लाल गुलाब के चार फूल RK Agrawal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लाल गुलाब के चार फूल

लाल गुलाब के चार फूल

RK Agrawal

पात्र

रविशा ~ वेडिंग प्लानर लड़की

मनीष ~ छोटी सी फ्लावर शॉप का मालिक

'हेलो, कल की तरह गेंदे के फूलों के 40 पैक्स और सफ़ेद, लाल गुलाब के फूलों के 10 पैक्स दे देना प्लीज' रविशा ने मनीष की तरफ बिना देखे ही फ़ोन पर कुछ सर्च करते हुए आर्डर दिया.

'ओके, मैडम' मनीष तन्मयता से फूलों की पैकिंग करने लगा, हालाँकि इस बीच रोज की तरह वह छिपकर रविशा की एक भरपूर झलक देख लेने में भी कामयाब रहा था. जिसके बारे में रविशा को कोई अंदाजा नही था. वह अक्सर, कभी कभी तो हर रोज उसी फ्लावर शॉप में आकर होलसेल फ्लावर्स की शॉपिंग किया करती थी. रविशा एक सेल्फ एम्प्लोयेड वेडिंग प्लानर थी और मनीष छोटी सी फ्लावर शॉप का मालिक. रविशा को पता नही था पर मनीष पहली ही मुलाक़ात में उसे अपना दिल दे बैठा था. जब रविशा तीन साल पहले, लो रेट फ्लावर्स की शॉप खोजती हुई उस गली में पहुंची और वहां उसे मनीष की दुकान दिखाई दी. दोनों का ही अपने अपने करियर में पहला कदम था और अपना बिज़नस स्टार्ट करने के लिए दोनों को एक दूसरे की व्यावसायिक रूप में जरुरत थी. मनीष थोड़ा बहुत मुनाफा बचाते हुए, रविशा को कम दामों में फूल उपलब्ध करवाता और रविशा अपने इवेंट प्लानिंग के बिज़नस के चलते,लगभग हर रोज मनीष को बड़ा आर्डर दिया करती थी.

हाँ, शादियों का सीजन ख़त्म होते ही रविशा का मनीष की दूकान में आना और उसे आर्डर देना कम हो जाता था, पर पिछले तीन सालों में कभी भी रविशा ने उसे फूलों का आर्डर देना पूरी तरह से बंद नही किया था. मनीष, जो रविशा को पहली ही मुलाक़ात से उसकी सादगी और खूबसूरत व्यक्तित्व के लिए पसंद करने लगा था, पहले सोचता था की यह उसका आकर्षण है पर आकर्षण जब दिन प्रतिदिन बढ़ता गया तब वह समझ गया की रविशा को वह प्यार करने लगा है. पर अगले ही पल ये सोचकर मायूस हो जाता कि वह उसकी तरह छोटे से फूलों के व्यापारी से क्यों प्यार करेगी. यही सोचकर अपने एकतरफा प्यार को दबाये, होठों पर फीकी हंसी लिए उस से मिलता था.

उस से हलकी फुलकी बातचीत ही उसके दिन को खुशगवार बना देती थी. रविशा मॉडर्न, खुले विचारों वाली, खुशमिजाज लड़की थी, सबसे हंसकर बातें करती थी. मनीष उसकी खुशमिजाजी को समझता था, तो कभी भी उसके हंसकर बात किये जाने पर ये नही सोचा की उसके दिल में मनीष के लिए कोई फीलिंग्स हैं.

दिन गुजरते गए, दोनों ही अपने अपने कामों में व्यस्त रहते. एक दिन रविशा सुबह सुबह मनीष की दुकान पर फूलों का आर्डर देने पहुंची. मनीष खुद उसे देखकर फूल सा खिल गया. और उस दिन, रविशा रोज से ज्यादा सुन्दर दिखाई दे रही थी. लाल रंग के सलवार कमीज, उस पर खुले लंबे बाल, कानो में मोतियों के खूबसूरत झुमके और चेहरे पर 100 वाट की मुस्कराहट उसकी ख़ुशी को पूरी तरह उजागर कर रहे थे. वैसे तो वह हमेशा खुश रहती थी पर उस दिन उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी. वह अपनी गाड़ी सड़क किनारे पार्क कर मनीष की दुकान की ओर बढ़ने लगी. मनीष भी अपनी भावनाओं को दबाकर उसके स्वागत के लिए खुद को तैयार करने लगा. उसने ऐसे दिखाया जैसे अभी तक रविशा को आते हुए न देखा हो.

