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गुमनाम चेहरा गुमनाम नाम हूँ मैं...
ये लड़की का अच्छी लड़की होना क्या होता है ? कौन जानता है बातें ऐसी ! ऐसा छायांकन कहाँ होता है ! 'अच्छी लड़की' ग़र कोई चित्रण है तो फिर चित्रकार कौन है ! मैं भी एक चित्रकार हूँ मुझसे क्यो न बन सका ऐसा कोई चित्र ? मुझसे लिखा क्यो नही जाता ये भेद लड़की और अच्छी लड़की का ? इन सवालों के जवाब दे कौन सकता है ? मुझे जरूरत है इस ज्ञानी समाज की जो ये बतलाये की , ये लड़की का अच्छी लड़की होना क्या होता है ! ©yhnaam
लड़कियों जरा ये बताओ की ठप्पा कौन सा लगा है बदन पे तुम्हारे टर्म्स एंड कंडीशन का , जो इस तरह यूँ तपाक से जमाना तुम्हारी पढ़ाई लिखाई , सपने, शादी और जिंदगी का फैसला करता है... ©yhnaam
कभी दोपहर कभी शाम जो घर तुम्हारे आती है और औरत वो जो जोरों से चिल्लाती है , वो शब्द ' रोटी ' सुनाई आपको देता होगा साहब असल में तो वो देश का राष्ट्रगान गाती है... ©yhnaam
मैं भला इल्जाम मेरी मौत का रखूँ भी तो किस पे यहाँ तो सभी ने मुझ को थोड़ा थोड़ा मारा है... ©yhnaam
मोहब्बत लड़की है , मेरी ही दिल की गली में रहती है , भाई बड़ा उसका दिमाग थोड़ा खड़ूस है , और शायद माँ इंसानियत नही है उसकी , इसीलिए बाप जमाने से थोड़ा डरती है... ©yhnaam
ग़र खुशियों पे हकूमत हमारी होती तो सड़क वालो से लेकर थोड़ी सी उधार खुशियां पूरे कपड़े , अच्छा खाना और अच्छी छत वाले कुछ भूखे , नंगे , बेचारो के नाम करते.... ©yhnaam
कद कपड़ो का नापकर चरित्र बताने वाला ये जमाना खुद को बड़ा दर्जी समझता है , कोई इनको बतलाये की इनकी एड़ियो में जो दिमाग है उनके नाप के मुझ मोची से जूते सिलवाये कही दिमाग घिस न जाये... ©yhnaam
हाँ मैं आदमी अंदर से भिखारी हूँ मेरे कटोरे में थोड़ी सी मोहब्बत डालते जाइयेगा क्योंकि सलामत हाथों से काम करने पर भी दुनिया से तनख्वाह में मोहब्बत नही मिलती.... ©yhnaam
उसकी वफ़ा के किस्से सुनने मे तो बहोत आये है मगर अब तलक वो मोहब्बत के काबिल है मेरा एतबार करो , हाँ अब तो मैं मर चुका हूँ उसके अंदर पूरा 'यहनाम' जाओ जाकर जलाकर मुझे कोई मेरा अन्तिमसंस्कार करो... ©yhnaam
(क़िताब) वो हाल अपने दिल का सुनाती है मैं कुछ हाल अपना कहता हूँ वो मुझे मेरी तरह ही समझती है और मैं आवारा हर नयी पे मरता हूँ वो कभी रूठती है मुझसे मैं उसे पढ़कर मनाता हूँ वो कहानियों मैं बांधती है जुल्फों जैसे और मैं गुलाम उससे बंध भी जाता हूँ अल्फाजो का गहना बड़ा महंगा पहनती है वो मैं आशिक भी उसे अपने हाथ से सजाता हूँ दुल्हन बनाता इसे ग़र लड़की होती छोड़ो लड़कियों से तो मैं धोखा खाता हूँ वो मुझे मेरी तरह समझती है और मैं आवारा हर नही पे मरता हूँ एक यही है पास मेरे अपनी कोई 'क़िताब' क्या कहूँ इसे मैं कितनी मोहब्बत करता हूँ! ©Yhnaam
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