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जीवन मनुष्य की बहुमूल्य निधि है, पता नहीं कितने भिन्न भिन्न प्रकारों के जन्मों के बाद मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। अपने आपको भाग्यशाली, मानकर ही जीवन को सही माप-दंडो के अनुरुप चलाने में साहित्य की अपनी विशिष्ठ भूमिका होती है। पेशे से वकील होते हुए भी बचपन से साहित्य के प्रति सदा अनुराग रहा है। कुछ सालों से लेखन के प्रति झुकाव बढ़ गया है। कोई जरुरी नहीं बड़े-लेखकों की श्रेणी में आऊ, पर अच्छा लिखूं, सुधार को सदा मान्यता दूँ। कोशिश भर ही समझे, मेरे लेखन को, और मेरा मार्ग-दर्शन करे। शुभकामनाओं के साथ,
शीर्षक : सिद्धांत ता: 10/08/2022 न रोको जिंदगी को उसे आगे बढ़ने दो मौसम है बहारों का उसे भी मजे लेने दो भूल जाओ कल लोग क्या क्या करते थे ? माना पहले बिन सोचे पैर आगे नहीं बढ़ते थे बंदिशों में ही पर्व मनाना कभी एक उसूल था आदमी खुद में कम गेरों में ज्यादा मशगूल था बदली हुई दुनिया में हर व्यवहार बदल गया है अपनों की बात छोड़ो पड़ोसी भी दूर हो गया है मैं न बदलूंगा ये फ़लसफ़ा अब फिजूल लगता है पैबंद लगे कपड़े में हर कोई बुद्धिमान दिखता है 'कमल' दुनिया बदल दूँ कहना गलत लगता है खुद को बदल लें यही सिद्धांत अब सही लगता है ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक: तुम आओगे.. तुम आओगे ये ख्याल था मेरा दूर तक देखा साया तक न था तुम्हारा तुम आओगे.... बहक गया न संभल पाया हिया मेरा अब तक तुम्हें न भूल पाया अफसोस मेरा तुम आओगे... न सोचा कभी साथ छोड़ दोगे यों मेरा इत्तफाक समझ इंतजार कर रहा मायूस दिल मेरा तुम आओगे.... कोई गिला हो तो बताना फर्ज है तुम्हारा पर ये न कहना टूट गया रिश्ता हमारा-तुम्हारा तुम आओगे.... लौट आओ जिंदगी फिर न मिलेगी दुबारा कसम ले लो बिन तुम दिल हुआ बेसहारा मेरा तुम आओगे.... ✍️ कमल भंसाली
मोहब्बत सिर्फ शुकून नहीं दरियाई आग है अगर सिर्फ जिस्म सी की तो बदगुमां दाग है ✍️कमल भंसाली -Kamal Bhansali
हकीकत से दूर थे हम सच में बहुत मजबूर थे हम किसे कहते ? उनके के टूटे ख्बाब थे हम कभी थे उनके अब बेगानों के साथ है हम मुद्दतो से से वो उदास और तन्हा रहते है कहने को आज भी उन्हें "माता-पिता" कहते है जो हमारे एक आँसूं देख कर पिघल जाते थे न सोचा कभी हमारे दिये गम में कैसे रह जाते थे ? कल की जिनके पास जीने की वजह थे हम हकीकत में आज उनकी मौत की चाह है हम क्या कहें कितने मजबूर हो गये है, अब हम चले आये उनसे दूर पर बिन अफसोस रह रहें हम सजा तो मिलनी है कीमत तो गलती की चुकानी है पछतावे की राते लम्बी उनकी यादें तो सदाआनी है ✍️ कमल भंसाली
मिले.....कमल भंसाली मन को मीत मिले, साँसों को संगीत मिले प्यार को शब्द मिले, होठों को गीत मिले मिलन को बाहें मिले, विरह को चाहत मिले खुशियों को फूल मिले, दर्द को राहत मिले दोस्त को दोस्ती मिले, दुश्मन को क्षमा मिले परिश्रम को मंजिल मिले, आलस को त्याग मिले सेवा को मेवा मिले, अत्यचारी को पश्चाताप मिले अहिंसा को साहस मिले, हिंसा को अभिशाप मिले आँचल को ममत्व मिले, स्नेह को पुष्पहार मिले कली को संस्कार मिले, फूलों को त्योहार मिले आदर्शो को साथ मिले, अनुशासन को उपहार मिले शब्दों को संदेश मिले, नव-सृजन को सिंगार मिले नारी को सम्मान मिले, नर को ज्ञान मिले देश को भक्ति मिले, सँसार को विज्ञान मिले व्यापार को लाभ मिले, बचत को धन मिले कुछ को कुछ न मिले, पर सब को ईश्वर मिले ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक: अहँकार अहँकार जिंदगी का वो हिस्सा है जिसमें बेरुखी का हर किस्सा है जीवन तो एक सीधा साधा सपना है जिसमें गैर भी कहीं न कहीं अपना है दंभ कहो या गरुर इंसान खुद को अकड़ाता है खुद की लगाई बेड़ियों में खुद को जकड़ाता है अहँकार विकार मन का, तन पर करता अधिकार क्रोध का लगता रोग, न कोई दवा न कोई उपचार व्यवहार में घुल हर अच्छाई को करता जहरीला झूठी शान के पहनावे में अक्सर दिखता ये छबीला "कमल" सही है सादा जीवन और उच्च विचार जिंदगी की चाहत रहे सब से स्वर्णिम प्रेम- व्यवहार न क्रोध आये, न आये अँहकार, पास मुस्कान रहे संयम के गुलशन में खिले फूलों का सदा ध्यान रहे ✍️ कमल भंसाली
किस मोड़ पर रुकते हर मोड़ पर तुम नजर आते जिस ओर नजर घुमाते दरवाजे पर तुम दिख जाते प्यार की ऐसी रस्में कब तक रहेंगे हम यों निभाते बेवफाई के दौर में भी देखों ख्याल तुम्हारे ही आते ✍️ कमल भंसाली -Kamal Bhansali
शीर्षक : पिता दिवस पर ढूँढेगी कल जब मुझे नजर तुम्हारी भीगी पलकों में कुछ यादें होगी मेरी वजूद न होगा फोटो में चेहरा ही मुस्करायेगा समय के साथ वो भी शायद धुँधला जायेगा याद करोगे तो बहुत सी ऐसी बाते आएगी क्या था मैं तुम्हारी जिंदगी में चाहत बढ़ जायेगी कल की दूरियों को जायज तुम न कह पाओगे जब तुम भी अपनें ही खून पर खफा हो जाओगे दस्तूर वक्त का है दोष तुम्हें भी नहीं दे पाऊँगा थे तुम मेरा ही अंश, शायद ही अहसास दे पाऊँगा जो चला गया वापस नहीं आता, सोच उदास रहोगे फर्ज की दीवार पर टँगा फोटो देख नजर झुकाओगे ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक: पछतावा कहाँ खत्म होती है जिंदगी की गुत्थियाँ मुश्किल है सुलझनी ये कर्मों की रस्सियां बंधन बहुतेरे इंसानी जीवन को सदा घेरे मोह की मदिरा में बहते रहते मन-रँग सारे रसीली चाहते अंतहीन दूर तक सफर करती वजूद की तलाश में कलह की डगर पर चलती समय की पतवार न होती अगर इतनी भारी इंसानी चेहरों में न रह जाती जरा भी खुद्दारी सच का रंग सफेद, झूठ तो रंगों का खिलाड़ी नये लुत्फ की हसरते जो न समझे वो घोर अनाड़ी सोच नहीं सही तो कुछ भी तो होता सही नहीं वक्त तो अब भी वही हम ही तो कहीं सही नहीं बदल जाना ही श्रेयस्कर, न बदले तो हम नहीं आभास हर दुर्घटना, आगे पछतावे की कमी नहीं ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक: आ गले लग जा गहराई से किसी को इतना गले न लगाओ कि दिल की कमीज पर सलवटे उभर आये रस्मों के जहाँ में पता नहीं क्या न निभ पाये ? बिन कारण दर्द की रेखाएँ गहरी न हो जाये माना हर रिश्ते में दृश्यत प्रेम थोड़ा जरुरी होता है क्योंकि अहसास में दिखावट का नशा जो होता है सोचे तो स्वार्थ बिन सँसार का पहिया रुक जाता है लगे एक दाग में सौ दागों का निमंत्रण जो होता है हर रिश्तें में समझ अंत तक साथ नही निभाती है साथ चलने से दिल में जगह तय नहीं हो जाती है चिंतन के दरबार में हर रिश्तें की जगह तय होती है दस्तूर निभाने में गले लगने की रस्म ज्यादा होती है इस लिये यह तय करके ही आगे बढ़ते रहना है अपनों की भीड़ में ही आदमी ज्यादा अकेला है प्रेम में विश्वास की जड़ न हो तो सिर्फ निभाना है इस जग में तय नहीं कौन अपना कौन बेगाना है ? रिश्तें वही अच्छे होते साथ चलकर चुप रहते है गले न लगे पर गिरने पर हाथ बढ़ाकर संभालते है बिन किसी अहसास के फूलों की तरह महकते है समय पर ये विश्वास देते हम उनके दिल मे रहते है ✍️कमल भंसाली
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