'अरे आइये आइये, मैडम' मनीष ने मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा.

'कैसे हैं आप, मनीष जी' रविशा अपने चिर परिचित अंदाज में बोली.

'मैं ठीक हूँ मैडम, बस आपका साथ है. आप जिस दिन सबेरे सबेरे मेरी दुकान पर कदम रख देती हैं, पूरा दिन बड़ा ही अच्छा जाता है, बढ़िया बिक्री होती है' मनीष अपनी धुन में कहता चला गया.

मनीषा के चेहरे की मुस्कान बढ़ती चली गयी.

'अरे, ये तो ख़ुशी की बात है कि आपकी दुकान अच्छी चल रही है, ये सब आपकी मेहनत का नतीजा है' रविशा ने सहज होते हुए कहा.

'और बताइये, क्या सेवा करूँ' मनीष ने बातचीत का दौर बढाते हुए कहा.

'बस वही, मेरे एक इवेंट के लिए 20 पैक्स मेरीगोल्ड, 10 पैक्स जास्मिन और 5 पैक्स गुलाब के फूल दे दीजिये' रविशा ने पेमेंट के लिए पर्स खोलते हुए कहा.

'और आज एक स्पेशल आर्डर भी है. सबसे बढ़िया क्वालिटी के 4 लाल गुलाब के फूल अलग से पैक कर दीजियेगा' रविशा ने बड़े इत्मिनान से कहा.

'कुछ खास है क्या मैडम, आप अलग से इस तरह गुलाब के फूल तो कभी आर्डर नही करतीं' मनीष थोड़ा मायूस होकर बोला. रविशा का लाल सलवार कमीज़ पहनना, उसके चेहरे पर खिलती मुस्कराहट और चमक और इस तरह अलग से गुलाब के फूल खरीदना, बेशक ही ये सब किसी 'खास' से मिलने की तैयारी है. वह खुद से मन ही मन कहे जा रहा था. हाँ तो, तुझ जैसे सड़कछाप से तो दिल नही लगाएगी न वो. कहाँ तू और कहाँ वो. वो इतनी खूबसूरत, उसका खुद का इवेंट मैनेजमेंट का इतना अच्छा बिज़नस है और तू, रोज सबेरे से शाम तक सड़क किनारे इस छोटी सी दुकान पर फूल बेचते रोज की कमाई पर ज़िंदा है.

'टाइम लगेगा क्या' रविशा की आवाज़ से मनीष की तन्द्रा टूटी.

'नहीं मैडम, बस 5 मिनट्स' मनीष ने सबसे अच्छी वैरायटी के लाल गुलाब लेकर, उन्हें करीने से पैक करके रविशा के हाथ पर थमा दिया. रविशा आंधी की तरह आई और तूफ़ान की तरह गयी.. जाते हुए भी मनीष ने देखा की उन चार लाल गुलाब के फूलों को बड़े ही सम्हाल कर अलग से रखा उसने. मनीष के मन में उसका प्यार पा लेने की रही सही आस भी टूट गयी.

पूरा दिन वह विचलित था. मन कहीं नहीं लग रहा था. आज रविशा का फूल लेकर जाना, उसका इतना खुश रहना, उन फूलों को सम्हाल कर रखना, ये सब साफ़ इस बात की ओर इशारा कर रहा था की उसकी ज़िन्दगी में कोई 'खास' है. इसका मतलब इस जन्म में तो मनीष, रविशा के साथ ज़िन्दगी बिताने के सपने नही देख सकता. अब वो सारी बातें भी बहुत पीछे छूट गयीं जिनके चलते वह खुद से कहता था कि बहुत मेहनत करूँगा, खूब पैसे कमाऊंगा, बड़ा बन जाऊंगा और फिर एक दिन, उस से अपने दिल की बात कह दूंगा. शाम होने को आई थी. मनीष का मन हुआ की दुकान बंद करके चला जाये, पर लगातार आ रहे ऑर्डर्स को देखते हुए खुद को समझाया. उसे अपनी कही वही बात याद आ गयी, 'मैडम, जिस दिन आप सुबह सुबह मेरी दुकान पर कदम रख देती हैं, बरकत खुदबखुद आ जाती है, मेरा दिन अच्छा जाता है, खूब बिक्री होती है, आप मेरे लिए लकी हैं मैडम' और रविशा बस मुस्कुरा कर रह गयी थी.

