हेलिकॉप्टर वाले भइया
संजय कुंदन
जोर की घड़घड़ाहट से नींद खुली थी। एक क्षण के लिए मैं घबराया लेकिन तुरंत समझ गया। यह हेलिकॉप्टर की आवाज थी जो दूर से धीरे-धीरे पास आती हुई लग रही थी। मेरे घर से थोड़ी ही दूर पर वायुसेना का एक कैंप है। वहीं से अकसर अभ्यास के लिए हेलिकॉप्टर हमारे घर के आसपास के आकाश में मंडराते रहते थे।
मैं बाहर अपनी बालकनी में आ गया। अपने सिर के ठीक ऊपर मुझे दो हेलिकॉप्टर चक्कर काटते नजर आए। एक बार फिर वही भ्रम हुआ। ऐसा लगा जैसे वे धीरे-धीरे नीचे चले आ रहे हों, बहुत नीचे, एकदम नीचे। एक अजीब सी सनसनाहट होने लगी मेरे भीतर। इसे समझना बड़ा मुश्किल है। जब-जब लगता है कि वे नीचे आ रहे हैं मुझे अहसास होता है कि कोई ताकत मुझे ऊपर की ओर खींच रही हो। हेलिकॉप्टर का शोर कान फाड़ रहा था। मैंने उस पर आंखें टिकाई तो लगा जैसे अंधेरा छाने लगा हो। मैं अंदर चला आया।
ऐसा आज से नहीं बचपन से ही हो रहा था। करीब तीस साल पहले से। हेलिकॉप्टर की आवाज सुनते ही मेरे भीतर बहुत कुछ घटने लगता था। कभी लगता था एक आंधी मेरे भीतर प्रवेश कर रही है जो मेरे टुकड़े-टुकड़े कर देगी या उठाकर दूर कहीं फेंक देगी। फिर लगता था किसी ने मुझे हेलिकॉप्टर के पंखों पर डाल दिया है और मैं उसके साथ घूमने लगा हूं।
हेलिकॉप्टर मुझे दूर ले जाता है। उस दुनिया में जो बैजू भइया की दुनिया थी। बैजू भइया, मेरा शहर और बाढ़।
बैजू भइया का असली नाम तो बैद्यनाथ प्रसाद था। वे हमारे दूर के किसी चाचा के लड़के थे। उस चाचा ने बैजू भइया को गांव से हमारे घर भेज दिया था ताकि पिताजी शहर में उन्हें कोई छोटा-मोटा काम दिलवा दें। लंबे छरहरे गोरे-चिट्टे बैजू भइया गांव और परिवार के लिए भले ही निखट्टू और नाकारा हों पर हम भाई बहनों और मोहल्ले के कुछ बच्चों के लिए किसी नायक से कम नहीं थे। मैं उस वक्त सात-आठ वर्ष का था जब बैजू भइया का हमारे घर में आगमन हुआ था।
मुझे याद है वह दिन जब पिताजी उन्हें लेकर आए थे। पिताजी ने कहा था इनके पांव छुओ। यह तुम्हारे बैजू भइया हैं। मैं जब उनके पैर छूने के लिए झुका तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया। फिर उन्होंने अजीब तरीके से सिर घुमाया। उनका यह अंदाज मेरे एक खिलौने जैसा था। मेरे पास मिट्टी का एक आदमी था जिसकी गर्दन में स्प्रिंग लगा था जिससे उसकी गर्दन हर समय हिलती रहती थी।
मैंने अपनी बहन को कान में फुसफुसाकर बताया कि ये भइया तो उसी खिलौने की तरह सिर हिलाते हैं। भइया ने यह ताड़ लिया। पिताजी के वहां से खिसकते ही उन्होंने मुझसे पूछा तुम लोग जरूर मेरे बारे में कुछ कह रहे हो। हमलोग घबरा गए। हमें लगा कहीं वह नाराज न हो जाएं। लेकिन उन्होंने बड़े प्यार से कहा कि वह बिल्कुल बुरा नहीं मानेंगे बल्कि हमें खाने की कुछ चीजें देंगे। तब हमने उन्हें बता दिया। इस पर वह जोर से हंसे और बोले, चलो वह खिलौना हमें दिखाओ। हमने उन्हें खिलौना दिखाया तो वे बोले अरे यह तो मैं ही हूं। हमें लगा कि वह मजाक कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने पूरी संजीदगी से इस बात को दोहराया। फिर उन्होंने जो कहानी सुनाई उससे हमें विश्वास हो गया कि वह खिलौना उन्हें ही देखकर बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि यह खिलौना हमारे गांव के कमरू कुम्हार का बनाया हुआ है जो कि बैजू भइया का दोस्त है। एक बार कमरू ने बैजू भइया से कहा कि वह कोई नया खिलौना बनाना चाहता है। बस बैजू भइया ने यह आइडिया सुझाया कि ऐसा एक आदमी बनाओ जिसकी गर्दन हिलती रहती हो। बस कमरू ने बैजू भइया के चेहरे-मोहरे वाली एक मूर्ति बना दी।
लेकिन तभी मैने टोका उसने तो एक ही मूर्ति बनाई होगी। पर बाजार में तो हजारों मूर्तियां हैं।
बैजू भइया मूड़ी डोलाते हुए हंसे और बोले, उसने इस मूर्ति का एक सांचा बना लिया। फिर उसी सांचे से हजारों मूर्ति बन रही है।
बैजू भइया की यही खासियत थी। वह किसी बात को इस तरह कहते कि वह एकदम प्रामाणिक लगने लगती। कम से कम हमलोगों के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता था कि इसमें सच कितना है और झूठ कितना। कुछ दिनों के बाद तो उनकी हर बात हमें सच लगने लगी थी। वे एक अद्भुत कथावाचक थे। किसी बात को इस तरह कहते कि वह अपने आप एक आख्यान में बदल जाती। वे कोई भी मामूली प्रसंग उठाते और उसे दूर तक ले जाते। दिलचस्प तो यह था कि अपने हर आख्यान में वह एक पात्र के रूप में वह अवश्य उपस्थित रहते थे।
यह उस दौर की बात है जब छोटे शहरों तक टीवी नहीं पहुंचा था। तब सूचना और मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो ही हुआ करता था। सुबह की शुरुआत भजन से होती थी। हरिओम शरण भजन के स्टार थे। उनकी आवाज और सूर्योदय में एक अजीब रिश्ता बन गया था। हमें तो कई बार लगता था कि सूरज ही हरिओम शरण की आवाज में गा रहा है। भजन के बाद फरमाइशी फिल्मी गानों के एक के बाद एक कार्यक्रम चलते थे। फरमाइश करने वालों के नाम सुनने का भी एक अलग सुख था। कई बार कोई परिचित नाम सुनकर हम रोमांच से भर जाते थे। उसी क्रम में हमें झुमरी तिलैया नामक स्थान का पता चला और यह भी मालूम हुआ कि हमारी एक मौसी वहां रहती है। हम भाई-बहन कई बार उत्सुकतावश कान लगाए रहते कि फरमाइश करने वालों में कभी मौसी या मौसा का नाम भी आएगा। उस वक्त