जापान की माँ सरस्वती Swati Shukla द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जापान की माँ सरस्वती

जापान में भी होती है हिन्दू देवताओ की पूजा –

जापान में देवी देवताओ की पूजा का अत्यंत महत्व है ! इस प्रथा की शुरुवात चीन से होते हुए पहुंची है! भारत में देवी सरस्वती की पूजा बड़े ही आस्था के साथ की जाती है, वही जापान में देवी सरवती को 'बेनजाइतेन" के नाम से जनि जाती है तथा इनकी पूजा बड़े ही भाव से की जाती है! इनकी लिपि टीम भाव में लिखी गयी है! बेन यानी वाणी,साइ-प्रतिभा, तेन-स्वर् यहाँ जयो का मतलब पैसे और सम्पति से दिया गया है! लेकिन जापान में धना की सरस्वती का अत्यधिक मनायानता प्राप्त है! बेनजाइतेन का रिश्ता सर्प और ड्रैगन के नाम से जोड़ा जाता है! बेनजाइतेन शक्ति का रूप है ,तथा उसका विवाह ड्रैगन से हुआ था, यह भी जजन की मान्यताओ में अत है! अर्थात जापान में सरवती तथा उसके सभी प्रकार के रूप पाए जाते है! और इनकी आराधना बड़े ही विभिन्न रूप से होती है! सरवती की की लोकप्रियता सन १८३२ से चली आ रही है! लोगो के अनुसार इसकी बहुत मान्यता है!

सरस्वती के उपासक व कृपा के आकांक्षी एनोशिमा (ENOSHIMA) में आकर धन-संपत्ति एवं ऐहिक समृद्धि की कामना करते हैं।


श्रद्धालुओं में अधिकतर व्यापारी, सट्टेबाज और जुआरी ही होते हैं। एनोशिमा के निकट ही कामाकुरा में एक सरस्वती मंदिर है जिसमें एक जलकुंड भी है। जिसके बारे में यह विश्वास है कि उस जलकुंड के स्पर्श से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। इसलिए श्रद्धालु अपने सिक्कों, नोटों का स्पर्श उस जल से कराते हैं। सरस्वती से संबंधित अनेक रोचक कथाएं भी जापान के जनसामान्य में प्रचलित हैं तो, कुछ अंधविश्वास भी।

मंदिर के तोरणद्वार के सम्मुख एक बोर्ड पर अंकित है - नग्न बेनजाइतेन (अथवा सरस्वती) ''इस द्वीप में अधिष्ठित सौंदर्य और सौभाग्य की भारतीय देवी सरस्वती अथवा नग्न बेनजाइतेन (परंतु एनोशिमा में जाकर सरस्वती निर्वसना कैसे हो गई यह अनुत्तरित है) के नाम से विख्यात है। क्योंकि वह बीवा बजाने की मुद्रा में एक चट्टान पर नग्नावस्था में अवस्थित है। यह बेनजाइतेन इस देश की तीन सर्वप्रतिष्ठित सरस्वती प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है।"" फुजिसावा नगर कार्यपालिका


सरस्वती की लोकप्रियता इस पर से ही पता चलती है कि 1832 की जनगणना के अनुसार अकेले टोकियो में सरस्वती के 131 मंदिर हैं। लगभग इतने ही मंदिर क्योटो, ओसाका और नारा शहरों में भी हैं।

जापानी कलेंडर के अनुसार बारह वर्षों का एक वर्ष चक्र माना जाता है। इन बारह वर्षों के बारह प्रतीक इस प्रकार से हैं। चूहा, बैल, शेर, खरगोश, ड्रेगन, सर्प, घोडा, भेड, बंदर, चिडिया, कुत्ता और वराह। हरएक वर्ष इन्हीं प्रतीकों पर से जाना जाता है। चूंकि सर्प को सरस्वती का संदेशवाहक भी माना जाता है।अतः प्रत्येक सर्प वर्ष के आगमन पर सरस्वती पूजा का विशेष महत्व रहता है और एनोशिमा में तो प्रत्येक सर्प वर्ष पर एक बहुत बडे महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

SWAti Shukla