अचानक, मनीष ने देखा की उसकी दुकान के सामने एक हैंडसम, स्मार्ट, नीली जीन्स, सफ़ेद शार्ट शर्ट और काली जैकेट पहने हुए लड़के ने बाइक रोकी. उसके पीछे बला की खूबसूरत लड़की, स्किन टाइट जीन्स और छोटी टॉप पहन कर बैठी हुई थी. लड़की अदा से बाइक से उतरी और कूल्हे मटकाती हुई दुकान की तरफ आने लगी. लड़का भी आँखों में लगा चश्मा निकालते हुए उस ओर बढ़ा.

कुल मिलाकर, मॉडर्न बॉलीवुड मूवी का टशन भरा सीन लग रहा था. पर मनीष के लिए कोई नयी बात नही थी. ऐसे 10 - 12 सीन रोज देखना उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा था. फूलों की दुकान का मालिक जो ठहरा. दुनिया में फूलो की दुकान का अस्तित्व दो लोगों से ही तो टिका हुआ है, वेडिंग प्लानर्स और प्रेमी जोड़े. मनीष यही सब सोच रहा था की वो छोटे टॉप वाली लड़की उसके सामने आकर खड़ी हो गयी. उसके पीछे, बड़े स्टाइल से खड़े होते हुए उस 'हीरो' ने पूछा.

'ये गुलाब के फूल देखना ज़रा, ऐसे ही और मिल जायेंगे क्या?' उसने जैसे ही गुलाब के फूल मनीष के सामने रखे, मनीष के शरीर का सारा खून बर्फ हो गया. ये तो वही फूल हैं जो सुबह उसने रविशा को बेचे थे. हाँ, ये हो सकता है कि वैसे ही फूल शहर की किसी दूसरी दुकान में भी उपलब्ध हो सकते हैं और संभवतः ये लड़का वही से फूल लाया हो पर जिस तरह एक माँ से अपने बच्चे को पहचानने में कोई गलती नहीं होती, उसी तरह मनीष अपनी दुकान से बेचे हुए फूल एक झटके में पहचान सकता था. दरअसल, उसकी दुकान से हाई क्वालिटी के लाल गुलाब बेचने से पहले वह उनकी डंडियों के निचले हिस्से पर कैंची से काटकर एक तिकोना बना देता था. इसे उसकी आदत कहेंगे या खुद के बेचे फूलों की पहचान बनाये रखने का तरीका, ये वो कभी नही भूलता था. आज सुबह भी जब उसने रविशा को अलग से वो चार लाल गुलाब के फूल दिए थे, तो उनकी डंडियों के नीचे तरफ तिकोने बनाये थे. ये वही फूल थे, उसे पक्का यकीन था.

'कम ऑन, डार्लिंग, और कितनी देर लगेगी ऐसे आठ और फूल ढूंढने में, मुझे टोटल 12 चाहिए. मेरे कल के फैशन शो की 12 मॉडल्स के लिए. तुम प्लीज उसी वेडिंग प्लानर से और फूल मांगो न जिसने तुम्हे ये ऊँचें दामों में दिए हैं', मेरे लिए इतना भी खर्च नही कर सकते?, हीरो के साथ वाली छोटे टॉप वाली लड़की इठलाती हुई बोली.

'व... व.. वो..वेडिंग प्लानर शहर से बाहर चली गयी.' लड़का थोड़ा घबराया हुआ बोला. 'तुम परेशान मत हो. ज़रा रुको न जान, पूछ तो रहा हूँ' उसने उसे प्यार जताते हुए कहा.

