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आसान लफ़्ज़ों में ज़मीन से जुड़ी कहानियां.जो अक्सर 1990 के बाद पैदा होने वाली पीढ़ी के लिए खास है.हर कहानी सच्ची घटना पर आधारित है.कोई भी कहानी काल्पनिक नही.जो राब्ता करना चाहें वो 8909331344 पर कर सकते है
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जुनैद चौधरी
तुम्हे जाना है न? ....!! जाओ! तुम्हे इस से नही मतलब गलतफहमी थी या उल्फत ये मेरा दर्द ए सिर है दर्द ए दिल है जो भी है !___ जाओ तुम्हारा काम था,तुमने मोहब्बत की बहुत अच्छे ये मेरा काम है में याद रखूं .....या भुला डालू अजब बातें हैं दुनिया की अजब रस्में है उल्फत की मोहब्बत कर तो लेते हैं निभाना भूल जाते हैं किसी दिन छोड़ जायँगे बताना भूल जाते हैं मुझे अब कुछ नही सुनना मुझे अब कुछ न बतलाओ मुझे तुम मशवरा मत ....दो के मैने कैसे जीना है अगर तुम भूलने का गुण मुझे बतला नही सकते तो कुछ भी न बतलाओ ..... चले जाओ ,,,,चले जाओ .......चले जाओ
दश्त में दौड़ती आहों की तरह होता है इश्क़ आगाज़ में खुशबू की तरह होता है जिस पे चलता है उसे मार के रख देता है हुस्न का वार भी जादू की तरह होता है दिन के औ क़ात में नेमत है तेरा ध्यान मुझे रात पड़ती है तो जुगनू की तरह होता है इन निगाहों में कभी डूब के देखा जाए जिन का हर तीर तराज़ू की तरह होता है अश्क़ पीते हुए याद आया तेरा लम्स मुझे उसका भी ज़ायक़ा आंसू की तरह होता है।
दिसंबर चल पड़ा घर से सुना है पहुँचने को है, मगर इस बार कुछ यूं है के मैं मिलना नही चाहता सितमगर से, मेरा मतलब दिसंबर से, कभी अज़ूरदा करता था जाता दिसंबर भी , मगर अब के बरस हमदम बहुत ही ख़ौफ़ आता है, मुझे आते दिसंबर से दिसंबर जो कभी मुझको, बहुत मेहबूब लगता था वही शफ़ाक़ लगता है, बहुत बेबाक़ लगता है,हां इस संग दिल महीने से मुझे अबके नही मिलना,क़सम उसकी नही मिलना, मगर सुनता हूँ ये भी में के इस ज़ालिम महीने को कोई भी रोक न पाया न आने से,न जाने से सदायें ये नही सुनता,वफ़ाएँ ये नही करता, ये करता है फ़क़्त इतना सज़ाए सौंप जाता है, शफ़ाक़-सूरज डूबने के बाद कि लाल रोशनी अज़ूरदा-पीड़ित,नाराज़,ग़मगीन,सताया हुआ
मेरी धारावाहिक रचना उधड़े ज़ख्म पूरी हो चुकी है। जैसा कि आप लोगो ने हर पार्ट पर हौसला अफ़ज़ाई की है। एक बार फिर एक साथ पूरा पार्ट पढें और इश्क़ की गहराइयों का मज़ा लें। और जो अब तक किसी वजह से नही पढ़ पाएं वो भी इस इश्क़ आमेज़ कहानी को पढ़े जो शायरियों और जज़्बातों से सजी हुई है। हाय, मातृभारती पर इस धारावाहिक 'उधड़े ज़ख़्म' पढ़ें https://www.matrubharti.com/novels/10228/udhde-zakhm-by-junaid-chaudhary
कब लफ़्ज़ों से जुड़ सकता है जो टूट गया सो टूट गया वो नाज़ुक से कांच का दिल जो टूट गया सो टूट गया कब बारिश को बूंदे छन कर कोई महल बनाया जाता है ये ख्वाब है बादल आंखों का जो टूट गया सो टूट गया एक आह उठी जो रातों में किस्मत के तारे तोड़ गयी हाथो में जाल लकीरों का जो टूट गया सो टूट गया क्यों गिन गिन कर दिन जीते हो अनमोल है जीवन राह तेरी ये जहां घर है एक सांसो का जो टूट गया सो टूट गया ये रात अंधेरी क्या चमकेगी चाँद से अब पर्दा कर के नैना वो किस्मत का तारा जो टूट गया सो टूट गया।
चेहरे पढ़ता. आंखे लिखता रहता हूँ। मे भी केसी बातें लिखता रहता हूँ। सारे जिस्म दरख्तों जैसे लगते हैं। और बाहों को शाखें लिखता रहता हूँ। तेरे हिज्र में और मुझे क्या करना है? तेरे नाम किताबें लिखता रहता हूँ। तेरी ज़ुल्फ़ के साये ध्यान में रहते हैं। में सुबहो को शामें लिखता रहता हूँ। अपने प्यार के फूल महकती राहों में। लोगो को दीवारें लिखता रहता हूं। तुझ से मिल कर सारे दुख दोहराऊंगा। हिज्र की सारी बातें लिखता रहता हूँ। सूखे फूल.किताबें. ज़ख्म जुदाई के। तेरी सब सौगातें लिखता रहता हूँ। उसकी भीगी पलकें हस्ती रहती हैं। "मोहसिन" जब तक गज़ले लिखता रहता हूँ।
उधड़े ज़ख्म कहानी का आज दूसरा पार्ट प्रकाशित हो रहा है, आप लोगो ने जिस तरह पिछले पार्ट को सराहा और पसन्द करा था।।उम्मीद है ये पार्ट भी आपको पसंद आएगा, अभी तो सिर्फ आगाज़ है, ये उधड़े ज़ख्म कहानी आपके दिमाग में आख़िर में एक हलचल पैदा कर देगी, और वो हलचल क्या होगी जानने के लिए जुड़े रहे, और हर हफ्ते एक पार्ट पढ़ते रहें, शुक्रिया,
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