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मुस्कुराहट की मौत..... - उपन्यास
Rohiniba Raahi
द्वारा
हिंदी रोमांचक कहानियाँ
मुस्कुराहट..….? कितना खूबसूरत लफ्ज़ है ना...लेकिन मुस्कुराहट में कुछ आहट ऐसी होती है जो कि कुछ लोग नही समझ पाते तो कुछ बिन कहे महेसुस कर लेते है..! मुस्कुराहट को हमने मुस्कुराते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने रोते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने खिलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मुरज़ाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने महकते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने चलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने गिरते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने रूठते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मनाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने लड़खड़ाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को
मुस्कुराहट..….? कितना खूबसूरत लफ्ज़ है ना...लेकिन मुस्कुराहट में कुछ आहट ऐसी होती है जो कि कुछ लोग नही समझ पाते तो कुछ बिन कहे महेसुस कर लेते है..! मुस्कुराहट को हमने मुस्कुराते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने रोते ...और पढ़ेदेखा है, मुस्कुराहट को हमने खिलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मुरज़ाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने महकते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने चलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने गिरते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने रूठते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मनाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने लड़खड़ाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को
माँ अमृतादेवी की मौत की ख़बर देते हुए पिता भूपतदेव ने अपनी बेटी कुँवर को ये गाँव छोड़कर जाने के लिए मनाने लगे। " बेटा कुँवर तुम्हें यहाँ नही आना चाहिए था। वो अब ...और पढ़ेनही छोड़ेगा। मार देगा वो तुझे भी। अभी ही तुम लौट जाओ। वापस शहर चली जाओ बेटा।" - डरे सहमे पिताने अपनी बेटी से कहा। " क्या हुआ ये तो बताओ बापू..! आप इतना डर किससे रहे है? " - कुँवर पूछ रही है। बेटी कुँवर की कई मिन्नतों के बाद पिता ने पूरी बात बताई। " तेरे जाने के बाद जब
आगे देखा हमने की कुँवर अपनी माँ की मौत की ख़बर सुनकर होश खो बैठी और बेहोश हो गई। कुँवर के बापू उसे बचाने पानी की बूंदे छिड़क के उठाने ...और पढ़ेकोशिश करने लगे। पर कुँवर नही उठी और वो चिरनिद्रा में चली गई। कुँवर चिरनिंद्रा में एक अजीब दुनियाँ देखती। कुँवर ने देखा कि वो एक अजीब वेशभूषा में है। फ़िलहाल जो इस दुनियाँ में है वहा से बहोत ही विपरीत है। और अजीब अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगी। हर तरफ़ से खिलखिलाती हसी और मुस्कुराहट सुनाई पड़ी। और अचानक कोई दरिंदा आया और उसे
जैसे कि हमने देखा कुँवर अचानक ही कृत्स्नंसिंह का नाम लेती है। ये सुनकर उसके बापू भूपतदेव चोक जाते है। और आश्चर्यजनक हो कर पूछते है- " कोन है ये कृत्स्नं ? ...और पढ़े " बापू माफ कर दीजिए। मेने आपको बताया नही। मैं जब कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी तब कॉलेज की लाइब्रेरी में मुजे कृत्स्नं मिला था। " अचानक किताबों की अलमारी की दूसरी और से थोड़ा सा धक्का लगा। " कोन है पीछे ? " - कुँवर पूछती है। " सॉरी मिस, गलती से धक्का लग गया। मेरा नाम कृत्स्नं है ।
कुँवर अपना बलिदान दे कर अपने गाँव को उस शैतान विमलराय से बचाना चाहती है। पर उसके पिताजी भूपतदेव इस बात से हिचकिचाते है। " ये क्या कर रही हो बेटा..? " - भूपतदेव ...और पढ़ेसे पूछते है। " कृत्स्नं को फोन लगा रही हूँ। " मोबाइल की रिंग बजती है.... " हेल्लो..." - कृत्स्नं फ़ोन उठाके बोलता है। " हेल्लो... तुम किसी और से सदी कर लो। मुजे तुमसे कोई रिश्ता नही रखना। " - कुँवर इतना बोल कर फ़ोन रख देती है और भूपतदेव से कहने लगी- " बापू चलिए अग्निसमाधि की