''बोलो न भाई, फूल मिलेंगे क्या"

उसने मनीष की तरफ देखते हुए बोला.

'भाई साब, मिल तो जायेंगे पर आपको थोड़ा इन्तजार करना होगा'

मनीष को युक्ति सूझी. वो समझ गया था की ये फूल इस लड़के को रविशा ने ही दिए होंगे. उसके चेहरे की चमक बता रही थी की कितना प्यार करती है वो इससे और ये उल्लू, कमीना, इस छोटे टॉप वाली के पीछे कुत्ते की तरह दुम हिलाता फिर रहा है. यहाँ तक कि रविशा के द्वारा प्यार से दिए गए गुलाबों का भी सौदा कर लिया इसने, इस लड़की का दिल जीतने को. इसका मतलब ये रविशा को और इस लड़की को, दोनों को ही धोखा दे रहा है. मुझे कुछ करना होगा, किसी तरह इसे दुकान में रोक कर इसका भांडा फोड़ना होगा. मनीष सोच में डूब हुआ था.

कुछ सोचकर वो बोला 'भाई साहब आपको आधे घंटे रुकना होगा. मैं अपने एक हेल्पर को गोदाम भेजकर हूबहू ऐसे ही फूल मंगवा दूंगा' मनीष ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा.

'ओके, बट आधे घंटे से ज्यादा नहीं' लड़के के पास कोई चारा नही था.

मनीष जल्दी से दुकान के बाहर गया और रविशा को फ़ोन लगाया. पर उस से फ़ोन करके कहेगा क्या, ऐसा क्या बोले की रविशा आधे घंटे के अंदर उसकी दुकान पर आ जाये. इतना सोचते हुए फ़ोन भी लग गया.

'हेलो' रविशा की महीन आवाज़ आई.

'ह..ह...हेलो, रवीशा मैडम. आप ..आप प्लीज जल्दी मेरी दुकान पर आ जाइये. ज्यादा कुछ आपको समझा नही पाउँगा, बस समझ लीजिये मुझे इस वक़्त आपकी बहुत जरुरत है. प्लीज आधे घंटे के अंदर कुछ भी करके आ जाइये' मनीष को जो सूझा, वो बोलता गया.

'हाँ लेकिन..' रवीशा कुछ कह पाती उस से पहले ही मनीष बोला, 'आप यहाँ आकर सब समझ जाएँगी, बस आप आ जाइये' और मनीष ने फ़ोन रख दिया.

अब सारी बातें नसीब पर निर्भर करती हैं. रविशा को प्यार करते हुए भी, मनीष मन ही मन ये दुआ कर रहा था कि काश ये वो लड़का न हो जिसे रविशा ने प्यार से फूल दिए, काश रविशा वो वेडिंग प्लानर न हो जिसने इस लड़के को ये फूल दिए. काश, उसकी ये सोच गलत हो जाये, एक ग़लतफहमी निकले, अगर रविशा दुकान में आकर इस लड़के को देखकर कोई रियेक्ट नही करेगी मतलब ये वो लड़का नहीं है. तब मनीष अपने स्टॉक में से वैसे ही गुलाब के फूल उस लड़के को दे देगा. और रविशा को ये कह देगा की लेटेस्ट फ्रेंच रोज का स्टॉक देखने को बुलाया था. लेकिन अगर ये वही लड़का है जिसे रविशा ने फूल दिए हैं तो आज रविशा की सपनो की दुनिया टूट जाएगी जो उसे आगे आने वाले दुःख के पहाड़ से बचा लेगी.

यही सब सोचते हुए लगभग 20 मिनट हो गए. मनीष देख रहा था किस तरह बेशर्मी से दोनों उसकी दुकान में बैठे गलबहियां कर रहे थे. सर से सर मिलकर एक दूसरे के फ़ोन में झाँक रहे थे और अपनी कपल पिक्स देखकर खुश हो रहे थे. बात रविशा को सच्चाई दिखाने की न होती तो कबसे धक्के मारकर इन्हें अपनी दुकान से निकल देता, पर कुछ देर और बर्दाश्त करना होगा. मनीष के पास कोई चारा नही था. उसे तो ये कन्फर्म भी नही था की रविशा आएगी. कहीं किसी जरुरी काम में फसी होगी तो शायद न आ पाए. कहीं बहुत दूर हो तो भी नहीं आ पायेगी. और सबसे बड़ी बात, पता नही वह उसे कितनी गंभीरता से लेती है, इसके पहले कभी इस तरह फ़ोन करके अचानक नही बुलाया था मनीष ने. देखते ही देखते आधा घंटे बीत गया.

