आपने ये क्या किया दादा! Dinesh Tripathi 'Shams' द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आपने ये क्या किया दादा!

कहानी :

आपने ये क्या किया दादा!

डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

और मैं जा पहुंचा जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में . पहुँचते ही मैनें मेडिकोलीगल रजिस्टर के पन्ने पलटे. एक बड़े दैनिक समाचार – पत्र के जिला संवाददाता के रूप में यह मेरा रोज का काम था . वहाँ मौजूद डाक्टर ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया . मैंने छूटते ही पूछा , कहिये वर्मा जी आज का कोई खास समाचार ? वे बोले , कुछ खास नहीं . बस एक एक्सीडेंट का केस आया था , कैसरगंज से. मैंने नोट कर लिया . नाम-रजत श्रीवास्तव , थाना-कैसरगंज . रात को अचानक छत से गिर जाने से मौत . फिर कुछ इधर-उधर की बातें और मैं इमरजेंसी वार्ड से बाहर निकल पड़ा किसी और बड़ी खबर की तलाश में . मैं अभी कुछ ही कदम आगे बढ़ पाया था की वहां का वार्ड ब्वाय मिल गया . दरअसल पत्रकारों के लिए ऐसे लोग बड़े काम के होते हैं . आधिकारिक रूप से जिन समाचारों को पत्रकारों तक पहुँचने नहीं दिया जाता , उन्हें हम तक पहुंचाने का काम ये पुछल्ले ही करते हैं . कुछ खास समाचार की टोह लेने की गरज से मैं उस वार्ड ब्वाय के साथ जा पहुंचा अस्पताल के बगल मौजूद एक चाय के ढाबे पर . चाय का आर्डर देकर मैनें बातों का सिलसिला आगे . बातों ही बातों मे उसने बताया , साहब , आज इमरजेंसी वार्ड में जो एक्सीडेंट से मौत का केस आया था , वह दरअसल आत्महत्या का मामला है . यहाँ मिल-मिलाकर मामले को दबा दिया गया है . मैनें उत्सुकता वश पूछ लिया , आखिर वजह क्या थी ? वह बोला ज्यादा कुछ तो नहीं मालूम , बस इतना पता चला की मियाँ बीबी में कुछ कहासुनी हो गयी थी ...........कच्ची उम्र का लड़का था आजकल के लड़कों का भी तो .........कब क्या कर बैठें ? कोई ठिकाना नहीं . उधर मेरे दिमाग में उस समाचार का खाका तैयार हो रहा था . इंट्रो की लाइनें मेरे भीतर ही भीतर पक रही थीं . समाज में रोज कुछ न कुछ घटनाएं – दुर्घटनाएं होती रहती हैं . इनमें से तमाम घटनाएं ऐसी होती हैं जो कभी-कभी मन को कचोट भी जातीं हैं . उनसे आंखें भी नाम होने लगतीं हैं , मगर सभी की नहीं . पेशा कुछ भी हो , वह संवेदना के आड़े आ जाता है . यही हाल मीडिया का भी है . खबर को चटपटी बनाने के लिए सम्वेद्नाये और सुर्खी लाने के लिए पीड़ित का खून . कुछ ऐसा ही पत्रकार धर्म निभाने को मैं ढाबे से बाहर आ गया . अगले दिन की लीड खबर थी, ‘ गृह कलह से तंग आकार युवक ने की आत्महत्या ‘

.................

सुबह के नौ बजे थे. मैं अपने ड्राइंगरूम में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था तभी एक नवयुवक ने आकर मेरे पैर छुए . मैं बोल पड़ा , अरे रोहित तुम ! आओ-आओ . बैठो बेटा . कहो कैसे आना हुआ ? एक अरसे के बाद देखा तुम्हें . कितने बड़े हो गए हो तुम . मगर रोहित के चेहरे पर तब भी कोई उल्लास न दिखा . उसने अपनी जेब से अखबार का एक टुकड़ा निकाल कर मुट्ठी में ले लिया और अवश भाव से मुझे ताकता रह गया . मैंने छूटते ही पूछा , कुछ दिखाना है ? तो उसने खामोशी से वह पन्ना मेरे आगे फैला दिया .

