व्यंग्य-विनोद
दूल्हे बने, घोड़ी चढ़े
- सुरजीत सिंह
देव उठे। बैंड बजे। दूल्हे बने। घोड़ी चढ़े।
अब जिसने एक बार घोड़ी पर चढऩा तय कर लिया है, उसे 'गधा' बनने से कौन रोक सकता है। देर-सवेर गले में जिम्मेदारियों की लगाम पड़ जानी है और फिर बिन थके अहर्निश चलते ही रहना है, कोल्हू के बैल की तरह।
दोस्त, तुम भला क्यों मानोगे नेक सलाह, अगर तुम्हें कोई दे इस समय! क्योंकि तुम तो हनीमून प्लान कर टिकट भी बुक करा चुके हो। शादी का लड्डू जो फूट चुका है तुम्हारे मन में, सर्वस्व गंवाकर भी चखने को लालायित हो! इस समय हर सलाह तुम्हारे लिए हास्यप्रद ही होगी। हर आईने में तुम्हें अपने सिर सजा सेहरा ही दिखेगा। यही लगेगा जैसे तुम्हारे जीवन में आने वाले मधुमास को उजाडऩे का षड्यंत्र रच रहे हैं सब।
खैर! दोष किंचित मात्र तुम्हारा नहीं। यह वेला ही ऐसी है, जो आ गई है तुम्हारे जीवन में, जिसका जादू सिर चढ़ा है इस समय। रस्मों के अदृश्य जाल में फांस लिया गया है तुम्हें। यह अलसभोर का स्वपन है, जब तक टूटेगा बहुत देर हो चुकी होगी। बैंड की मधुर स्वर लहरियां मन-मस्तिष्क से छंटते ही कर्कश ध्वनियों का शोरगुल तुम्हारी शहदी तंद्रा को भंग करेगा। जब गधा बने होंगे, तब घोड़ी चढ़े दिन याद आएंगे कि आह! किस मनहूस घड़ी चढऩे का दुस्साहस कर बैठे थे। हे देव, तुम उठे ही क्यों थे कि कैलेण्डर में एक तारीख मुकर्रर कर शेष जिंदगी की आजादी छीन लेने का इतना बड़ा षड्यंत्र रचा गया। राशिफल तक ने सुखद भ्रम रचा कि आज का दिन वैवाहिक कार्यों के लिए शुभ रहेगा। क्या खाक शुभ हुआ!
अभी जो हल्दी लगवा रहे हो, मेहंदी की खुशबू कल्पनाओं को परवाज दे रही है, है ना! होता है! एक दिन ऐसा भी आएगा, जब इन रंगों से एलर्जी हो जाएगी। हर मेहंदी लगा हाथ ढाई किलो का हाथ सा पड़ेगा। यह तुम्हारे लिए एक अनुभव होगा, जो हादसे से गुजरकर तुम हासिल करोगे और फिर दूसरों को 'शादी के साइड इफेक्ट' जैसी नेक सलाह देने की अर्हता अर्जित कर लोगे। बड़े-सयाने सही कहते हैं कि हर अनुभव कीमत मांगता है! वही कीमत आज तुम अदा कर रहे हो!
अरे दिमाग की कुंडी खोलकर सुनो, आगत खतरे की घंटी! जो बैंड के शोरगुल में खो गई है, शायद बैंड बजवाने का मंतव्य भी यही है कि कोई भी खतरे की घंटी और नेक सलाहें तुम्हारे कानों तक नहीं पहुंच पायें!