लोग रेडियो नाटक ही नहीं फिल्म भी सुनते थे। जब बिनाका संगीतमाला बज रहा होता तो सड़कें सूनी हो जाती थीं। राह चल रहे यात्री पान की दुकान पर खड़े होकर वह कार्यक्रम सुनने लगते। कार्यक्रम की शुरुआत के साथ ही अमीन सयाणी की आवाज का जादू सब पर छा जाता। रेडियो पर बच्चों के कुछ कार्यक्रम भी आते थे। हम खेलना छोड़कर वह कार्यक्रम सुनते। लेकिन बैजू भइया के आने के बाद हमारे लिए रेडियो का कोई मतलब नहीं रह गया। बैजू भइया ही हमारे रेडियो बन गए। वही हमारे लिए सूचना का स्रोत थे और मनोरंजन का साधन भी। यहां तक कि कई बार पिताजी भी रेडियो बंद कर बैजू भइया की कथा सुनने आ बैठते। उनकी हर कथा के अंत में पिताजी यह बात सुभाषित की तरह दोहराते खाली तुमको गप्प बनाने में मन लगता है। पढ़ने-लिखने में मन लगाए रहते तो आज ये हाल नहीं होता। हमें पिताजी के इस रवैये पर ताज्जुब होता। हमें समझ में नहीं आता था कि पिताजी पहले तो खूब रस ले लेकर उनके किस्से सुनते थे लेकिन फिर अंत में मजा किरकिरा क्यों कर देते थे। हालांकि हमने महसूस किया कि पिताजी के भीतर भइया के प्रति काफी स्नेह था।
बैजू भइया हमारे लिए एक खिड़की थे जिससे हम एक ऐसी दुनिया में झांकते थे जो हमारे लिए रहस्यमय और अबूझ सी थी। वह असल में कटु यथार्थ था पर हम उसे किस्सों के संसार के रूप में देखते थे जिसमें हर पल हमें एक सनसनी और रोमांच का अहसास होता था। या फिर यह बैजू की कथन शैली का कमाल था कि वह किसी संकट को भी एक रूमानी रूप दे देते थे। जैसे उन्होंने सांप मारने की एक अद्भुत दास्तान सुनाई। हमें इसी क्रम में पता चला कि गांव में उनका घर फूस का है। भइया ने बताया कि रात में जब वह सोये थे तो अचानक उन्होंने धप् की आवाज सुनी। उन्हें लगा कि कोई चूहा होगा। उन्होंने ध्यान नहीं दिया। फिर जब उन्होंने सों-सों की आवाज सुनी तो चौकन्ने हो गए। उन्होंने ढिबरी जलाई तो देखा कि एक गेहुंअन फुफकार रहा है। उन्होंने अपनी मां को घर से बाहर भेज दिया और मुकाबले में उतर गए। उन्होंने गेहुंअन से नजरें मिलानी शुरू कर दी। बड़ी देर तक उसकी आंखों में आंखों में डाले रहे। भइया ने सर्प विशेषज्ञ की तरह बताया कि अगर गेहुंअन से नजरें मिलाओ तो चक्कर आने लगता है। लेकिन भइया डटे रहे। तभी उन्हें अहसास हुआ कि सांप उन पर हमला करने वाला है। बस फिर क्या था। उन्होंने डंडा उठा लिया और जोर से मारा। भइया का कहना था कि वह उसे मारना नहीं चाहते थे लेकिन उसने उन्हें उकसाया। इसके बाद सांप बौखलाया। भइया को इसका अंदाजा मिल गया और उन्होंने फुर्ती से भाला उठाया और अपनी ओर आते उस गेहुंअन को काट डाला। गेहुंअन के दो टुकड़े हो गए। दोनों टुकड़े बड़ी देर तक इस तरह तड़प रहे थे जैसे दो अलग-अलग सांप हों।
बैजू भइया के वर्णन से मैं इस कदर डर गया कि उनसे चिपक गया फिर मैंने उन्हें कसकर पकड़ लिया। इस बात को मां समझ गई थी। उसने भइया को डांटते हुए कहा बंद करो यह सब बकवास। जब से तुम आए हो इन लोगों का पढ़ना-लिखना चौपट कर दिए हो। अपने तो कुछ किए नहीं इन लोगों को भी बिगाड़ने पर लगे हुए हो।
मां के इस हस्तक्षेप ने हमें बैजू भइया की कहानी से उपजे भय से तो पीछा छुड़ाया पर मां का बैजू भइया को इस तरह डांटना मुझे अच्छा नहीं लगा। मैंने महसूस किया था कि मां बैजू भइया को पसंद नहीं करती थी। उनके आने के दो-तीन दिन बाद ही वह पिताजी से कह रही थी, आप किसको लेकर चले आए। ये आदमी दो-दो सेर खाता है। हमलोगों का तो किसी तरह काम चल जा रहा है अब ऊपर से एक मेहमान ले आए।
अरे ये कोई मेहमान थोड़े ही है घर का लड़का है।
तो ये कब तक माथा पर बैठा रहेगा।
ठीक है चुप रहो। पिताजी ने झल्लाकर कहा।
मां जब-तब बैजू भइया को ताने मारती रहती थी। लेकिन भइया के चेहरे पर शिकन तक न आती थी। वह मुस्कराते हुए सिर हिलाते रहते थे। ऐसे मौकों पर वह अपनी जेब से खैनी निकाल लेते थे। खैनी को इस तरह मसलते जैसे सारे दुख-दर्द को पीसकर खत्म कर देना चाहते हों। मैंने उनसे खैनी खाने की आदत के बारे में पूछा था। बस वह इसी पर शुरू हो गए।
उनका कहना था कि सुरती बनाना एक कला है। यह चौंसठ कलाओं में से एक है। हर आदमी एक जैसी सुरती नहीं बना सकता। सुरती बनाने के तरीके से उस आदमी के व्यक्तित्व का पता चलता है। भइया का दावा था कि वह बनी हुई सुरती को सूंघते ही बता सकते हैं कि इसे किस तरह के आदमी ने बनाया है। उनका कहना था कि वह इस मामले में किसी ज्योतिषी या मनोवैज्ञानिक से कम नहीं हैं। वह बता सकते थे कि यह वाली सुरती एक क्रोधी आदमी ने बनाई है और वह वाली किसी ऐसे आदमी ने बनाई है जो किसी के प्रेम में डूबा हुआ है। सुरती ने उनके जीवन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक बार उन्होंने बताया कि इसी सुरती के कारण उन्हें हेलिकॉप्टर में बैठने का मौका मिला।
यह बड़ा ही रोचक किस्सा था। बैजू भइया ने बताया कि उनके गांव में बाढ़ के मौके पर एक हेलिकॉप्टर आया था। हेलिकॉप्टर से आए सारे लोग जब बाढ़ की स्थिति का जायजा ले रहे थे तभी पायलट ने ग्रामीणों की भीड़ की तरफ देखकर कहा, अरे भाई कोई मुझे खैनी खिला सकता है? संयोग से बैजू भइया सबसे आगे खड़े थे। उन्होंने कहा हां सर लीजिए न। बैजू भइया ने गुनगुनाते हुए सुरती मलना शुरू कर दिया। तभी पायलट ने पूछा, बाढ़ में तुमने अपना तंबाकू बचा रखा है?
