Mar kha roi nahin book and story is written by Ranjana Jaiswal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mar kha roi nahin is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मार खा रोई नहीं - उपन्यास
Ranjana Jaiswal
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
(यह उपन्यास एक शिक्षिका की डायरी के पन्ने हैं।एक शिक्षिका की डायरी से भी प्याज की तरह गठीले शिक्षा तंत्र की कई परतें खुल सकती हैं और यह पता चल सकता है कि एक स्त्री का मर्दों के क्षेत्र में उतरना सहज नहीं है। )ज़िन्दगी का ये कैसा दौर है !ऐसा लगता है जैसे मैं किसी धुंध में खड़ी हूँ,जहां से कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा।ऐसा लगता है जैसे मैं फिर से उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई हूँ ,जिसके चारों तरफ रास्ते ही रास्ते हैं,पर उनमें से कोई मुझे मेरी मंजिल तक नहीं ले जाएगा।पच्चीस वर्ष पहले मैं
(यह उपन्यास एक शिक्षिका की डायरी के पन्ने हैं।एक शिक्षिका की डायरी से भी प्याज की तरह गठीले शिक्षा तंत्र की कई परतें खुल सकती हैं और यह पता चल सकता है कि एक स्त्री का मर्दों के क्षेत्र ...और पढ़ेउतरना सहज नहीं है। )ज़िन्दगी का ये कैसा दौर है !ऐसा लगता है जैसे मैं किसी धुंध में खड़ी हूँ,जहां से कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा।ऐसा लगता है जैसे मैं फिर से उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई हूँ ,जिसके चारों तरफ रास्ते ही रास्ते हैं,पर उनमें से कोई मुझे मेरी मंजिल तक नहीं ले जाएगा।पच्चीस वर्ष पहले मैं
एक तरफ़ कोविड 19 का कहर था।प्रतिदिन किसी न किसी प्रिय व्यक्ति के मरने की खबर आ रही थी,दूसरी तरफ नौकरी चली जाने का खतरा सिर पर मंडरा रहा था।स्कूल में मार्च से नया सेशन शुरू होने ही वाला ...और पढ़ेकि अचानक लॉकडाउन की ख़बर आई।स्कूल बंद हो गया,फिर ऑनलाइन क्लास का प्रस्ताव पास हुआ।ऑनलाइन क्लास लेना पुरानी विधि से शिक्षितों के लिए उतना आसान नहीं था।हमारे समय में कम्प्यूटर नहीं पढ़ाया जाता था और न ही हम तकनीकी ज्ञान से सम्पन्न थे।ऑनलाइन पढ़ाने के लिए महँगे फोन और लैपटॉप की भी जरूरत थी।उस पर नए -नए ऐप की अपनी उलझनें।नई
आखिर मेरी आशंका सच निकली। आर्थिक मंदी के कारण 50 प्लस वालों को नौकरी से रिटायर करने के सरकारी निर्देश का पालन सरकारी महकमों में अभी शुरू होने वाला था।उसके पहले ही इसे प्राइवेट स्कूलों ने लागू कर दिया ...और पढ़ेभी वहाँ सत्र के बीच में या कभी भी कोई दोष लगाकर अध्यापक को निकाला जा सकता है। स्कूल के 15 वर्षों के कार्यकाल में मुझ पर कोई आरोप नहीं लगा था।अपने विषय हिंदी में मैंने डॉक्टरेट किया था।बच्चे ,अभिभावक और स्कूल मैनेजमेंट भी मेरे उत्तम शिक्षण पद्धति के कायल थे।सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने में मेरी मुख्य भूमिका होती थी।सैकड़ों सुपरहिट
मैं अब स्कूल पर अधिकार नहीं जता सकती थी क्योंकि हाईस्कूल के प्रमाणपत्र में माता- पिता की असावधानी से मेरी जो जन्मतिथि दर्ज थी,और जिसे ठीक कराने की कोशिश भी नहीं की गई ,के अनुसार मैं पचास पार कर ...और पढ़ेथी।कई वर्ष उम्र से ज्यादा दर्ज थे,पर स्कूल तो कागज़ देख रहा था।स्कूल में कई टीचर्स ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी उम्र कम करके लिखाई थी।वे बूढ़े दिखते थे और बीमार रहते थे,पर उन्हें रिटायर नहीं किया जा सकता था।यह कोई सरकारी संस्था भी नहीं थी कि बर्थ-सार्टिफिकेट की वैधता की जांच कराए। मैं रिक्वेस्ट ही कर सकती थी इसलिए मैंने
खाली हाथ आई थी इस दुनिया में ले जा रही स्मृतियाँ को साथ मैं मेरे चेहरे पर आहत अभिमान की रेखाएँ प्रकट हुईं, पर मैंने खुद को दबाए रखा ।जब उन्होंने मन में मेरी एक छवि बना ही ...और पढ़ेतो मैं उसे मिटा तो नहीं सकती थी।वैसे भी मैं उनके अधिनस्त काम करने वाली अध्यापिका थी ।प्राइवेट स्कूलों में अध्यापकों का अस्तित्व मायने ही कितना रखता है ।जब चाहे उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।न तो सरकारी वेतन न सरकारी सुविधाएं ।अधिकतम काम और वेतन कम, ऊपर से घोर अनिश्चितता की तलवार हर समय सिर पर लटकती रहती