Ek Jindagi - Do chahte book and story is written by Dr Vinita Rahurikar in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ek Jindagi - Do chahte is also popular in प्रेरक कथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
एक जिंदगी - दो चाहतें - उपन्यास
Dr Vinita Rahurikar
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
बचपन से ही भारतीय सेना के जवानों के लिए मेरे मन में बहुत आदर था। मेरे परिवार में कोई भी सेना में नहीं है। मैंने सिर्फ सिनेमा में सैनिकों के बहादुरी भरे कामों को देखा और हमेशा ही उन्हें देखना मुझे बहुत अच्छा लगा। आज से पाँच वर्ष पूर्व एक सैनिक अधिकारी से मेरी पहचान हुई। कुछ ही दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वह सेना अधिकारी अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए। हम फोन पर बात करके अपनी दोस्ती को बनाए रखे हुए थे। वे अकसर अपने सेना जीवन के अनुभवों को मेरे साथ बाँटते। उनकी कहानियाँ बहुत रोमांचक होती थीं। मैं हमेशा उनके अनुभव सुनने के लिए उत्सुक रहती। फोन पर उनके अनुभव सुनते हुए मैं हमेशा सेना के जवानों के प्रति नतमस्तक हो जाती उनकी बहादुरी तथा मातृभूमि के लिए उनका भक्ति और प्रेम देखकर। जब मैंने भारतीय सेना के जवानों के काफी सारे बहादुरी पूर्ण कार्यों के बारे में सुना, उनके चुनौती भरे जीवन के बारे में जाना जो कभी-कभी काफी दिलचस्पी भी होता था तभी मुझे भारतीय सेना के जवानों पर एक उपन्यास लिख कर अपने पाठकों तक उनके जीवन के इन अनछुए पहलुओं को पहुँचाने की इच्छा हुई ताकि मैं सेना के जवानों की कर्तव्यनिष्ठा और देश भक्ति के प्रति इस तरह से अपना आदर तथा भावनाएँ अभिव्यक्त कर सकूँ।
बचपन से ही भारतीय सेना के जवानों के लिए मेरे मन में बहुत आदर था। मेरे परिवार में कोई भी सेना में नहीं है। मैंने सिर्फ सिनेमा में सैनिकों के बहादुरी भरे कामों को देखा और हमेशा ही उन्हें ...और पढ़ेमुझे बहुत अच्छा लगा। आज से पाँच वर्ष पूर्व एक सैनिक अधिकारी से मेरी पहचान हुई। कुछ ही दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वह सेना अधिकारी अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए। हम फोन पर बात करके अपनी दोस्ती को बनाए रखे हुए थे। वे अकसर अपने सेना जीवन के अनुभवों को मेरे साथ बाँटते। उनकी कहानियाँ बहुत रोमांचक होती थीं। मैं हमेशा उनके अनुभव सुनने के लिए उत्सुक रहती। फोन पर उनके अनुभव सुनते हुए मैं हमेशा सेना के जवानों के प्रति नतमस्तक हो जाती उनकी बहादुरी तथा मातृभूमि के लिए उनका भक्ति और प्रेम देखकर। जब मैंने भारतीय सेना के जवानों के काफी सारे बहादुरी पूर्ण कार्यों के बारे में सुना, उनके चुनौती भरे जीवन के बारे में जाना जो कभी-कभी काफी दिलचस्पी भी होता था तभी मुझे भारतीय सेना के जवानों पर एक उपन्यास लिख कर अपने पाठकों तक उनके जीवन के इन अनछुए पहलुओं को पहुँचाने की इच्छा हुई ताकि मैं सेना के जवानों की कर्तव्यनिष्ठा और देश भक्ति के प्रति इस तरह से अपना आदर तथा भावनाएँ अभिव्यक्त कर सकूँ।
तनु के चेहरे पर अब थकान लगने लगी थी। परम ने उसे अब बाकी का काम बाद में करने को कहा।
सूप पीकर और नूडल्स खाकर तनु और परम थोड़ी देर बाते करने ऊपर बालकनी में बैठ गये। दो-चार दिन ...और पढ़ेही पूर्णिमा आने वाली होगी। आसमान में चांद चमक रहा था। कतार में खड़े घरों की छतों पर चांदनी छिटकी हुई थी। आसपास किसी घर में रातरानी लगी होगी, हवा के झौकों के साथ-साथ उसकी मंद मधुर सुगंध भी आ जाती थी। तनु ने तय कर लिया अपने बगीचे में वह भी रातरानी का पौधा जरूर लगाएगी। नीचे दो-चार लोग टहल रहे थे। कुछेक परम और तनु के घर के सामने से गुजरते हुए उत्सुकतावश घर की ओर देख लेते थे।
'अरे ये तुम्हारे चेहरे पर लाल-लाल दाने से क्या हो गये हैं? सुबह-सुबह तनु के गाल और ठोडी पर लाल दाने देखकर परम घबरा कर बोला।
'तीन दिन से आपने शेव नहीं किया है तो और क्या होगा। कहा ...और पढ़ेना कल कि शेव बना लो। तनु नकली गुस्से से उसे देखते हुए बोली।
'ओ तोड्डी! कितनी नाजुक है मेरी बीवी। परम ठठाकर हँस पड़ा सही कहा था तुमने 'आई एम ए सिविलिएन।
'चुप रहो। तनु ने उसे झिड़का।
पाँच बरस पहले की वह रात आज भी याद है परम को, बरसात का मौसम था। उस साल आसमान अपनी सारी सीमाएँं तोड़कर बरस रहा था सारी सृष्टि तरबतर थी। रोज बाढ़ की खबरों से टी.वी. न्यूज चैनल भरे ...और पढ़ेथे। जब भी न्यूज लगाओ पानी की विनाशलीला के अलावा कहीं कोई खबर नहीं। परम की उस समय जहाँ पोस्टिंग थी, पहाड़ों की सीमा पर, वहाँ भी यही हाल था। जल जैसे सभी को अपने अगोश में समेट लेने के लिये बेताब था। रात-दिन की झमाझम से परम त्रस्त हो गया था। आस-पास के पहाड़ी इलाकों में रोज कहीं न कहीं पहाड़ धसने से छोटी-मोटी विपत्तियाँ आती ही रहती थी।
सैकड़ों मील दूर अहमदाबाद शहर में। रात के डेढ़ बजे एक लड़का और एक लड़की अपनी पीठ पर सामान से भरे बैग लादकर सड़क पर तेजी से चुपचाप चल रहे थे। ये नेहरू नगर था, अहमदाबाद का एक पॉश ...और पढ़ेयहाँ बड़े-बड़े बंगले बने हुए थे। थोड़ी देर पहले ही लड़का एक बंगले के बाहर पहुँचा, उसने मोबाइल से किसी को मैसेज किया और दो मिनट बाद ही बंगले के पीछे बने एक दरवाजे से एक लड़की बाहर निकली। सामने वाले मुख्य दरवाजे पर दो दरबान खड़े पहरा दे रहे थे। उन्हें पता भी नहीं चला कि कब बंगले के पीछे के दरवाजे से बंगले के मालिक की बेटी फरार हो गयी। जिसने शायद शाम को ही उस दरवाजे का ताला चुपचाप खोलकर रख दिया था। वे बेचारे बड़ी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे उन्हें क्या पता था सुबह सबेरे ही उनकी शामत आने वाली है। जैसे ही वे दोनों बंगले से दूर आ गये लड़की ने एक गहरी साँस ली।