हां सर, सब कुछ बह जाने देंगे लेकिन तंबाकू नहीं जाने देंगे। खैनी के बल पर ही तो समय काट रहे हैं सर।
पायलट बैजू भइया का मुंह देखता रह गया। खैनी खाते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसने बैजू भइया की पीठ ठोंकी और कहा, क्या कमाल खैनी है यार। ऐसा सोंधापन तो आज तक कभी नहीं मिला।
पायलट ने बीस रुपये का नोट निकाल कर बैजू भइया की तरफ बढ़ाया। भइया ने हाथ जोड़कर मना कर दिया। पायलट बोला, अरे यह तुम्हारा इनाम है भाई बढ़िया सुरती के लिए।
अगर आप खुश हैं तो मुझे अपने हेलिकॉप्टर में घुमा दीजिए।
पायलट भौंचक रह गया। भइया ने दोहराया, घुमा दीजिए न।
यह नहीं हो सकता।
क्यों नहीं हो सकता। आपका हेलिकॉप्टर है।
मेरा हेलिकॉप्टर थोड़े ही है, सरकार का है। मुझे परमिशन लेनी होगी।
तो ले लीजिए न परमिशन। भइया ने आग्रह किया।
पायलट सोच में पड़ गया। उस समय एक नेताजी और कुछ अफसर लोगों से मिल जुल रहे थे और पैसे-कपड़े वगैरह बांट रहे थे।
पायलट ने इधर-उधर देखा फिर भइया का हाथ पकड़कर कहा चलो अभी मौका है। मैं उसमें तुम्हें बैठा तो सकता हूं पर उड़ा नहीं सकता। चलो तुम देख लो कि हेलिकॉप्टर अंदर से होता कैसा है। उसने बैजू भइया को हेलिकॉप्टर में बिठा दिया और खुद भी अपनी सीट पर बैठ गया। फिर उसने सारे पार्ट-पुर्जे दिखा-दिखाकर बताया कि किससे क्या-क्या काम लिया जाता है। फिर थोड़ी देर बाद उसने बैजू भइया को उतार दिया।
लोग नेताजी को छोड़कर बैजू भइया के पीछे दौड़े। सब घेरकर उनसे सवाल करने लगा, अंदर कैसा लगता है। ठंडा या गरम।...सीट कितनी मुलायम थी। बाहर का दृश्य कैसा लगता है। बैजू भइया अचानक लोकप्रिय हो उठे और बाढ़ खत्म होने के महीनों बाद तक हेलिकॉप्टर प्रकरण चलता रहा। बाद में इस कहानी ने कई नए मोड़ ले लिए। यह प्रचारित हो गया कि बैजू भइया हेलिकॉप्टर में उड़ चुके हैं। गांव के कुछ बूढ़े, जो उस दिन मौजूद नहीं थे, उनसे पूछते अरे ई बताओ कि उड़ने में कइसा लगता है।
यह सवाल सुनते ही बैजू भइया कल्पना के आकाश में उड़ने लगते-अरे क्या बताएं काका। हेलिकॉप्टर धीरे-धीरे ऊपर जाता है। नीचे खड़ा आदमी पहले बकरी की तरह लगने लगता है फिर मूस जैसा। उसके बाद एकदम बिला जाता है। फिर खाली हरा-हरा दिखता है। उसके बाद धुएं की एक पट्टी दिखने लगती है।
बैजू भइया ने हमें बताया कि पायलट द्वारा दी गई कुछ जानकारियों के आधार पर उन्होंने यह कहानी गढ़ी थी। गांव में उनका रुतबा बढ़ गया। लोग उनकी कहानी को अपनी ओर से भी न जाने कौन-कौन सा रूप दे रहे थे। उनकी कहानी ऐसी शक्ल अख्तियार कर रही थी कि वह भी चकित थे। बात यहां तक पहुंच गई कि उस पायलट ने बैजू भइया को पायलट बनाने का वादा किया है। अब बैजू भइया जल्दी ही पायलट बनने वाले हैं। लेकिन कुछ दिनों तक इन अफवाहों के हवा में तैरने के बाद भी बैजू भइया के जीवन में कोई खास बदलाव आता न देखकर लोगों को कुछ संदेह हुआ। फिर अचानक बैजू भइया को लोगों ने सिर से उतारकर जमीन पर रख दिया। फिर यह चर्चा फैलने लगी कि सब बेकार की बातें हैं। बैजू जबर्दस्ती हेलिकॉप्टर में घुसने लगे थे पायलट ने उन्हें डांट डपटकर घुसने से रोका। और पायलट को सुरती खिलाने वाली बात ही झूठी है। पायलट न हुआ कोई ठेला या रिक्शा वाला हो गया कि खैनी खाएगा। अरे वो लोग अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने वाले शहरी लोग होते हैं। वो खैनी थोड़े खाएंगे। अब बैजू भइया धर्मसंकट में पड़ गए। अब वो किसको सफाई देते फिरते कि उन्होंने वास्तव में पायलट को वह सुरती खिलाई थी और दस मिनट तक हेलिकॉप्टर में बैठे रहे थे। उनका कोई गवाह भी अब गांव में नहीं रह गया था। उस दिन जो लोग मौके पर मौजूद वे सब के सब रोजी-रोटी के लिए दिल्ली या पंजाब का रुख कर चुके थे। अब बैजू भइया के पिताजी हंसी के पात्र बन गए थे। गांव में जिधर निकलते लोग कहते बैजुआ हेलिकॉप्टर कब चलाएगा? अब बैजू भइया का गांव में रहना दूभर हो गया था। इसलिए मेरे पिताजी के गांव पहुंचते ही उन्हें साथ लगा दिया गया।
हम बच्चों को यह प्रसंग सुनाने के बाद बैजू भइया ने ऐलान किया, एक न दिन हेलिकॉप्टर पर उड़ना है। हम देखना चाहते है कि आदमी बकरी और मूस में कैसे बदलता है। धुएं की पटट्ी पर उड़ना कैसा लगता है।
यह कहते हुए वह सुरती लगाने लगे और बोले, इसी सुरती ने हमें हेलिकॉप्टर में बैठवाया। यही उड़वाएगी भी। एक न एक दिन कोई पहुंचा हुआ आदमी मेेरे हाथ से खैनी खाएगा और मेरा जीवन बदल देगा।
जिस दिन भइया ने यह किस्सा सुनाया था उसके दो-तीन दिनों के बाद ही रेडियो में यह खबर आई कि सारी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। हमारे शहर पर भी बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।
अरे बाप रे, फिर बाढ़ आवेगा क्या। खबर सुनते ही बैजू भइया के मुंह से निकला। उन्होंने थोड़ा परेशान होकर कहा, हम कल गांव चले जाएं क्या?
तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?
सारा रास्ता बंद हो चुका है। रेलवे ट्रैक पर भी पानी भरा हुआ है।
अरे जाने दीजिए न। तत्काल मां ने कहा। स्पष्ट था कि वह भइया को किसी तरह घर से भगाने को आतुर थी। लेकिन पिताजी ने मां की बात पर ध्यान न देते हुए समझाया, गांव की चिंता मत करो। वहां और भी लोग हैं। ... तुम अकेले नहीं जा पाओगे।
बैजू भइया मायूस हुए। मुझे लगा उन्हें अपने घर की याद आ रही है या वे अपने मां-बाप की चिंता सता रही है। पर मामला कुछ और ही था। रात में सोते वक्त उन्होंने मुझे बताया हम तो इसलिए घर जाना चाहते हैं कि बाढ़ आने पर फिर हेलिकॉप्टर आवेगा। कौन जाने फिर वही खैनी वाला पायलट से भेंट जाओ। इस बार तो हम उसको छोड़ेंगे नहीं उड़ के रहेंगे। लटक जाएंगे उसके गर्दन से।
यह बाढ़ आखिर क्या बला है? हमने जब बैजू भइया से पूछा तो उन्होंने इसका ऐसा वर्णन किया कि हमें लगा यह दशहरा और दीवाली से भी मजेदार कोई पर्व है। बाढ़ का दृश्य हमारी कल्पना को तरह-तरह से झकझोरने लगा। भइया ने बताया कि वे जिस चौकी पर सोये थे वह रात में तैरती हुई बाहर चली आई। सब लोग उसी चौकी पर सवार हो गए। थोड़ा आटा, सत्तू नमक-तेल प्याज हरी मिर्च, दो ईंट, थोड़ा गोइठा और एक माचिस लेकर घर के लोग उस पर सवार हो गए। वह उनका चलता-फिरता घर बन गया। कई दिन उस पर कटते थे। चौकी पर लिट्टी बनाई जाती थी और वही खाकर वे लोग गुजारा करते थे। बैठे-बैठे भगवान का नाम लेते रहते, पुराने प्रसंग दोहराये जाते, मन की भड़ास निकाली जाती।