''ऐ भाई, आधा घंटे हो गया, तुम्हारा हेल्पर फूल लेने गया है या फूल उगाने" 'हीरो' ने गुस्सा दिखाते हुए कहा.

'बस, आता ही होगा' मनीष ने अपनी नजरें सड़क पर जमा दी, रविशा के इंतजार में.

मैडम प्लीज आ जाइये. ये आपकी भावनाओं और ज़िन्दगी का सवाल है. मैं भले ही आपकी ज़िन्दगी में शामिल न हो पाऊँ, पर इस कमीने को तो आपकी ज़िन्दगी में हरगिज नही रहने दूंगा. मनीष मन ही मन कह रहा था.

'डार्लिंग, यहाँ रुकने से कोई फायदा नहीं है, चलो हम किसी दूसरी शॉप पर देखते हैं. फ्री में टाइम ख़राब करवा दिया सो अलग' लड़की मुँह बिचकाते हुए बोली.

'तुम सही कहती हो, मुझे तो लगता है कि इसके पास फूल हैं ही नहीं' वह लड़का जाने के लिए उठ खड़ा हुआ.

''फूल इसी के पास हैं, बोलो कितने चाहिए, किसके लिए चाहिए" एक जानी पहचानी आवाज आई. मनीष ने सर उठाकर देखा तो सामने रविशा खड़ी हुई थी. उसके चेहरे की चमक खो गयी थी, आँखें बुझ गयी थी और होठों पर मुस्कराहट न होकर कई सवाल थे.

लड़का बुरी तरह सकपका गया. और अपने साथ वाली लड़की की ओर देखने लगा जो कि अपना एक हाथ उसकी बांह के चारों ओर लपेटे खड़ी थी.

'डार्लिंग, क्या यही वो वेडिंग प्लानर है जो तुम्हे सुबह फूल बेचकर शहर से बाहर चली गयी थी?' वो लड़की आँखें नचाते हुए बोली.

रविशा के चेहरे पर कोई भाव नही थे.

'हाँ जी, मैं वेडिंग प्लानर तो वही हूँ, पर न तो मैंने इन्हें फूल बेचे थे, न ही मैं शहर से बाहर गयी थी. मैंने तो अपनी भावनाओं का सौदा किया था इन्हें फूल देकर. प्यार करती थी इनसे, और ये प्यार का नाटक करते थे. अनाथ हूँ, मेरे भोली भावनाओं का फायदा उठाकर, मुझे प्यार के जाल में फ़साने का ये घिनोना खेल खेला इन्होंने.

हमारे प्यार की फर्स्ट एनिवर्सरी थी आज, इसलिए मैंने ये फूल गिफ्ट दिए थे. पर ये तो अब हमारे प्यार की कब्र में चढाने के ही काम आएंगे' रविशा ने उस लड़की के हाथ से फूल छीनते हुए, उन्हें अपने पैरों तले सैंडल से कुचल दिया.

वो लड़की गुस्से से आग बबूला हो गयी पर रविशा के गुस्से के आगे नजरें भी न उठा पाई.

एक जोरदार थप्पड़ खींचकर उस लड़के को मारा और बोली, 'मेरी इतनी इंसल्ट कभी नही हुई. आज तुम्हारी वजह से एक साधारण सी वेडिंग प्लानर, मुझ जैसी वेल एस्टेब्लिश्ड ड्रेस डिज़ाइनर के हाथ से फूल लेकर पैरों तले कुचल रही है, शेम ऑन यू मिस्टर सैम' वह पैर पटकती हुई बाहर चली गयी.

