखाई दे रहा था! वजह यह कि उसके चेहरे-मोहरे, पहनावे और हाव-भाव में औरों से कुछ अलग होने की फ़ितरत नुमायाँ थी: उसका चेहरा गोरा एवं लंबोतरा था; उसके सिर पर झक्क सफेद लंबे बाल थे; उसकी सफेद तराशी हुई दाढ़ी थी; उसने अपनी दुबली-पतली देह पर ढीली नीले रंग की जीन्स की पैन्ट और लाल रंग
राजेन्द्र लहरिया- नाट्यपुरुष 2 --- मंगलिया ने आगे कुछ नहीं पूछा। एक गहरी सांस ली और बाहर को निकल गया। लेकिन श्यामा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कलेजे को चीर दिया हो! अभी थोड़ी ही ...और पढ़ेपहले हुई घटना की स्मृति उसके भीतर हाहाकार मचा गई... ...वह छपरे के द्वार की बग़ल में बैठी हुई थी। अधमरे विचार अतीत की जर्जर किताब के पन्ने पलट रहे थे - क़स्बे से लगभग मील भर दूर बसे आठ-दस टपरों के जंगलाती गाँव में कोई भारी परेशानी नहीं थी... मजूरी न मिलती तो भैंस घर का खर्चा निकाल देती थी
राजेन्द्र लहरिया-नाट्यपुरुष 3 उसके बाद दोनों खड़े हुए और आंगन में जाने के लिए झोंपड़ी के द्वार की ओर मुड़े; तो अचानक उन्हें लगा कि मँड़ैया में अभी-अभी जलाये दोनों दीये बुझ गये हैं: मँड़ैया के द्वार ...और पढ़ेअपना-अपना सूखा-सा मुँह लिये सोना और रामू खड़े थे!... क्यू में लगा बूढ़ा अब देख रहा था: रंग-मंच पर मंगलिया एवं श्यामा; और मँडैय़ा के द्वार में खड़े उनके दोनों बच्चों-सोना और रामू - के मासूम रुखे-सूखे-भूखे चेहरों को पीली रौशनी का वृत्त डाल कर उजागर किया गया है; और उसके साथ ही वाइलिन का मंद्र स्वर उभरता है -
राजेन्द्र लहरिया-नाट्यपुरुष 4 और नियत दिन ठीक समय पर रणजीत उसके घर आ गया था। बैठते ही उसने बिना लाग-लपेट कहना शुरू कर दिया था, ''सर, आप एक नाटककार हैं, रंगकर्मी हैं... आपका 'अंधेर नगरी’ देखने के ...और पढ़ेमुझे लगा था कि आपको अपनी कहानी बताई जानी चाहिए... दरअसल कहानी नहीं, अपनी बीती!... क्या आप सुनने के लिए थोड़ा समय निकालना चाहेंगे?’’ ''ज़रूर!...ज़रूर!...’’ सुन कर एक आश्वस्ति रणजीत के चेहरे पर झलकी थी; और वह बोला था, ''सर मैं एक ऐसा आदमी हूं, जो बहुत आसानी से ख़ुश नहीं होता हूँ और बहुत आसानी से किसी से नफ़रत भी
राजेन्द्र लहरिया-नाट्यपुरुष 5 यह बताने के बाद रणजीत कुछ पलों तक चुप रहा। उस वक्त उसके चेहरे पर बेचैनी की रेखाएँ खिंची हुई थीं। उसके बाद वह फिर अपनी बीती पर आ गया, ''सर, पिता ने मेरा ...और पढ़ेएक केंद्रीय यूनीवर्सिटी में कराया था - राजनीति पढऩे के लिए - इसलिए कि मैं आगे चलकर एक वेल ऐजूकेटेड राजनीतिक बनूँ और उनकी विरासत को आगे बढ़ाऊँ!... और मैं, राजनीति पढ़ रहा था - राजनीतिक बनने के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिशास्त्रियों के विचारों से दो-चार होने के लिए! मैं मानता हूँ कि वह अध्ययन-काल मेरे जीवन का सबसे कीमती समय
राजेन्द्र लहरिया-नाट्यपुरुष 6 क्यू में लगा बूढ़ा अब अपने साथ था - अपने भीतर- अपनी पीडि़त-कराहती अंतरात्मा के साथ... बूढ़े का एक परिवार है, घर है... कुछ समय पहले तक बूढ़े का घर कलाओं और कलाकारों का ...और पढ़ेथा... बूढ़ा ख़ुद एक नाटककर्मी-मंचकर्मी-रंगकर्मी; बूढ़े का इकलौता बेटा हिन्दुस्तानी क्लासीकल संगीत का एक कंपोज़र-गायक; बूढ़े की पुत्रवधु मोहिनीअट्टम की एक निष्णात नृत्यांगना; और बूढ़े का चौदह वर्षीय पोता एक तैयार होदा फ्लूटिस्ट! ...बूढ़े का घर हमेशा जैसे कलाओं के कलरव से गूँजता रहता था... (बूढ़े की पत्नी इस दुनिया में नहीं थी - वह एक असाध्य बीमारी के चलते कई
राजेन्द्र लहरिया-नाट्यपुरुष 7 उस पूरे घटनाक्रम से गुज़र जाने के बाद, सहमे हुए-से कार के भीतर बैठे बूढ़े के पोते ने देखा था: कार की बग़ल में सड़क पर उसका पिता अभी तक पड़ा था - बिना ...और पढ़ेबेहरकत। बूढ़े के पोते के हाथ में अभी तक कानों से निकाले गये प्लगों की डोरी सहित स्मार्टफ़ोन था। उसने उसे सीट पर रखा और वह कार से उतर कर सड़क पर पड़े अपने पिता के पास आया था। उसने अपने पिता के हाथ को पकड़ कर हिलाया और रुआँसी आवाज़ में कहा, ''पापा!’’ पर उसे कोई जवाब नहीं मिला। उसने
राजेन्द्र लहरिया-नाट्यपुरुष 8 .. उसके बाद एक दिन, एक खबर बूढ़े के हाथ लगी थी... वह ख़बर उसे 'महामहिमावान’ के अभिनंदन के लिए लगी क्यूं में ले आई थी... ...तो बूढ़ा क्यू में लगा हुआ ...और पढ़ेउसने एक बार फिर अभिनंदन-मंच की ओर देखा: अब वह 'महामहिमावान’ के अभिनंदन-मंच से थोड़ी-सी ही दूरी पर था। उसने अपने आगे लगे लोगों को गिना- कुल चार थे!... उसने एक बार फिर माथे पर आ गया पसीना पोंछा था। और फिर वह पल आ पहुँचा, जिसका इंतज़ार करते हुए बूढ़ा इतने समय से क़तार में लगा हुआ था: अब वह 'महामहिमावान’