भइया ने बताया कि कई बार चौकी पर सांप चले आते, मछलियां चली आतीं। उनका कहना था कि बाढ़ जितना लेती है उतना दे भी देती है। पानी के उतरते ही हर किसी को कुछ न कुछ हाथ जरूर लगता। एक बार एक मल्लाह ने देखा कि एक बक्सा बहता चला आ रहा है। उसने उसे खोला तो उसकी आंखें फटी रह गईं। उसमें गहने थे। वह रातोंरात अमीर हो गया। इसी तरह अक्सर कुछ भैंसें बहती हुई आ जाती थीं। एक बार एक नि:संतान औरत को बच्चा मिल गया। बैजू भइया ने बताया कि एक दिन लोगों ने देखा कि एक छोटा खटोला बहता आ रहा है। उस पर छह महीने का एक बच्चा प्रसन्न खेल रहा था। उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे थोड़ी देर पहले ही उसकी मालिश की गई हो। उसकी आंखों में अभी-अभी काजल लगाया गया था। उस औरत ने उसे भगवान की देन समझकर स्वीकार कर लिया।
यह सब सुनकर हमारी आंखों के आगे विशाल जलधारा लहरान े लगी। हम अजीबोगरीब अहसास में डूबने उतराने लगे। लगा कि कल हम उठेंगे तो देखेंगे पानी को, हमारी खिड़की को ठेलकर भीतर आने को बेताब। एक दिन अखबार में बाढ़ की तस्वीर छपी थी। वह ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना था। लेकिन उस तस्वीर में उस बेचैन धारा को महसूस किया जा सकता था जो हमारी कल्पना को झिंझोड़ रही थी। खबर यह थी कि हमारे शहर के आसपास के इलाके में बाढ़ का पानी घुस चुका था और कभी भी हमारे शहर में प्रवेश कर सकता था। यह सुनते ही मां-पिताजी चिंतित हो गए पर हम बच्चे बेहद प्रसन्न हुए। बैजू भइया भी अंदर से खुश थे पर उन्होंने मन की बात जाहिर नहीं की। पिताजी ने बैजू भइया को आदेश दिया कि वे आज ही दो महीने का राशन लाकर रख दें। फिर इस बात पर विचार होने लगा कि अगर बाढ़ आ गई तो क्या किया जाए। बैजू भइया ने बाढ़ विशेषज्ञ की तरह विचार देना शुरू किया हम सब लोग छत पर चले जाएंगे। सारा समान ऊपर ले चला जाएगा। लेकिन तभी पिताजी ने रहस्योद्घाटन किया कि हमारे घर में सीढ़ी है ही नहीं।
यह समझना मुश्किल था कि मकान मालिक ने इसमें सीढ़ी क्यों नहीं बनाई। संभवत: वह दोमंजिला बनाना चाहता हो लेकिन उसने योजना स्थगित कर दी। हमारे मोहल्ले में बेतरतीब ढंग से मकान बने हुए थे और ज्यादातर सिंगल ही थे। तभी बैजू भइया ने राय दी कि वह ड्राम और स्टूल जोड़कर सीढ़ी बना देंगे। पिताजी ने कहा कि बच्चे कैसे चढ़ पाएंगे। इस पर बैजू भइया ने जो कहा उसे सुनकर हमारी बांछें खिल उठीं। उन्होंने कहा कि वे बाल्टी में बच्चों को ऊपर चढ़ा देंगे। हम बाल्टी में बैठकर छत पर चढ़ेंगे यह सोचते ही हमें लगा जैसे हम हेलिकॉप्टर में उढ़ने वाले हों और बैजू भइया हमारे पायलट हों।
हम उस क्षण का बेसब्री से इंतजार करने लगे। हम भइया से बार-बार पूछते कि वह कैसे हमें बाल्टी में चढ़ाएंगे। फिर उन्होंने इसका पूरा मैकेनिज्म हमें समझाया। उन्होंने बताया कि वह मजबूत रस्सी से बाल्टी को बांधेंगे। एक आदमी नीचे होगा एक आदमी ऊपर। नीचे वाला आदमी बच्चों को बैठाएगा और ऊपर वाला आदमी रस्सी खींचेगा। यह सुनते ही हमारे सामने वह दृश्य तैरने लगता।
पूरा मोहल्ला बाढ़ की आशंका में उभ-चुभ कर रहा था। कभी खबर आती कि पानी कम हो रहा है कभी बताया जाता कि फिर गंगा खतरे के निशान से ऊपर आ गई है। बाढ़ आने की बात से हम खुश हो जाते मगर मां-पिताजी चिंतित हो जाते। हम भाई बहन और अपने मोहल्ले को कुछ दोस्त तरह-तरह की योजनाएं बनाते। कौन पहले बाल्टी में बैठेगा। अपने साथ कौन क्या ले जाएगा। बैजू भइया ने बताया कि जब पूरा पानी भर जाएगा तो हेलिकॉप्टर से खाना गिराया जाएगा। भइया के मुताबिक वह बड़ा स्वादिष्ट खाना होता है। हेलिकॉप्टर से कपड़े और दवाइयां भी गिराई जाती हैं। उन्होंने कहा कि हेलिकॉप्टर को छत पर भी उतारा जा सकता है। हो सकता है वह हमारी छत पर उतर जाए। यह सुनते ही मैं खुशी से चिल्ला पड़ा और बोला, अगर उसमें वही खैनी खाने वाला पायलट हुआ तो...।
भइया की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा, तब तो मजा आ जाएगा। वह हमलोग को उड़ाने ले जाएगा फिर छत पर आकर छोड़ देगा।
उस रात मैं सो नहीं सका। हेलिकॉप्टर ने मेरी नींद उड़ा दी। मैं प्रार्थना करने लगा कि जल्दी से बाढ़ आ जाए। सुबह रेडियो की आवाज से नींद खुली। खबर में बताया जा रहा था कि सारे स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। बाढ़ की आशंका को देखते हुए सेना को सतर्क कर दिया गया है। तभी बैजू भइया आए और बोले, बाल्टी निकालिए बच्चा सब को छत पर चढ़ाया जाए। यह सुनते ही पिताजी भड़क उठे-बंद करो बकवास। यहां ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। हमारा मोहल्ला इस शहर में सबसे ऊंची जगह पर है। यहां पानी का पहुंचना मुश्किल है। अगर यह डूब गया तो समझ लो शहर में कुछ भी दिखेगा नहीं। हमें पिताजी पर बेहद गुस्सा आया। हमने बैजू भइया के कान में कहा कि पिताजी के दफ्तर जाने के बाद वे हमें छत पर चढ़ा दें।
पिताजी के जाते ही एक जीप हमारे मोहल्ले में आई जिस पर लाउडस्पीकर से घोषणा की जा रही थी। कहा जा रहा था कि सब लोग आटा चावल माचिस किरासन तेल वगैरह का इंतजाम करके रख लें। लोग घबरायें नहीं। प्रशासन उनके साथ है। इस घोषणा का बैजू भइया ने यह अर्थ निकाला कि बाढ़ का आना निश्चित है। एक बार फिर हमारे सपने के हेलिकॉप्टर के पंखे हमारी आंखों के सामने फड़फड़ाने लगे। लेकिन मां पिताजी को लेकर चिंतित थी। वह उन्हें कोस रही थी कि आखिर वह ऑफिस क्यों चले गए। कहीं उधर ही फंसे न रह जाएं। इस बात को सोचकर हम भी परेशान हुए लेकिन हम चाहते थे कि बाढ़ जरूर आए।
शाम में पिताजी जल्दी आ गए। उन्हें देखते ही हम उन्हें घेरकर खड़े हो गए। पिताजी परेशान थे। उन्होंने कहा कि शहर में बाढ़ आ चुकी है। हमारा मोहल्ला पानी से घिर चुका है। उन्होंने बताया कि किस तरह वह दफ्तर से वह यहां तक आए। उनका कहना था कि वह आगे-आगे चल रहे थे और पानी पीछे-पीछे। कभी वह आगे पानी पीछे तो पानी आगे वह पीछे। खैर हमारे मोहल्ले के थोड़ा पहले ही आकर पानी ठहर गया।
हमें समझ में नहीं आ रहा था पिताजी के इस अनुभव के आधार पर हमें करना क्या है। तभी बैजू भइया ने फिर हमारे मन की बात रखी, बाल्टी लाइए बच्चा सब को ऊपर को चढ़ाते हैं। पिताजी ने बुझे स्वर में कहा, अभी रुक जाओ।
एक बार फिर हम मन मसोस कर रह गए। हम समझ नहीं पा रहे थे कि पिताजी आखिर चाहते क्या हैं। वह बाढ़ से डर भी रहे हैं लेकिन उससे बचाव का कोई उपाय भी नहीं कर रहे हैं। हम इस बारे में बैजू भइया से बात करना चाहते थे पर पिताजी ने भइया को हमसे दूर कर दिया और उन्हें लेकर सड़क पर टहलने लगे। आसपास के कई लोग भी जमा हो गए थे। सब बाढ़ की चर्चा में लगे थे। हमें घर से निकलने नहीं दिया जा रहा था। रात में डांट-डपटकर हमें जल्दी सोने को भेजा गया। मैं और मेरी बहन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि बाढ़ हमारे मोहल्ले में भी जरूर आए। प्रार्थना करते-करते कब हमारी आंख लग गई पता न चला। सुबह नींद खुलते ही हम बाहर भागे। हमें लगा कि कोई अद्भुत दृश्य हमारा इंतजार कर रहा है। पर बाहर सब कुछ रोज की तरह ही था। हम निराश हुए। पिताजी रेडियो सुन रहे थे। खबर में बताया जा रहा था कि पूरा शहर बाढ़ की चपेट में आ चुका है। राहत कार्य चलाने के लिए सेना को बुला लिया गया है।