यह क्या, तुम तो दूल्हा बनने को किसी बच्चे सा मचलने लगे हो, हल्दी लग चुकी, तेल उतारा जा रहा है और सजने की क्रिया आरम्भ हो चुकी है, जिसकी प्रतिक्रिया बाद में होगी। कमर में बंधी कटार, किराये पर लाई शेरवानी, गले में मोतियों की माला, मस्तक पर लम्बा टीका, पांवों में रजवाड़ी जूतियां, हाथ में तलवार, सिर पर सजा सेहरा, उसमें मोर सी टंगी कलंगी! सजाने को इर्द-गिर्द अनुभवी जीजा लोग! जो खुद इस हादसे से गुजरकर यहां तक पहुंचे हैं और मौनवत तुम्हें उस कुएं में धकेलने का षड्यंत्र कर रहे हैं। उनके अधरों पर उभर आई मुस्कान में बड़े रहस्य छुपे हैं, जो तुम्हें इस समय दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस समय तुम खुद को किसी रियासत के महाराजा से कम क्या समझ रहे होंगे? मन मयूर नृत्य को उतावला है, घोड़ी चढऩे से पूर्व तुम खुद को रोक नहीं पाए और चढऩे से पूर्व ठुमक ही पड़े। यह तो तुम्हारे नाचने का श्रीगणेश था, इसके बाद सारी उम्र तुम्हारी नाचते ही गुजरेगी, बस इशारे कहीं ओर से होंगे।
ओह, तुम्हें यह सब समझाना तो अंधे को आईना दिखाने जैसा है, बहरे को गीत सुनाने जैसा है! अब तुम चल पड़े हो। मंदिरों में ढोक देते। घोड़ी पर बैठे। मंद-मंद मुस्काते। सपनों में खोये। आगे-आगे बैंड। नृत्य कौशल से बांध लेने की चेष्टा करते मित्र। (ऐसे मित्र हों तो दुश्मनों की क्या जरूरत है) पीछे-पीछे मंगलगान करता महिला वृन्द। निरन्तर होती पुष्प वर्षा। यही समय समझ और मूर्खता का क्षितिज है, जब बुद्धि कुछ क्षण के लिए घास चरने चली जाती है। उसे पार कर तुम तोरण द्वार पर खड़े हो, तीर पर चढ़े कमान की तरह तने। मन में एक विजित भाव है। तुम क्या जानों दूल्हे राजा, जीत तो तुम्हें लिया गया है इस समय।
अभी तुमने वरमाला डाल दी, बदले में अपनी गर्दन भी प्रस्तुत कर दी। बस, तुम्हारी आखिरी लाइफ लाइन भी समाप्त हुई। बावले, यह वरमाला नहीं, फंदा है, जो तुमने सहर्ष पहना है। यह तो सिर्फ नजरों का धोखा है कि तुम्हें उसमें गुलाब, गेंदे, गुलझारे के फुल नजर नजर आ रहे हैं। तोरण द्वार पर अकड़े खड़े तुम तनिक पलटकर देख लेते तो यह देखकर सारे तेवर ढीले पड़ जाते कि नाचने वाले तुम्हें इनके हवाले कर नौ दो ग्यारह हो चुके हैं। जैसे वे अपने षड्यंत्र में कामयाब हुए। उनका उद्देश्य तो बकरे को हलाल करना था।
उसके बाद तो तुम किसी अदालत में फरियाद लगाने लायक भी नहीं बचे कि मी लॉर्ड, इन नाचने वालों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए! यही वे लोग हैं, जिन्होंने षड्यंत्रपूर्वक मुझे अपनी नृत्य विधा से इस कदर सम्मोहित कर दिया कि घोड़ी चढऩे के बाद का मुझे कुछ भी याद नहीं रहा और जब चेतना लौटी तो खुद को कोल्हू के बैल के रूप में जिम्मेदारियों का भार खींचते पाया। उस एक विवेक भरे क्षण में, मुझे गुमराह करने के ये तमाम लोग दोषी हैं।
इसलिए मित्र सुनो, हो सके तो पल गंवाए बिना कूद पड़ो और भाग छूटो! इस समय न सोचना ही भविष्य में तुम्हारे सोचने की सबसे बड़ी उपलब्धि साबित होगी।
लेकिन तुम क्या भागोगे, वर? तुमने अभी-अभी जो मांग भरी है, इसकी भरपाई अब ताउम्र नाना प्रकार की मांग भरते-भरते करनी है। जिंदगी को अब ईएमआई समझो! इसी को कहते हैं, आ बैल मुझे मार, अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारना!
मुझे पता है इस समय दुनिया की सारी दलीलें, सलाहें, समझाइश तुम्हारी जिद के आगे फीकी पड़ेंगी। आखिर तुम उस कहावत पर अड़े हो कि शादी का लड्डू खाये जो पछताये, न खाये वो पछताये! जब पछताना ही है, तो क्यों न लड्डू खाकर पछताया जाये?
खाओ-खाओ! पछताने को तो पूरी जिंदगी पड़ी है!
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- सुरजीत सिंह,
36, रूप नगर प्रथम, हरियाणा मैरिज लॉन के पीछे,
महेश नगर, जयपुर -302015
(मो. 09680409246,surjeet.sur@gmail.com)