आपने ये क्या किया दादा ! कहते-कहते उसका गला भर आया और आंखें टपकने लगीं . मेरी नजर उस पन्ने पर जा टिकी . लीड खबर थी ‘’ गृह –कलह से तंग आकर युवक ने की आत्म ह्त्या’’ . मैंने प्रश्न सूचक नजरों से दुबारा रोहित की तरफ देखा तो वह रुआंसा होता बोला , ये मेरे रजत दादा की खबर है.......... अभी दो महीने पहले ही उनकी शादी हुयी थी. उन्होनें सुसाइड कर लिया , इस बात को हम लोग किसी तरह छुपा ले गए थे . वरना बड़ी बदनामी हो जाती . पर आपकी खबर ने तो हमें कहीं का न छोड़ा . खबर छपते ही लोगो का तांता लग गया . हर आदमी बस एक ही बात पूछता है आखिर झगडा हुआ किस बात पर था ? और घूम-फिर कर सबकी नजरें भाभी पर जा टिकती हैं. दादा , वे बेचारी दुःख से टूटी . आप ही बताइये कि किसको-किसको और क्या जवाब दें? खाना-पीना तक छूट गया है उनका . दादा आपने ये समाचार लिखकर अच्छा नहीं किया . रजत दादा भी आपके शिष्य थे . आपको खबर भेजने से पहले एक बार हमारे घर पर फोन जरूर कर लेना चाहिए था. मगर जब सब कुछ हो ही गया है तो अब आप इस खबर का खंडन छपवा दीजिए . आप लिखिए कि वो समाचार गलत था . मौत रात के अँधेरे में छत से गिर जाने के कारण हुयी . भगवान के लिए ,दादा प्लीज........जैसे भी हो खंडन निकलवा जरूर दीजिए ......कहते-कहते वह फफक कर रो पड़ा था .

मैंने उसे सांत्वना देने की कोशिश की , धीरज रखो रोहित . सब ठीक हो जाएगा . ईश्वर हमारी मदद करेंगे . तुम चिंता मत करो ....कहकर मैं चाय लाने घर में दाखिल हो गया था .

भीतर पहुँच कर मैंने थोड़ी राहत की साँस ली. दरअसल उस वक्त मैं अपने इस पुराने शिष्य रोहित का सामना करने का साहस खो बैठा था . उन कुछ ही पलों मे दिमाग दौडता हुआ अतीत के दस बारह वर्ष पीछे की ओर भाग चला ........

उन दिनों मैं पत्रकारिता से नहीं जुड़ा था . घर पर कोचिंग क्लासेज चलाया करता था . रोहित कक्षा दस और रजत कक्षा बारह ...... तीखे नैन-नक्श वाले ये दोनों होनहार भाई , जो शहर के निकट ही एक कसबे के रहने वाले थे और रोज मुझसे पढ़ने आया करते थे . कभी-कभी उनके पिता भी मुझसे आकर मिल जाया करते थे . इस तरह उस परिवार से मेरे सम्बन्ध बड़े आत्मीय हो चले थे.बाद के वर्षों में मैं पत्रकारिता से आ जुड़ा . मेरे विद्यार्थी भी इधर-उधर लग गए . कभी कोई मिल जाता तो पुरानी यादें ताजा हो उठतीं.किन्तु आज रोहित से ये मुलाक़ात किसी भी तरह सामान्य न थी .