साफ था कि हमारा मोहल्ला एक द्वीप में बदल चुका था। इसके चारों तरफ पानी आ चुका था पर हमलोग सुरक्षित थे। उस दिन से घर में छुट्टी का माहौल बन गया। स्कूल-कॉलेज और दफ्तर अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिए गए थे। हमारे घर में बैठकें जमने लगीं। लोग बताते कि वे बाढ़ का दृश्य देख कर आ रहे हैं। बहुत बुरी हालत है। पास के गांव में लोग पेड़ों पर लटके हैं। एक आदमी ने बताया कि गांधीनगर के निवासी छतों पर चले गए हैं। वहां हेलिकॉप्टर से खाना गिराया जा रहा है। यह सुनकर हमें गांधीनगर के लोगों से ईर्ष्या होने लगी। हमने सोचा कि काश हम भी गांधीनगर में रह रहे होते।
दो दिनों के बाद जो घटना घटी उसे कभी नहीं भूल सकता। दोपहर का समय था। हमारे घर के बरामदे पर कुछ लोग जमा थे। उनमें कुछ पिताजी के मित्र थे। कुछ नौजवान आसपास चहलकदमी कर रहे थे। उनमें बैजू भइया भी शामिल थे। भइया अपने गांव में बाढ़ के प्रसंगों की चर्चा कर रहे थे। हम भाई बहन अपनी खिड़की से उन्हें देख रहे थे। तभी आकाश में जोर की घड़घड़ाहट हुई। एक हेलिकॉप्टर हमारे घर के सामने के मैदान के ऊपर मंडराने लगा। सब लोग ऊपर देखने लगे। तभी बैजू भइया अचानक मैदान की ओर दौड़े और उन्होंने ऊपर की ओर हाथ से इशारा किया। हेलिकॉप्टर एकदम नीचे आने लगा। बैजू भइया चिल्लाए देखो ये नीचे आ रहा है। सब लोग मैदान में पहुंच गए। हम भी बाहर भागे। आसपास के घरों से और भी लोग निकलकर आ गए। मैदान में भीड़ जमा हो गई।
बैजू भइया ने फिर इशारा किया और एक अजीब सी आवाज निकाली। हेलिकॉप्टर और भी नीचे आकर धीरे-धीरे चक्कर काटने लगा। इतने करीब से हमने पहली बार हेलिकॉप्टर को देखा। दूर से तो वह एक चिड़िया जैसा दिखता था पर उस दिन उसे इस तरह करीब से देखना एक अद्भुत रोमांच पैदा कर रहा था। हवा में टंगी हुई इतनी बड़ी कोई आकृति हम पहली बार देख रहे थे। हमें लग रहा था जैसे हम अपने सपने के बेहद करीब आ गए हैं।
बैजू भइया ने लोगों से कहा, अरे वह उतरने वाला है आपलोग पीछे हटिए। सारे लोग पीछे हट गए। बैजू भइया इस तरह निर्देश दे रहे थे जैसे वह विमानन विशेषज्ञ। सारे लोग उनकी हर बात मान रहे थे, उन्हें आशा भरी नजरों देख रहे थे। वह सबके लिए एक पल में नायक बन गए थे।
लोगों ने बैजू भइया के कहने पर मैदान में उतनी जगह छोड़ दी जितने में हेलिकॉप्टर उतर सकता था। भइया समझा रहे थे देखिए कोई करीब नहीं आएगा। इसके उतरने के कुछ देर बाद तक इसकी पंखी घूमती रहती है। यह अपने चारों तरफ एक चक्रवात पैदा करता है। इसकी तेज हवा में कोई औंधे मुंह गिर भी सकता है। फिर उन्होंने महिलाओं की ओर घूमकर कहा, आप लोग और पीछे हटिए। और हां जरा अपनी साड़ी और ओढ़नी संभालके रखिएगा। हेलिकॉप्टर की हवा ये सब भी उड़ाने लगती है।
उनकी बात का किसी ने प्रतिवाद नहीं किया। लोग उन्हें एक ऐसा जादूगर समझ रहे थे जो अपने जादू से हेलिकॉप्टर जैसी करामाती चीज को आकाश से जमीन पर उतारने वाला हो। मुझे याद है उस वक्त वह बनियान और लाल रंग की लुंगी पहने हुए थे। हेलिकॉप्टर को देखते ही वह सुरती बनाने लगे थे। मुझे लगा कि वह हेलिकॉप्टर के नीचे उतरते ही पायलट को खैनी भेंट करेंगे। पिताजी कह रहे थे कि वह नहीं उतरेगा क्योंकि उस पर बैठे लोगों को पता चल गया है कि यह हिस्सा सूखा है। लेकिन भइया का कहना था कि वह जरूर उतरेगा। राहत बांटने वालों को अच्छी तरह पता है कि हमलोग पानी से घिरे हैं। फिर हम बाजार कैसे जा पाएंगे। इसलिए यह हेलिकॉप्टर हमारी जरूरतों की चीजें लेकर आया है।
पर हेलिकॉप्टर उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक क्षण के लिए वह बिल्कुल स्थिर हो गया। हमने उसकी खिड़की पर नजरें टिका रखी थीं। वहां कुछ हल्का काला सा हिलता नजर आ रहा था। लग रहा था जैसे कोई झांक रहा हो।
तभी बैजू भइया ने आवाज लगाई जल्दी करो। एक लाठी लेकर आओ। उनके साथियों ने दौड़कर उनके आदेश का पालन किया। लोगों की उत्सुकता बढ़ी। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस लाठी का क्या होगा।
न जाने कहां से लाठी लाई गई। बैजू भइया ने लाठी नीचे रख दी फिर एक झटके में अपनी लुंगी उतार डाली। सब हतप्रभ रह गए। भइया अंदर से लंगोट पहने थे। मैं उन्हें इस हाल में देखकर जोर से हंसे लेकिन किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। भइया को भी इस बात का जरा भी ख्याल न था कि वह अब सिर्फ लंगोट में हैं। उन्होंने जल्दी से लाठी में लुंगी बांधी और उसका झंडा तैयार किया। लंगोटधारी बैजू भइया हाथ में झंडा लेकर लहराने लगे। वह बार-बार सिर उठाकर ऊपर देख रहे थे। वह हेलिकॉप्टर को रुकने का इशारा कर रहे थे। वह उस वक्त किसी दूसरे ग्रह के प्राणी लग रहे थे। वह आकाशी यातायात नियंत्रणकर्ता बन गए जो हेलिकॉप्टर को लाल सिगनल दिखा रहे थे।
पर हेलिकॉप्टर सवारों का इरादा समझ में नहीं आ रहा था। हेलिकॉप्टर बार-बार नीचे आने को होता फिर ऊपर उठकर चक्कर काटने लगता। जब वह नीचे आता तो सब लोग जोर से चिल्लाते लेकिन ज्योंही ऊपर उठता चुप्पी पसर जाती। बैजू भइया के चेहरे पर कभी खुशी तो कभी हताशा झलक जाती। यह खेल पंद्रह-बीस मिनट चला। फिर चक्कर काटता हुआ हेलिकॉप्टर आसमान में ऊपर उठा और तेजी से उड़ता हुआ गुम हो गया। सभी मायूस हो गए। लोगों की नजरें बैजू भइया को खोजने लगीं पर वह भी हेलिकॉप्टर की तरह ही गुम हो गए।
हम घर लौटे तो देखा कि बैजू भइया चुपचाप बैठे हुए हैं। उनकी आंखें कहीं शून्य में टंगी थी। पहली बार उन्हें हमने इस तरह खामोश देखा। हमारे टोकने पर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। मुझे याद है उस रात बैजू भइया को मां और पिताजी दोनों ने खूब फटकारा था। भइया कुछ नहीं बोले। डांट सुनकर चुपचाप चले आए। वह बिस्तर पर बैठकर सुरती लगाने लगे। फिर मुझसे इतना ही कहा, ई सुरती कोई न कोई खेल दिखाएगी जरूर आज नहीं तो कल।
