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बड़ी दीदी - उपन्यास
Sarat Chandra Chattopadhyay
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
इस धरती पर एक विशिष्ट प्रकार के लोग भी वसते है। यह फूस की आग की तरह होते हैं। वह झट से जल उठते हैं और फिर चटपट बुझ जाते हैं। व्यक्तियों के पीठे हर समय एक ऐसा व्यक्ति रहना चाहिए जो उनकी आवश्यकता के अनुसार उनके लिए फूस जूटा सके।
जब गृहस्थ की कन्याएं मिट्टी का दीपक जलाते समय उसमें तेल और बाती डालती हैं, दीपक के साथ सलाई भी रख देती हैं। जब दीपक की लौ मद्धिम होने लगती है, तब उस सलाई की बहुत आवश्यकता होती है। उससे बात्ती उकसानी पड़ती है। यदि वह छोटी-सी सलाई न हो तो तेल और बात्ती के रहते हुए भी दीपक का जलते रहना असंभव हो जाता है।
इस धरती पर एक विशिष्ट प्रकार के लोग भी वसते है। यह फूस की आग की तरह होते हैं। वह झट से जल उठते हैं और फिर चटपट बुझ जाते हैं। व्यक्तियों के पीठे हर समय एक ऐसा व्यक्ति ...और पढ़ेचाहिए जो उनकी आवश्यकता के अनुसार उनके लिए फूस जूटा सके।
जब गृहस्थ की कन्याएं मिट्टी का दीपक जलाते समय उसमें तेल और बाती डालती हैं, दीपक के साथ सलाई भी रख देती हैं। जब दीपक की लौ मद्धिम होने लगती है, तब उस सलाई की बहुत आवश्यकता होती है। उससे बात्ती उकसानी पड़ती है। यदि वह छोटी-सी सलाई न हो तो तेल और बात्ती के रहते हुए भी दीपक का जलते रहना असंभव हो जाता है।
कलकत्ता की भीड़ और कोलाहल भरी सड़कों पर पहुंचकर सुरेन्द्र नाथ धबरा गया। वहां न तो कोई डांटने-फटकारने वाला था और न कोई रात-दिन शासन करने वाला। मुंह सुख जाता तो कोई न देखता था और मुंह भारी हो ...और पढ़ेतो कोई ध्यान न देता। यहां अपने आप को स्वयं ही देखना पड़ता है। यहां भिक्षा भी मिल जाती है और करूणा के लिए स्थान भी है। आश्रय भी मिल जाता है लेकिन प्रयत्न की आवश्यकता होती है। यहां अपनी इच्छा से तुम्हारे बीच कोई नहीं आएगा।
यहां आने पर उसे पहली शिक्षा यहा मिली कि खाने की चेष्टा स्वयं करनी पड़ती है। आश्रय के लिए स्वयं ही स्थान खोजना पड़ता है और नींद तथा भूख में कुछ भेद है।
लगभग चार वर्ष हुए, ब्रजराज बाबु की पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। बुंढ़ापे के पत्नी वियोग का दुःख बूढ़े ही समझ सकते है, लेकिन इस बात को जाने दीजिए। उनकी लाडली बेटी माधवी इस सोलह वर्ष की उम्र ...और पढ़ेअपना पति गंवा बैठी है। उससे अपना पति गंवा बैठी है। उससे ब्रजराज बाबू के बदन का आधा लहू सूख गया है। उन्होंने बड़े शौक और धूमधाम से अपनी कन्या का विवाह किया था। वह स्वयं धन सम्पन्न थे, इसलिए उन्होंने धन की ओर बिल्कुल ध्यान नही दिया। लड़के के पास धन-सम्पत्ति हे या नहीं, इसकी खोज नहीं की। केवल यह देखा कि लड़का लिख-पढ़ रहा है, सुन्दर है, सुशील है, सीधा-साधा है। बस यही देखकर उन्होंने माधवी का विवाह कर दिया था।
मनोरमा माधवी की सहेली है। बहुत दिनों से उसने मनोरमा को कोई पत्र नहीं लिखा था। अपने पत्र का उत्तर न पाकर मनोरमा रूठ गई थी। आज दोपहर को कुछ समय निकालकर माधवी उसे पत्र लिखने बैठी थी।
तभी प्रमिला ...और पढ़ेआकर पुकारा, ‘बड़ी दीदी।’
माधवी ने सिर उठाकर पूछा, ‘क्या है री?’
‘मास्टर साहब का चश्मा कहीं खो गया है, एक चश्मा दो।’
माधवी हंस पड़ी, बोली, ‘जाकर अपने मास्टर साहब को कह दे कि क्या मैंने चश्मों की कोई दुकान खोल रखी है?’
प्रमिला दौड़कर जडाने लगी तो माधवी ने उसे पुकारा, ‘कहा जा रही है?’
‘उनसे कहने।’
‘इसके बजाय गुमाश्ता जी को बुला ला।’
सुरेन्द्र को अपने घर गए हुए छः महिने बीत चुके हैं। इस बीच माधवी ने केवल एक ही बार मनोरमा को पत्र लिखा था। उसके बाद नहीं लिखा।
दर्गा पूजा के समय मनोरमा अपने मैके आई और माधवी के पीछे ...और पढ़ेगई, ‘तू अपना बन्दर दिखा।’
माधवी ने हंसकर कहा, ‘भला मेरे पास बन्दर कहां है?’
मनोरमा उसकी ठोड़ी पर हाथ रखकर कोमल कंठ से बड़े सुर-ताल से गाने लगी,
‘सिख अपना बन्दर दिखला दे, मेरा मन ललचाता है।
तेरे इन सुन्दर चरणों में कैसी शोभा पाता है?’
‘कौन-सा बन्दर?’
‘वही जो तूने पाला था।’
‘कब?’