नाश्ता लेकर जब मैं ड्राइंगरूम में आया तो वह बुरी तरह उदास था . मैंने उसे कुछ लेने को कहा , मगर वह कुछ छू तक न सका . कुछ पलों बाद मैंने ही छेड़ा , आखिर बात क्या हुयी थी रोहित जो इतना बड़ा कांड ........दादा क्या कहूं , मेरे इतने समझदार भैया और इतनी अच्छी भाभी ......घर में किसी चीज की कमी नहीं ........आप तो सब कुछ जानते ही हैं . बस ज़रा सी बात पर जाने क्या हो गया . सच मानिए ऐसा कुछ नहीं हुआ था उस दिन . भाभी को भी क्या पता था कि उनके मुहँ से निकली छोटी सी बात पर ताव खाकर भैया इतना बड़ा कदम उठा लेंगे . वही क्या कोई भी उनके बारे में ऐसा सोच ही नहीं सकता . वे इतने शांत , गंभीर और समझदार थे . मगर छोड़िये अब इन बातों से क्या फायदा . अब तो आप जैसे भी हो , इस खबर का खंडन छपवा दीजिए ताकि लोग मेरे और भाभी के पीछे न पड़ें . मैनें उसे पूरी तरह आश्वस्त करने की कोशिश की थी. फिर वह चला गया था किन्तु मैं विचारों के महासागर में डूबता चला गया .........

रजत, मेरा प्रिये शिष्य . प्रिये होता भी क्यों न, इतना सुशील, शांत, गंभीर और प्रखर. मन आहात था और रह-रह कर तड़प उठता , अरे वह नहीं रहा . अब मैं कभी न देख सकूंगा उसे . न कभी वह मेरे पाँवछू सकेगा, न कभी मैं उसे आशीर्वाद दे सकूंगा . वियोग जब सदैव के लिए अपना होना तय कर ले, तो बड़ा मारक हो जाता है. कुछ ऐसी ही मनोदशा से गुजर रहा था मैं. और साथ में मुझ पर सबसे बड़ी चिंता ये भारी पड़ रही थी कि इस समाचार का खंडन भी निकलवाना है. बेचारा रोहित क्या जाने कि समाचार जगत में खबरों का प्रकाशन जितना आसान है , खंडन उतना ही मुश्किल . पत्रकार की इस विवशता की कोई खबर नहीं है बाहरी दुनिया को . बेचारा रोहित! मैंने खुद को उसकी निगाहों में अपराध मुक्त साबित करने के लिए झूठ तक बोल दिया था . यह खबर कैसरगंज के स्थानीय संवादसूत्र की भेजी हुयी थी, इसीलिए निकल गयी . उसे क्या पता सारा किया धारा मेरा ही है .

फिर मैनें आगे की रूपरेखा तैयार की . रोहित से जिस खंडन को प्रकाशित करने का मैंने वादा किया था, वह तो संभव न था , फिर भी उस की भरपाई के लिए मैंने एक शोक सभा का समाचार तैयार कर डाला , “ कैसरगंज के युवा सामाजिक कार्यकर्ता रजत श्रीवास्तव के निधन पर विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा शोक-संवेदना व्यक्त. अचानक छत से गिर जाने के कारण हुए उनके निधन से समाज को अपूर्णनीय क्षति . पूरा कस्बा शोक मग्न “ और इस समाचार को मैनें अपने समाचार पत्र के साथ-साथ जनपद के सभी छोटे-बड़े अखबारों को भी भेज दिया था. लेकिन समाचारों की अधिकता के कारण दूसरे दिन यह शोक-संवेदना प्रकाशित नहीं हो सकी . उसी शाम रोहित का फोन आया , दादा अभी तक खंडन प्रकाशित नहीं हुआ . लीजिए पापा से बात करिये . बेटा अशोक ! जैसे भी हम लोगों को डूबने से बचा लो. हम बाप-बेटे तो जैसे-तैसे सामना कर लेंगे लोगों का पर बेचारी बहू........... इसके बाद वे बुरी तरह फफकने लगे थे तो मजबूर होकर मुझे फोन का रिसीवर रख देना पड़ा था. उसके अगले दिन शोक – संवेदना की खबर काट-छांट कर प्रकाशित हो गयी . चूकि समाचारपत्रीय मापदंडो पर वह दोयम दर्जे की थी इसलिए इसे अखबार मे एक थोड़ा सा कोने का कालम ही मिल सका था .