कुछ दिनों बाद पिताजी ने उनसे कहा कि वह किसी और लायक नहीं हैं इसलिए ड्राइवरी सीख लें। बैजू भइया ड्राइवर बन गए। वह किसी ऐसे व्यापारी की गाड़ी चलाने लगे जो थोड़ी बहुत राजनीति भी करता था और उस दल का सदस्य था जो उस वक्त विपक्ष में था। उसकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कुछ भी न थी पर अपने व्यवसाय की रक्षा के लिए उसने पार्टी की सदस्यता ले रखी थी और उसे चंदे देता था। नौकरी की शुरुआत करने के कुछ दिनों तक भइया हमारे साथ ही रहे। वह बताते थे कि जब भी वह ड्राइङ्क्षवग सीट पर बैठते हैं तो उन्हें लगता है कि वह हेलिकॉप्टर चला रहे हैं। गाड़ी जब किसी पुल से गुजरती तो उनका यह अहसास और गहरा हो जाता। उन्हें लगता वह अब कुछ ही देरों में बादलों की सैर करने वाले हैं।
तभी उनकी सुरती ने अपना खेल दिखाया। हुआ यह कि विपक्षी दल ने सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एक बड़ी रैली आयोजित की। बैजू भइया के मालिक ने कई गाड़ियां मुहैया कराईं। बैजू भइया को भी इस काम में लगाया गया। उन्हें पास के कस्बों से लोगों को राजधानी लाना था। वह दो दिन से इस काम में लगे थे। संयोग से विपक्ष के सबसे बड़े नेता की गाड़ी खराब हो गई। वह पास के एक कस्बे से राजधानी आ रहे थे। आनन-फानन में बैजू भइया की गाड़ी से लोगों को उतारा गया और नेताजी को बिठाया गया। बैजू भइया तो इसी ताक में थे। उन्होंने ताड़ लिया कि नेताजी खैनी प्रेमी हैं। उन्होंने बहाने निकाल-निकाल कर गाड़ी रोकी और नेताजी को सुरती का स्वाद चखाया। नेताजी ने उसी समय तय कर लिया कि वह बैजू भइया को अपना ड्राइवर बनाएंगे।
और इसी के साथ भइया की जिंदगी ने उड़ान भरी। इधर बैजू भइया नेताजी के साथ लगे और उधर राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया। नेताजी मंत्री बन गए। अब वह हमारा घर छोड़कर नेताजी के मकान में रहने चले गए। वह कभी-कभी हमसे मिलने आते। अब उनके प्रति मां और पिताजी दोनों का व्यवहार काफी बदल गया था। भइया अक्सर हमारे लिए खाने-पीने का सामान लेकर आते थे। हेलिकॉप्टर का भूत उनके सिर से तब भी नहीं उतरा था। उन्होंने बताया कि मंत्री जी ने उन्हें हेलिकॉप्टर पर घुमाने का वादा किया है। भइया पिताजी को मंत्री जी के घर के बारे में बताते रहते थे। हम भी सुनते पर हमें कई बातें समझ में नहीं आती थीं। हमने एक-दो बार बैजू भइया को उस दिन की याद दिलाई जब उन्होंने हमारे घर के सामने के मैदान में हेलिकॉप्टर को उतरवाने की कोशिश की थी। बैजू भइया पहले थोड़ा झेंपे फिर उन्होंने कहा , आने दो बाढ़। इस बार हम मंत्रीजी के साथ हेलिकॉप्टर लेकर आएंगे।
धीरे-धीरे उनका आना कम हो गया। घर में उनकी चर्चा कम होने लगी लेकिन मैं उन्हें भुला नहीं पाया। उनके किस्से याद आते। काफी समय के बाद एक दिन पिताजी ने बताया कि बैजू भइया को नेताजी ने अपना पीए बना लिया है। मैं बहुत खुश हुआ हालांकि घर के और लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। हां, कुछ दिनों बाद मां ने अपनी दूर की किसी बहन की बेटी का रिश्ता बैजू भइया के साथ करने की चर्चा छेड़ी पर पिताजी ने कोई रुचि नहीं ली। मुझे याद है पीए बनने के बाद एक बार भइया आए थे तो मां ने उनकी खूब आवभगत की थी। उनके लिए खूब पकवान बनाए थे। यह देखकर मुझे वे दिन याद आ गए जब भइया हमारे साथ रहते थे। उस दौरान कई बार ऐसा होता था कि भइया जब दोबारा सब्जी मांगते तो मां झूठमूठ कह देती कि अब खत्म हो गई है। लेकिन भइया के व्यवहार में मां और पिताजी के प्रति सम्मान में जरा भी कमी नहीं आई।
भइया के पीए बनने की खबर फैलते ही मोहल्ले में हमारी इज्जत बढ़ गई थी। अकसर लोग मां और पिताजी से भइया का हालचाल पूछते रहते थे। कुछ लोग तो पिताजी के पास नौकरी मांगने पहुंच गए। एक दिन अखबार में मंत्रीजी के साथ भइया की भी फोटो छपी थी। भइया की तरक्की से मैं बेहद प्रसन्न होता था क्योंकि मुझे लगता था कि शायद अब हेलिकॉप्टर में घूमने का सपना पूरा हो जाए। पिताजी के ऊपर मां या हमारे कुछ रिश्तेदारों या मोहल्ले का लोगों का दबाव रहता था कि वे बैजू भइया से संबंध बनाए रखें और उनका लाभ उठाएं पर पिताजी ने कभी इसकी कोशिश नहीं की। उन्हें राजनीति और राजनेताओं से चिढ़ था। वह इसी बात से संतुष्ट थे कि बैजू भइया रोज-रोजगार में लग गए। मुझे याद है एक बार हमारे घर मंत्री जी के यहां से दावत का निमंत्रण पत्र आया था। मां जाने को उत्सुक थी पर पिताजी ने साफ मना कर दिया। बैजू भइया का कोई प्रसंग छिड़ने पर वह बात बदल देते थे।
पर गांव के लोग तो जैसे उन पर टूट ही पड़े थे। रोज कोई न कोई गांव से हमारे घर आ धमकता। कोई या तो उनसे पहले मिलकर हमारे पास आता या कोई हमारे यहां डेरा जमाता और बाद में बैजू भइया के दर्शन करने जाता। ऐसे लोगों से भइया के बारे-बारे में तरह-तरह की बातें सुनने को मिलती थीं। उनकी बातें सुनकर मुझे लगता जैसे मेरे गांव का हर आदमी एक कथावाचक है। कल तक जो उनका मजाक उड़ाते थे वही उनके गुन गाने लगे थे। वे बताते कि भइया ने करोड़ों की संपत्ति जमा कर ली है। गांव में वह अंधाधुध जमीन खरीदे जा रहे हैं। इसी शहर में उनके कई मकान हो गए हैं। वह एक ऐसा मकान बनवा रहे हैं जिसमें आंगन और अहाते तक में संगमरमर लगा होगा। लोग कहते कि मंत्रीजी से कोई काम कराना हो तो पहले बैजू भइया से मिलना होता है। मंत्रीजी काम कराने के पैसे बैजू भइया के माध्यम से ही लेते हैं।
वे यह भी बताते कि बैजू भइया के लिए बड़े-बड़े परिवारों से रिश्ता आ रहा है। बड़े-बड़े अफसर व्यापारी और नेता उनसे रिश्ता जोड़ने को इच्छुक हैं। लेकिन बैजू भइया वहीं शादी करेंगे जहां मंत्रीजी कहेंगे।
पिताजी इन बातों से चिढ़ जाते थे। एक बार तो हरी चाचा और उनमें बैजू भइया को लेकर बहस छिड़ गई। पिताजी ने कहा कि बैजू ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि वह बुनियादी रूप से भला और ईमानदार आदमी है। इस पर चाचा ने कहा कि वह अगर भला और ईमानदार होता तो अब तक मंत्रीजी के पास टिका ही नहीं रहता। फिर हरी चाचा ने कहा कि कमाने में हर्ज ही क्या है। वह बैजू भइया को सही ठहराने लगे। इसके बाद बहस नैतिकता के सवाल पर शुरू हो गई। इस गर्मागर्म बहस का एक नतीजा तो यह निकला कि हरी चाचा दूसरे ही दिन बोरिया-बिस्तर बांधकर चल दिए। उसका मैसेज दूसरे लोगों के बीच भी गया और गांव के लोगों ने हमारे यहां आना बंद कर दिया। अब वे सीधे बैजू भइया के यहां जाने लगे। लेकिन एक दूसरा असर भी हुआ। पिताजी के बारे में यह प्रचारित हो गया कि वह बैजू भइया की तरक्की से जलते हैं।
एक समय ऐसा आया कि हम बैजू भइया को लगभग भूल ही गए। पिताजी का तबादला दूसरे शहर में हो गया। हम भाई बहन अपनी पढ़ाई में मशगूल हो गए। हमारे नए दोस्त बन गए। नए शहर में आने के बाद पुराने शहर की स्मृति धुंधली हो गई। लेकिन तभी हमारे प्रदेश में जबर्दस्त बाढ़ आई और इसी के साथ फिर चर्चा में आए बैजू भइया। हमलोग जिस शहर में अब थे वहां बाढ़ का कोई खतरा नहीं था लेकिन हम अखबारों में अपने गांव का हाल-समाचार पढ़ते रहते थे। हर बार की तरह हमारा गांव फिर बाढ़ की चपेट में आ गया था। मुझे लगा कि हमारे गांव के लोगों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि बैजू भइया सत्ता में हैं।
