बालकहानी—
2/62ओ19
श्रेष्ठ कौन
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाष'
पानी के साथ बर्फ का टुकड़े पत्तियों पर गिरें तो पेड़ चिल्ला पड़ा,‘‘ अरे दुष्ट ! ये क्या करता है ?''
पानी को पेड़ का इस तरह बोलना अच्छी नहीं लगा,‘‘ मैं तो तेरी गंदगी साफ कर रहा था मूर्ख. अपने को देख . तू कितना गंदा हो रहा है ?''
‘‘ अरे वाह,'' पेड़ ने कहा,‘‘ अपने मुंह मिया मिटठु बनना अच्छी बात नहीं है. तुम अपने आप को श्रेष्ठ कैसे बता रहे हो ?''
‘‘ मेरे बिना दुनिया जीवित नहीं रह सकती है. जल ही जीवन है. इस कारण मैं सब से श्रेष्ठ हूं.''
पेड़ कब चुप रहने वाला था,‘‘ तब तो मैं तुम से ज्यादा उपयोगी हूं. मैं न होऊं तो तुम्हारा वाष्पीकरण न हो. वाष्पीकरण न हो तो तुम बादल बन कर बरसोगे कैसे ?''अभी पेड़ कुछ कहता कि हवा तेजी से चलने लगी.
पानी का हवा का यह व्यवहार अच्छी नहीं लगा,‘‘ अरे बेवकूफ ! तू तो ठहर जा.''
‘‘ किसे बेवकूफ कहां, तू ने ?''
‘‘ तू।े ?''
‘‘ बेवकूफ होगा तू,'' हवा ने पानी को ललकारा,‘‘ तू मेरे ही बल पर बादल बन कर आकाष में उड़ता है. यदि मैं न होऊ तो न तू बादल बन कर उड़ सके और न बरस सकें. तेरा साथी यह पेड़ मेरे बिना जिंदा नहीं रह सकता है.''
पेड़ को लगा कि हवा अपनेआप को श्रेष्ठ बताने पर तुली है,‘‘ अरे जा. यदि मैं न होता तो तू कब की मर जाती. मैं ही हूं जो तू।े शुद्ध करती हूं. ताकि तेरे संगठन में ऑक्सीजन व कार्बन डाई ऑक्साइड सहित सभी गैसों को संतुलन बना रहे. अन्यथा तू कभी की प्रदूषित हो कर मर गई होती ?''
हवा को लगा कि पेड़ को घमंड हो गया. वह अपनेआप को श्रेष्ठ बताने पर तुला हुआ है, ‘‘ अरे तू उलटा बोल रहा है. '' हवा ने पेड़ को डांटा,‘‘ यू क्याें नहीं कहता कि मैं ने होऊ तो तू अपने लिए कार्बन डाई ऑक्साइड कहां से प्राप्त करें ? फिर तेरी पत्तियां प्रकाष संष्लेषण द्वारा सूर्य के प्रकाष की सहायता से भोजन कैसे बना पाएगी. तब तू भूख से ही मर जाएगा.
‘‘ इसलिए मैं तू। से श्रेष्ठ हूं.''
पानी को हवा की बात अच्छी नहीं लगी, ‘‘ अरे भाई, रूक.'' उस ने हवा को रोका,‘‘ बात मेरी और पेड़ की श्रेष्ठ होने की थी. तू बीच में कहां से आ गया ?''
‘‘ अरे वाह! कहीं कोई प्रतियोगिता हो और मैं भाग न लू. कहीं ऐसा हो सकता है,'' हवा ने अकड़ कर कहा,‘‘ वैसे भी मैं तुम दोनों से श्रेष्ठ हूं,'' कहते हुए पेड़, पानी और हवा आपस में तकरार करने लगे.
जब उन में से कौन श्रेष्ठ है इस का फैसला नहीं हुआ तो उन्हों ने चंद्रमा से निवेदन किया कि वह न्यायाधीष बन कर फैसला सुनाए कि हम में से कौन श्रेष्ठ है.
चंद्रमा को भला क्या एतराज हो सकता था. उस ने कहा,‘‘ दुनिया में किसी चीज की श्रेष्ठता उस की उपयोगिता के साथसाथ उस के उददेष्य से होती है. ''
‘‘ यह बात तो सही है,'' पानी ने कहा,‘‘ चुंकि मैं सब से ज्यादा उपयोगी हूं इसलिए मैं सब से श्रेष्ठ हूं.''
‘‘ नहींनहीं, '' पेड़ ने विरोध किया,‘‘ मेरे ही कारण पानी अपना चक्रण पूरा करता है. मैं न रहूं तो हवा अपने को शुद्ध नहीं रख पाए. इसलिए मैं ज्यादा उपयोगी हूं.''
हवा कब पीछे रहती. वह बोली,‘‘ नहींनहीं महोदय, मेरे ही कारण पानी इधर से उधर आताजाता है. पेड़ भी मेरे ही कारण जीवित है. इसलिए मैं इन दोनों से श्रेष्ठ हूं.''
चंद्रमा उन की बातें सुन कर मुस्कराया,‘‘ तुम तीनों ही उपयोगी हो. तुम्हारे बिना किसी का भी काम नहीं चल सकता है. मगर, तुम्हारा उददेष्य निस्वार्थ सेवा करना नहीं है.''
सुन कर तीनों चकित रह गए.
‘‘ यह आप क्या कह रहे है ?'' हवा, पानी व पेड़ ने एकसाथ पूछा.
‘‘ यहीं कि तुम्हारा एकदूसरे से स्वार्थ जुड़ा हुआ है. हवा पेड़ के बिना नहीं रह सकती है. पेड़ हवा के बिना. इसी तरह पानी को हवा की सहायता चाहिए. वहीं हवा को पानी की जरूरत है. इसलिए आप तीनों एकदूसरे से स्वार्थवंष बंधे हुए हो.''
‘‘ तब कौन श्रेष्ठ है ?''
‘‘ पृथ्वी.''
‘‘ वह कैसे भला.'' हवा ने पूछा.
इस पर चंद्रमा ने कहा,‘‘ भाई, पृथ्वी पानी को अपने में समाए रहती है. उसी की गरमी से हवा चलती है. पेड़ उसी के सहारे जिंदा है. मगर वह किसी से कुछ नहीं लेती है. सभी को देती ही देती है. इसलिए उस की उपयोगिता के साथसाथ उस का उददेष्य आप सभी से बेहतर है.
‘‘ फिर लेने वाले से देने वाला श्रेष्ठ होता है. यह तुम सभी जानते हो.''
‘‘ हां, यह तो है,'' पानी ने कहा तो चंद्रमा बोला,‘‘ इसी कारण हम सब से ज्यादा श्रेष्ठ पृथ्वी है.''
उन की बातें सुन कर सूर्य भी मुस्करा दिया.
‘‘ वास्तव में निस्वार्थ भाव से देने वाला ही सर्वश्रेष्ठ होता है.''
यह सुन कर तीनों का ।गड़ा बंद हो गया.
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दिनांक— 03.04.2015प्रमाणपत्र
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना मेरी मौलिक है. यह कहीं से ली अथवा चुराई नहीं गई है. इसे अन्यत्र प्रकाषन हेतु नहीं भेजा गया है.
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाष'
अध्यापक, पोस्टऑफिस के पास
रतनगढ—485226 जिला—नीमच (मप्र)
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मोबाइल नंबर——9424079675