यह खबर किसी भी दशा में रोहित के परिवार के उम्मीदों के अनुरूप न थी . मैं भी उससे संतुष्ट न हो सका था , किन्तु मैं भी विवश था और इससे ज्यादा कुछ कर पाना मेरे सामर्थ्य में न था . बहरहाल मामला धीरे-धीरे शांत होता गया. बाद में न रोहित न उसके पिता का फोन आया और न ही संकोचवश मैनें ही उनसे संपर्क किया . यह बात भी दो महीने पुरानी हो चुकी थी .

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वह रविवार की एक सूनी दोपहरी थी . मैं घर पर विभिन्न अखबारों के सम्पादकीय पलट रहा था कि अचानक हांफता हुआ रोहित मेरी बैठक में घुस आया. उसने मेरे पैर छुए और सर झुका कर सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया . मैंने देखा , उस दिन की तरह आज भी वह बुरी तरह हताश व् परेशान था . यह देखते ही मेरा मन तमाम शंकाओं मे डूबता चला गया . इन चंद लम्हों में जाने क्या –क्या सोचकर मैं फिर वर्तमान के धरातल पर आ गिरा . मैं डरते-डरते बस इतना ही पूछ पाया , कैसे हो रोहित ? मेरे इस सवाल पर उसने गर्दन उठाई , मुझे एक निगाह देखकर पलकें झुका लीं फिर मरियल स्वरों में बुदबुदाया , दादा ! बीती रात भाभी ने जहर खा लिया . भाभी ने ! मैं विस्मय से चीख पड़ा पर वह बिना विचलित हुए बोला , हाँ दादा , भाभी ने............. मगर इस खबर को भी मैंने रजत दादा वाली खबर की तरह छिपा कर रखा है . उनकी मिट्टी करके मैं सीधा आपके पास चला आया हूं . बात यह है कि वहां का कोई संवाददाता भूले-भटके आपके पास भाभी की खुदकुशी की खबर लेकर आये तो आप उसे छपने मत दीजियेगा . दादा प्लीज ........क्या कहूं ......ज़माना ही बेरहम है . उसने भय्या की मौत को थोप दिया भाभी के मत्थे . पूरे दो महीने वे लोगों के मुहँ से जाने क्या-क्या सुनती रहीं. अकेले में रोतीं और कहतीं रोहित मैं ही हत्यारिन हूं तुम्हारे भैया की. मेरी वजह से ही सब कुछ हो गया . जबकि आप सच मानिए दादा वे बिलकुल बेक़सूर थीं . भैया के गम को वे जैसे-तैसे पी जातीं और भूल भी जातीं पर समाज ने उन्हें भूलने न दिया . अपराधबोध का नश्तर वह रात-दिन चुभोता रहा उन्हें .

अब अगर भाभी की खबर लीक हो गयी तो यही दशा पिता जी की भी होगी . इस अपराधबोध को वे पचा न सकेंगे कि वे अपनी बहू को समाज के क्रूर तानों से बचा न पाए . इसलिए मैं आपके हाथ जोड़ता हूं दादा ये खबर किसी भी तरह लीक न होने पाए . अब मैं चलता हूं ............

वह चला गया मगर मेरे दिमाग पर हथौड़े बरसने लगे . उसकी भाभी ने आत्महत्या कर ली . खबर दुखद थी . मगर उससे भी ज्यादा दुखद ये था कि उसने क्यों कर ली आत्महत्या ? कहीं उसके पीछे अस्पताल के वार्ड ब्वाय द्वारा लीक की गयी गृह कलह से ऊबकर आत्महत्या की वह मुखबरी तो न थी , जिसे मैंने खबर को चटपटा बनाने के लिए अनजाने ही इस्तेमाल कर डाला था. मुझे लगा रोहित की भाभी ने आत्महत्या नहीं की . उसकी ह्त्या करने वाला उसके पति का कभी का गुरु और आज का एक नासमझ पत्रकार था .

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डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

वरिष्ठ प्रवक्ता: जवाहर नवोदय विद्यालय

ग्राम-घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया -२७१२०१

जनपद-बलरामपुर , उत्तर प्रदेश

मोबाइल-०९५५९३०४१३१

इमेल- yogishams@yahoo.com