एक दिन रेडियो पर समाचार में हमने सुना कि विपक्ष ने सरकार पर राहत कार्य में अनियमितता का आरोप लगाया है। फिर कुछ दिनों बाद बाढ़ राहत घोटाले का हल्ला सुना। मामला दिल्ली तक पहुंच चुका था। संसद में भी इसे लेकर रोज हल्ला होने लगा। एक दिन खबर आई कि राज्य के बाढ़ घोटाले की सीबीआई से जांच की मांग को लेकर विपक्ष ने संसद की कार्रवाई का बहिष्कार किया है। कुछ ही दिनों बाद सीबीआई के छापे का समाचार आया। छापा राहत एवं पुनर्वास मंत्री के निजी सचिव वैद्यनाथ प्रसाद यानी बैजू भइया के घर पड़ा था। उनके घर से धोती-साड़ी कंबल और बहुत सारी चीजें बरामद हुईं। कहा गया कि ये सारी चीजें बाढ़ पीड़ितों को बांटी जानी थी पर बैजू भइया ने यह सब अपने पास दबा लिया। उन्होंने राहत कार्य के काफी पैसे अपने खाते में जमा करा लिए थे।
उसी दिन राहत एवं पुनर्वास मंत्री का बयान आया कि उन्हें अपने सचिव की इन हरकतों की कोई जानकारी नहीं है। फिर भी अपने सचिव की इस करतूत से शर्मिंदा हैं और इसलिए नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देते हैं। अखबारों ने दूसरे दिन संपादकीय में मंत्रीजी की खिंचाई की थी और यह सवाल उठाया था कि बगैर मंत्री कीशह के कोई आदमी इतना बड़ा घोटाला कर सकता है। उन्होंने मंत्री के इस्तीफे को एक ड्रामेबाजी बताते हुए उन्हें भी अभियुक्त बनाने की मां की थी। लेकिन सीबीआई जांच बैजू भइया और दूसरे कुछ लोगों के खिलाफ चल रही थी। अपोजीशन ने भी मंत्री को कठघरे में खड़ा किया था। अब बहुत कुछ बैजू भइया के बयान पर निर्भर था।
दूसरे दिन राजधानी की सड़कों पर लोगों ने एक अद्भुत नजारा देखा। देखा कि पचास-साठ नौजवान हाथ में हॉकी स्टिक, लाठियां और पिस्तौल लिए नारे लगाते हुए चले जा रहे थे। वे सब सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता थे। वे राहत और पुनर्वास मंत्री के समर्थन में नारे लगा रहे थे और उनसे इस्तीफा वापस लेने की मांग कर रही थे। उन्होंने हवा में अंधाधुंध गोलियां फायर की। दुकानों के शीशे तोड़ डाले। न जाने उन्होंने कितनी लड़कियों की चुन्नी खींची और रेहड़ी वालों को लूट लिया। वे जिधर से गुजरते दुकानों के शटर अपने आप बंद होने लगते, पुलिस वाले उन्हें देखते तो मुंह फेर लेते या इधर-उधर कहीं सरक लेतेे। रात में खबर आई कि मुख्यमंत्री ने भारी जनदबाव को देखते हुए राहत एवं पुनर्वास मंत्री का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। उन्होंने जनता को वचन दिया कि बाढ़ राहत घोटाले के अभियुक्तों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा।
पिताजी काफी उद्विग्न थे। कल तक वह बैजू भइया की किसी भी चर्चा से परहेज करते थे लेकिन अब वे उनसे मिलने के लिए उत्सुक हो गए। उन्होंने छुट्टी ले ली और मां के मना करने के बावजूद भइया से मिलने राजधानी चले गए, जहां वह न्यायिक हिरासत में थे। जाना तो मैं भी चाहता था पर अपने मन की बात पिताजी से कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। पिताजी दो दिनों के बाद लौटे। उन्होंने भइया से अपनी मुलाकात की जो बातें बताईं वह हमारे लिए किसी अजूबे से कम नहीं थीं। एक भयावह दुनिया हमारे सामने धीरे-धीरे खुल रही थी।
भइया ने पिताजी को बताया कि मंत्रीजी ने कहा है कि वह उन्हें जल्दी ही छुड़ा लेंगे। विपक्ष का हंगामा थमते ही यह मामला पूरी तरह ठंडा हो जाएगा। भइया ने अपने गांव की भगवती की कसम खाकर कहा कि उन्होंने एक पैसे की गड़बड़ी नहीं की है। वो तो पार्टी के कुछ लोगों ने सारा सामान उन्हें अपने घर पर रखने को कहा था। भइया की हेलिकॉप्टर में घूमने की मुराद पूरी हो गई थी। लेकिन यह अनुभव दुखद रहा। जब उन्होंने ऊपर से बाढ़ में अपने गांव को डूबे देखा तो उनके होश उड़ गए। उन्हें पहली बार लोगों के दर्द का अहसास हुआ। उन्हें समझ में आया कि बाढ़ की विभीषिका क्या होती है। भइया यह कहकर रो पड़े कि जो सामान या पैसा जरूरतमंदों को मिलना चाहिए था वह किसी और की जेब में जा रहा है। वह पैसा मौज-मस्ती पर उड़ाया जा रहा है।
यह सब बता देने के बाद पिताजी खामोश हो गए। फिर वह भुनभुनाए, अरे सब नौटंकी है। अगर बैजू को यह सब गलत लगता है तो वह क्यों पड़ा हुआ है उन लोगों के साथ। मुझे थोड़ी हैरानी हुई। क्या पिताजी भी बैजू भइया को गलत मानने लगे थे? उस दिन से मैं बड़े ध्यान से अखबार पढ़ने लगा। एक-एक कोना छान मारता। देखता कि बैजू भइया की कोई खबर तो नहीं छपी है। कुछ दिनों बाद एक खबर देखी कि बैजू भइया रिहा हो गए। मुझे बड़ी खुशी हुई। फिर यह मामला सचमुच ठंडा पड़ गया। लेकिन मैंने अखबार में बैजू भइया की खबर तलाश करने का अपना अभियान जारी रखा। और एक दिन ऐसी खबर पढ़ी कि मेरे होश उड़ गए। खबर की हेडिंग थी- राहत एवं पुनर्वास मंत्री के निजी सचिव लापता। समाचार था कि बैजू भइया काफी दिनों से लापता हैं। उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई गई है। इस खबर पर पिताजी ने बस इतनी ही प्रतिक्रिया दी-इन लोगों का खेल समझ में नहीं आता है। मुझे यही लगा कि बैजू भइया गायब हुए नहीं वह जरूर कहीं छिपे हुए होंगे। हो सकता है गांव में ही हों।
संयोग से कुछ ही दिनों बाद अपनी एक चचेरी बहन की शादी में गांव जाना हुआ। तब तक बाढ़ का पानी उतर गया था और जिंदगी पटरी पर लौट चुकी थी। वहां हर कोई बैजू भइया की ही बात कर रहा था। सबसे पहले जो लोग मिले उन्होंने यही बताया कि बैजू भइया जानबूझकर छुपे हुए हैं। जब तक घोटाले की जांच चल रही है वह इसी तरह लापता रहेंगे। ऐसा मानने वालों का यहां तक कहना था कि वह शादी के दिन लड़की को आशीर्वाद देने प्रकट होंगे। एक हेलिकॉप्टर रात में आएगा। उससे बैजू भइया प्रकट होंगे, ढेर सारे उपहारों के साथ।
लेकिन उनके बारे में एक राय यह भी थी कि बैजू भइया इस देश में हैं ही नहीं। वह दुबई चले गए हैं। वहां वे कारोबार कर रहे हैं और शानदार जीवन जी रहे हैं। ऐसा बताने वालों ने फुसफुसा कर कहा कि घोटाले का सारा पैसा बैजू भइया ने दबा लिया और खिसक लिए। मैं भारी उलझन में था कि आखिर सचाई क्या है। बैजू भइया के पिता यानी हमारे रामउदार चाचा पिताजी से मिलने आए। मैं पहली बार उन्हें देख रहा था। मैं समझ गया कि बैजू भइया अपने बाप पर गए हैं। राम उदार चाचा भी बैजू भइया की तरह ही गर्दन हिला-हिलाकर बात करते थे। उसी तरह मुस्कराते थे। उन्होंने पिताजी से बताया कि वह बैजू भइया को लेकर चिंतित हैं। पता नहीं मामला क्या है। गांव के लोग तरह-तरह की बातें उड़ा रहे हैं। राम उदार चाचा ने बताया कि पीए बनने के बाद बैजू भइया सिर्फ एक बार गांव आए। उन्होंने चाचा और चाची से वादा किया कि अगली बार जब आएंगे तो उन्हें भी अपने पास शहर ले जाएंगे। राम उदार चाचा ने बताया कि लोग कहते हैं कि बैजू भइया के पास बहुत पैसा है लेकिन उन्हें तो ऐसा नहीं लगता।