'रविशा..म..मैं...' लड़के ने रविशा को कुछ समझना चाहा पर रविशा ने उसकी एक न सुनी.

'बस, बहुत हुआ मिस्टर सैम. मुझे तुम्हारे झूठ और सुनने की कोई जरुरत नही है. बेहतर होगा, तुम इसी वक़्त मेरी नजरों के सामने से दफा हो जाओ' रविशा ने उसकी ओर से मुंह फेर लिया.

वह लड़का अपना सा मुंह से लेकर वहां से तेजी से निकल गया.

उसके जाने के बाद रविशा वहाँ रखी कुर्सी में धम्म से बैठ गयी और सर पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ी. मनीष ने तेजी से जाकर उसे सम्हाल.

'मैडम, मैडम, प्लीज कूल डाउन, ये लीजिये, पानी पीजिये' रविशा के कंधे पर हाथ रखकर वह उसे सम्हालने की कोशिश करने लगा. रविशा ने अपने कंधे पर रखे उसके हाथ को अपने हाथ से दबाते हुए आँखों ही आँखों में जैसे उसे 'थैंक्स' कहा और आंसू पोंछती हुई खुद को सम्हालने लगी. रविशा ने पानी पीकर सवालिया नजरों से मनीष की तरफ देखा, जैसे की पूछ रही हो की तुम्हे इन सब बातों का अनुमान कैसे लगा. मनीष ने उसका भाव समझते हुए उसे सारी बात कह सुनाई. सारी बातें जानकर एक बार फिर रविशा ने मनीष को धन्यवाद दिया.

'अब मुझे चलना चाहिए, बहुत काम है. एक इवेंट छोड़कर आई थी' रविशा ने बहुत जल्दी खुद को सम्हाल लिया था.

'जो हुआ सो हुआ मैडम, पर लाइफ में आगे तो बढ़ना ही होगा न, इस नई शुरुआत के लिए और आपका मूड अच्छा करने के लिए, आपको ये फूल गिफ्ट कर रहा हूँ, प्लीज मना मत करियेगा' मनीष में न जाने कहाँ से हिम्मत आ गयी थी, उसने एक खूबसूरत लाल गुलाब उठा कर रविशा की ओर बढा दिया.

रविशा थोड़ी सकुचाई, फिर हाथ बढ़कर फूल ले लिया. इतने इवेंट्स प्लान करते करते वो भी आँखों की भाषा पढ़ने लगी थी, भला किसी फ्लावर शॉप के ओनर को क्या मतलब कि आपका बॉयफ्रेंड किसी और लड़की को आपके दिए फूल गिफ्ट कर रहा है. वह खुद से ही मन में कह रही थी. इसे इतना फर्क क्यों पड़ा. और कुछ सोचते हुए दुकान से निकल गयी. जाते जाते, अपनी सोच में ही गुम, एकाएक वह फूल अपने बालों में लगा लिया, और तेजी से गाडी स्टार्ट करके निकल गयी. मनीष दूर तक उसे जाता हुआ देखता रहा. सुर्ख गुलाब की रंगत उसके बालों की खूबसूरती को दोगुना कर रही थी.

उस रात को रविशा कुछ गुमसुम थी. उसके अंदर जैसे कुछ टूट रहा था. जान से प्यारी मोहब्बत का गुमान टूटने का गम उसे मुस्कुराने नही दे रहा था. बुझे मन से मेकअप उतारकर, बालों को खोला तो वही लाल गुलाब निचे गिर गया. रविशा ने उसे बड़ी ही नजाकत से उठाया और अपने सिरहाने रखी किताब के बीच में दबा दिया.

'तुम मेरे पास इसी किताब में सलामत रहो, क्या पता तुम्हारा आना किसी नए खुशनुमा रिश्ते की शुरुआत हो' रविशा खुद से बोली और हौले से मुस्कुराई थी. उसके दिल में मनीष की वही मासूम झलक और पिछले तीन साल में उस से हुई सारी छोटी बड़ी मुलाक़ातें, किसी फिल्म के ट्रेलर की तरह घूम गयी थी. और वह एक खुशनुमा सुबह के इन्तजार में नींद के आगोश में समा गयी.

End