पिताजी ने चाचा को भरोसा दिलाया और कहा कि कई बार राजनीतिक मजबूरी के कारण लोगों को इस तरह के नाटक करने पड़ते हैं। बैजू भइया जल्दी ही आ जाएंगे। लेकिन शादी की सुबह पुलकित भइया ने जो कुछ बताया उसे सुनकर मैं सिहर उठा। उन्होंने एक ऐसी घटना का जिक्र किया जो तब घटी जब बाढ़ का पानी चढ़ा ही हुआ था। गांव की नदी उफन रही थी। गांव के कुछ लोगों ने एक ऊंची जगह पर शरण ले रखी थी। शाम का वक्त था। लोगों को आकाश में एक हेलिकॉप्टर नजर आया जो धीरे-धीरे नीचे आ रहा था। लोगों को लगा कि कोई नेता मुआयना करने आया होगा या फिर खाने-पीने का सामान गिराया जाएगा। लोग इस आशा में ऊपर देखने लगे। लेकिन तभी एक पल के लिए हेलिकॉप्टर आकाश में ठहरा और उसमें से एक बड़ी आकृति बाहर आई। हल्के अंधेरे में पहले तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन कुछ ही क्षणों में पता चल गया कि यह कोई आदमी है। या तो वह कूदा है या उसे मारकर गिरा दिया गया है। टीले पर खड़े जोखन महतो यह देखते ही पानी में कूद पड़ा। वह तैरना जानता था उसने उस दिशा में तेजी से तैरना शुरू किया जहां वह आदमी गिरा था। एक समय ऐसा आया कि वह उस आदमी के बेहद करीब पहुंच चुका था। उसने देखा कि उसके हाथ और पैर बंधे हुए हैं। लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था कि जोखन की पकड़ से वह लाश छूट गई। जोखन को ठहर जाना पड़ा। वह लौटकर टीले तक आया और दहाड़ मारकर रोने लगा। उसने बताया कि वह लाश बैजू भइया की थी। यह बात किसी तरह मोती मल्लाह तक पहुंचाई गई। उसने कहा कि वह सुबह में तलाश करेगा। अगले दिन मोती मल्लाह अपने कुछ साथियों के साथ पानी में काफी दूर तक चला गया पर उसे कहीं कुछ नहीं मिला। जोखन महतो और मोती मल्लाह ने तय किया कि यह बात पुलिस को बताई जाए। वे लोग किसी तरह थाने पहुंचे। थाना भी आधा डूब चुका था। थाना प्रभारी ने बाढ़ आते ही गांव छोड़ दिया था। एक सिपाही रह गया था जो पास के किसी घर में ठहरा हुआ था। बड़ी मुश्किल से उसे खोजा गया। जोखन महतो ने उसे बताया कि उसने बैजू भइया की लाश देखी है। पहले तो सिपाही ने जोखन महतो का मजाक उड़ाया लेकिन जोखन अड़ा हुआ था। फिर सिपाही ने अपनी जेब से एक बटुआ निकाला और उसे थोड़ा गांजा दिया और कहा कि वह इसे पीये और इस बात को भूल जाए। जोखन को कई दिनों से गांजा नहीं मिला था। सो उसने गांजा लिया और चला आया। लेकिन नशा टूटते ही उसने यह बात सबको बताई पर किसी ने उसकी बात नहीं मानी।
मैं भी नहीं मानता। पिताजी ने कहा।
लेकिन जोखन महतो ने अपनी आंख से देखा। पुलकित भइया बोले।
तुमने तो नहीं देखा न फिर कैसे कह सकते हो। हेलिकॉप्टर से ऐसे किसी को फेंकना आसान है क्या। पिताजी की इस बात से मैं भी सहमत था। लेकिन पुलकित भइया अपने स्टैंड पर अड़े हुए थे। उन्होंने कहा, देखिए यह सब कई लोगों ने देखा है। जोखन महतो ने एकदम करीब से देखा था। जोखन बैजू भइया के बचपन का साथी रहा है। उससे भूल हो ही नहीं सकती।
पिताजी ने कुछ सोचते हुए कहा, लेकिन बैजू का मर्डर क्यों होगा।
इसलिए कि घोटाले में वह ज्यादा कमीशन मांगने लगे थे। पुलकित भइया ने इस तरह कहा जैसे उन्हें सब कुछ मालूम हो।
तुम ऐसा कैसे कह सकते हो। पिताजी ने आपत्ति की।
हमारे हॉस्टल में सब लोग यही कह रहे थे। पुलकित भइया की इस बात पर पिताजी कुछ सोचने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने कहा, ऐसा भी तो हो सकता है कि बैजू को इसलिए मरवा दिया गया क्योंकि वह घोटाले का विरोध कर रहा हो। उसने धमकी दी हो कि सारा भेद खोल कर रख देगा। इस डर से उसे खत्म कर दिया गया।
पुलकित भइया पिताजी का मुंह देखने लगे। लेकिन थोड़ी देर अपनी ही बात को काटते हुए पिताजी ने कहा, वैसे मुझे यह सब बकवास लगता है। हेलिकॉप्टर से क्यों फेंकेगा।... इस गांव का हर आदमी केवल गप्प बनाना जानता है।
लेकिन पिताजी के चेहरे से लग रहा था कि उन्हें भी थोड़ा बहुत संदेह हो रहा था।
पुलकित भइया बोले, भगवान करे। आप सही कह रहे हों। वैसे गांव का कोई आदमी मेरी बात नहीं मानता। अच्छा है गांव वाले न मानें।
शादी के दौरान कई लोग बार-बार आकाश की ओर देख रहे थे। उन्हें पक्का भरोसा था कि एक हेलिकॉप्टर से बैजू भइया प्रकट होंगे। एक बार तो जोर से घड़घड़ाहट भी हुई। लोग तेजी से इधर-उधर भागे और ऊपर देखने लगे। लेकिन यह बादल की गरज थी।
शादी के बाद हमलोग लौट आए। एक बार फिर बैजू भइया का प्रसंग समाप्त हो गया। मैं जब पिताजी से चर्चा करता तो वह झुंझला कर बोलते, तुम्हें क्या मतलब है इस सब से। पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दो। लेकिन मैं अखबार में उनसे जुड़ी खबर खोजता रहता। काफी दिनों बाद पता चला कि बाढ़ घोटाले की सुनवाई फिर से शुरू हो गई है। इस मामले में कुछ और लोग गिरफ्तार हुए थे। लेकिन राहत एवं पुनर्वास मंत्री की गिरफ्तारी की मांग हो रही थी। फिर खबर यह आई कि बैजू भइया के पिताजी ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि उनके बेटे को खोजा जाए। उन्होंने नेताजी पर अपने बेटे को गायब करने का आरोप लगाया। उनकी इस प्रार्थना पर कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह बैजू भइया को खोजे।
पुलिस बैजू भइया का अब भी पता लगा रही है। मैं पढ़ाई करने दिल्ली आ गया और फिर नौकरी भी करने लगा लेकिन भइया का कुछ भी पता न चला। जोखन महतो कहता है कि वे बुचिया नदी की गोद में सो गए। पर बैजू भइया की मां को भरोसा है कि उनका बेटा जिंदा है। एक बार एक साधु उनसे मिलने आया था। उनकी मां ने कहा कि वह बैजू भइया थे। बाढ़ घोटाले का मामला दब चुका है। नेताजी का राजनीतिक कद और बढ़ चुका है। उन पर अपने पीए के अपहरण और हत्या का मामला अब भी चल रहा है पर वह उसे विरोधियों की साजिश करार देते हैं।
हर हेलिकॉप्टर मुझे बैजू भइया की याद दिलाता है। पहले तो लगता है कि थोड़ी ही देर में हेलिकॉप्टर उतरेगा और उसमें से बैजू भइया निकलेंगे, मुस्कराते हुए सिर हिलाते हुए। लेकिन तभी इस तस्वीर को धकियाकर एक दूसरी भयावह तस्वीर सामने आती है। मैं देखने लग जाता हूं बैजू भइया को औंधे मुंह गिरते हुए और एक विशाल जलधारा में विलीन होते हुए।